Thursday, December 31, 2009
प्याज सुमिरन - कुण्डलियाँ
छः दशकों की उपलब्धि
छः दशकों में हो गया सारा राज सुराज ।
घुसी तेल में ड्राप्सी, दुर्लभ आलू-प्याज ।
दुर्लभ आलू-प्याज, दूध पानी से सस्ता ।
पतली होती कभी तो कभी हालत खस्ता ।
कह जोशीकविराय देखना नई सदी में ।
मछली बचे न एक ग्राह ही ग्राह नदी में ।
भले ही अणुबम फोड़ें
जैसा जिसका मर्ज़ है वैसा करे इलाज ।
आप लूटते मज़े और लोग लूटते प्याज ।
लोग लूटते प्याज, उतारेंगे कल छिलके ।
ए मेरी सरकार ! रहें अब ज़रा सँभल कर ।
कह जोशीकविराय भले ही अणुबम फोड़ें ।
पर भूखों के लिए प्याज रोटी तो छोड़ें ।
दलित-उद्धार
छिलके-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक-जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धडियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाइन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।
प्याज सुमिरन
व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूल कर लायं प्याज का राज ।
लायं प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएं ।
कह जोशीकविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।
प्याज का इत्र
तीस रुपय्या प्याज है, चालीस रुपये सेव।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठीं सब सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशीकविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्जत कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।
दाल में काला
दल औ' कुर्सी आपके, अपनी 'जनता-दाल'।
आप सदा खुशहाल हैं, हम हैं खस्ता-हाल ।
हम हैं खस्ता-हाल, निरर्थक डुबकी मारें ।
लेकिन दाना एक हाथ ना लगे हमारे ।
कह जोशीकविराय बहुत है गड़बड़ झाला ।
दल हो अथवा दाल हमें तो लगता काला ।
सचमुच सेक्यूलर
ऐसी-वैसी चीज अब नहीं रही है दाल ।
एक किलो 'गर चाहिए सौ का नोट निकाल ।
सौ का नोट निकाल, बिकेगी सौ से ऊपर ।
तभी देश बन पायेगा सचमुच सेक्यूलर ।
कह जोशीकविराय दाल रोटी जब पाती ।
मूरख जनता प्रभु के गुण गाने लग जाती ।
१२-१२-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
कुछ मत पूछो - कुण्डलियाँ
कुछ मत पूछो
आटा अम्बर में गया, दालें गई पताल ।
अपनी मानुस जूण का कुछ मत पूछो हाल ।
कुछ मत पूछो हाल, दिहाड़ी सारी खर्चे ।
फिर भी पूरा पेट नहीं भर पाते बच्चे ।
कह जोशीकविरय खाल सारी खिंच जाए ।
पर चूहे के चाम नगाड़ा ना बन पाये । ५-१२-२००९
नंगी का स्नान
होटल में मंत्री रुके दिन के बीस हज़ार ।
ऐसे तो मुश्किल पड़े इस भारत की पार ।
इस भारत की पार, पसीना लाख बहाए ।
तब भी संध्या तक दो सौ रुपये ना पाए ।
कह जोशीकविराय प्रणव दा पर ही छोंड़ें ।
जनता क्या स्नान करे, क्या वस्त्र निचोड़े । ५-१२-२००९
छोटी सी बात
पाँच सितारा में रुके जैसे गिर गई गाज़ ।
इक छोटी सी बात पर सब विपक्ष नाराज़ ।
सब विपक्ष नाराज़, हमारे ठाठ देखिये ।
करते सबकी सोलह दूनी आठ देखिये ।
कह जोशीकविराय आप बस पाँच सितारा ।
हम बिन छप्पर हैं सारा आकाश हमारा । ५-१२-२००९
सुरक्षा तंत्र
अमरीका को स्वयं पर है बहुत अभिमान ।
क्योंकि इकट्ठे कर रखे हैं सारे सामान ।
हैं सारे सामान, फिरे कर ऊँची कालर ।
जो भी चाहे करवा लेगा देकर डालर ।
कह जोशीकविराय हुआ क्या गज़ब इलाही ।
तोड़ सुरक्षा तंत्र भोज में घुसे 'सलाही' । ५-१२-२००९
भोजन की परवाज़
नब्बे रुपये दाल है चालीस रुपये प्याज ।
भूखे से ऊँची हुई भोजन की परवाज़ ।
भोज की परवाज़, उचक कर कूद लगाई ।
लगा न कुछ भी हाथ व्यर्थ ही टाँग तुड़ाई ।
कह जोशी कवि भूखे भजन न हो गोपाला ।
बोझा बन गई लोकतंत्र की कंठी-माला । ८-१२-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Wednesday, December 30, 2009
आपके बाप का है वतन, सेठजी
आपके बाप का है वतन, सेठजी ।
लूटो जितना तुम्हारा हो मन, सेठजी ।
लोग भूखे रहें, कोई मुद्दा नहीं
कर ही लेंगे ये सब कुछ सहन, सेठजी ।
कोई मूरत लगे या बने मकबरा
खर्च हम को ही करना वहन, सेठजी ।
घास हमको न डाले कोई पंच भी
आपके साथ सारा सदन, सेठजी ।
हमको दो गज़ ज़मीं भी नहीं मिल सकी
आपके पास धरती-गगन, सेठजी ।
ठाठ ही ठाठ हैं, आप करते हैं क्या
प्रश्न ये ही है सबसे गहन, सेठजी ।
१३-१२-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Tuesday, December 8, 2009
चट्टानों से छन कर निकले
चट्टानों से छन कर निकले ।
तो जल गंगा बनकर निकले ।
जो थोड़ा सर ख़म कर निकले
वे दो अंगुल बढ़कर निकले ।
तलवारें तिरसूल गलें तो
फिर कोई हल ढलकर निकले ।
कर्मों पर विश्वास नहीं था
सो ज्यादा बन-ठन कर निकले ।
जो जितने ज्यादा ओछे थे
वे उतना ही तनकर निकले ।
वे माथे का तिलक बन गए
जो मिटटी में गलकर निकले ।
३ दिसंबर २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
तो जल गंगा बनकर निकले ।
जो थोड़ा सर ख़म कर निकले
वे दो अंगुल बढ़कर निकले ।
तलवारें तिरसूल गलें तो
फिर कोई हल ढलकर निकले ।
कर्मों पर विश्वास नहीं था
सो ज्यादा बन-ठन कर निकले ।
जो जितने ज्यादा ओछे थे
वे उतना ही तनकर निकले ।
वे माथे का तिलक बन गए
जो मिटटी में गलकर निकले ।
३ दिसंबर २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Saturday, November 14, 2009
दस्ताने
जब दस्तानों से ही हाथ मिलाना है ।
तो फिर क्यों चलकर उनके घर जाना है ॥
अपनी आँखे बिछी रहेंगी रस्ते पर
वे अपनी जानें- आना, ना आना है ॥
कहीं पियो मन्दिर, मस्जिद, मैखाने में
नशा एक है जुदा-जुदा पैमाना है ॥
हमको सबका नशा अधूरा लगता है
सबने, सबको अलग-अलग पहचाना है ॥
चार धाम औ' हज़ सब कर आए लेकिन
जो घर में बैठा है वह अनजाना है ॥
३१-१०-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Saturday, May 16, 2009
मुल्क फँसा है मझधारों में
गद्दी पर असवार* हो गए ।
जनता से सरकार हो गए ॥
'सोने की चिड़िया' पर उनके
सब के सब अधिकार हो गए ॥
पहले तो बेकार घूमते
लेकिन अब बाकार** हो गए ॥
कर्ज़दार है मुल्क भले ही
वे सरमायादार हो गए ॥
देश अंधेरे में पर उनके
सब सपने साकार हो गए ॥
पार नहीं पड़ रही 'लोक' की
पर वे अपरम्पार हो गए ॥
मुल्क फँसा है मझधारों में
उनके बेड़े पार हो गए ॥
२७ जनवरी २००६
* सवार ** कार सहित
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Friday, May 15, 2009
मरते हैं जी जाने में
पैसे चार कमाने में ।
मरते हैं जी जाने में ॥
कितना ऊँचा काम कर गए ।
इस चालाक ज़माने में ॥
हमने सारी उमर बिता दी
उनका दिल बहलाने में ॥
फिर भी जगह मिली चौखट पर
उनके दौलतखाने में ॥
बैठक में मीठी लफ़्फ़ाजी
सत्य कहीं तहखाने में ॥
भीड़-भाड़ में क्या बतलाएँ
कभी मिलो वीराने में ॥
२४ अक्टूबर २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
मरते हैं जी जाने में ॥
कितना ऊँचा काम कर गए ।
इस चालाक ज़माने में ॥
हमने सारी उमर बिता दी
उनका दिल बहलाने में ॥
फिर भी जगह मिली चौखट पर
उनके दौलतखाने में ॥
बैठक में मीठी लफ़्फ़ाजी
सत्य कहीं तहखाने में ॥
भीड़-भाड़ में क्या बतलाएँ
कभी मिलो वीराने में ॥
२४ अक्टूबर २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, May 14, 2009
चार फूल औ शूल हज़ार
ऊँचे लोगों से व्यवहार ।
किन ख़्वाबों में हो तुम यार ॥
ये रस्ते आसान नहीं हैं
चार फूल औ शूल हज़ार ॥
गर्दन, आँखे, कमर झुक गए
जो भी हो आया दरबार ॥
बाट अलग लेने -देने के
तुमसे कैसे हो व्यापार ॥
अब जाओ, कल बात करेंगे
तुम पर कोई और सवार ॥
११ सितम्बर २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
तन्हा नेक इरादे तुम
कितने सीधे-सादे तुम ।
बचपन के से वादे तुम ॥
लफ़्फ़ाजों की महफ़िल में
तन्हा नेक इरादे तुम ॥
मेरी छोटी सी आमद है
करते रोज़ तकादे तुम ॥
ठिठक गए बासंती झोंके
पहने हुए लबादे तुम ॥
तृप्त भला कैसे हो लोगे
प्यासा मुझे उठाके तुम ॥
मंजिल पर कैसे पहुँचोगे
भारी गठरी लादे तुम ॥
२५ अगस्त २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, May 13, 2009
जिसमें तेरी लिखी कहानी
जिसमें तेरी लिखी कहानी ।
वही ग़ज़ल ना हुई पुरानी ॥
जितना इस दुनिया को जाना
उससे ज्यादा रही अजानी ॥
जीवन में दो ही चीजें थीं
बड़ी प्यास, थोड़ा सा पानी ॥
जितना तेरे साथ रहा मैं
बस उतना ही था बामानी * ॥
पहले सबके मन को समझो
फिर चाहे करना मनमानी ॥
२० अगस्त २००५
* सार्थक (मायने के साथ)
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
वही ग़ज़ल ना हुई पुरानी ॥
जितना इस दुनिया को जाना
उससे ज्यादा रही अजानी ॥
जीवन में दो ही चीजें थीं
बड़ी प्यास, थोड़ा सा पानी ॥
जितना तेरे साथ रहा मैं
बस उतना ही था बामानी * ॥
पहले सबके मन को समझो
फिर चाहे करना मनमानी ॥
२० अगस्त २००५
* सार्थक (मायने के साथ)
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
उसकी बात
आओ उसकी बात करें ।
दिन सी उजली रात करें ॥
हमसे तुमसे ही दुनिया
हमीं सुने औ' हमीं कहें ॥
जो सब की आँखों का हो
ऐसा कोई ख्वाब बुनें ॥
एक आशियाना ऐसा हो
जिसमें सारा जग रह ले ॥
थोड़ी सी तो उमर बची
जल्दी से कहलें, सुनलें ॥
९ जुलाई २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Tuesday, May 12, 2009
मुश्किल
बिना बुलाए जाना मुश्किल ।
बिना गए रह पाना मुश्किल ॥
दुनिया को बहलाना आसाँ
पर ख़ुद को समझाना मुश्किल ॥
बिन बोले सब बात समझते
उनसे कोई बहाना मुश्किल ॥
उनको दर्द बताना मुश्किल
औ' चुप भी रह पाना मुश्किल ॥
सबसे आँख चुरालें लेकिन
ख़ुद से आँख मिलाना मुश्किल ॥
उसका घर भी इसी गली में
मेरा आना जाना मुश्किल ॥
२ अप्रेल २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
रूहानी जलसे
तुम जिस को भी याद रहे ।
और किसे वह याद करे ॥
जिसको याद नहीं हो तुम
कौन उसे फिर याद करे ॥
माइक, मंच, मंत्रियों बिन
सूने रूहानी जलसे ॥
गूंगे, बहरों की महफ़िल
कौन सुने औ' कौन कहे ॥
साठ बरस से देख रहे
फिर भी पूछ रहे हमसे ॥
दो बीते, बाक़ी दो दिन
जैसे वो, ये भी वैसे ॥
कुछ निकले तो बतलाना
दुनिया छान रहे कब से ॥
२९ मई २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, May 11, 2009
हलचल है भूचालों में
जब से तेरे ख्यालों में ।
घेरें लोग सवालों में ॥
तिनके चार क्या रखे हमने
हलचल है भूचालों में ॥
अंधियारे में घबराता वो
सहमे तेज उजालों में ॥
एक झोंपडी पर कब्जे को
झगड़ा महलों वालों में ॥
सहमा-सहमा घर का मालिक
जब से है रखवालों में ॥
दिल में दुनियादारी रखकर
भटकें लोग शिवालों में ॥
३ अप्रेल २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
सरमाया
वो मेरे घर आया है ।
बहुत बड़ा सरमाया है ॥
मैनें कोई बात न पूछी
वो फिर क्यों शरमाया है ॥
मौसम बीत गया तो क्या, वो
अपना मौसम लाया है ॥
सूखा फूल किताबों से उठ
आँखों में मुस्काया है ॥
कल को सच हो जायेगा
आज जो सपना आया है ॥
२ अप्रेल २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, May 10, 2009
अन्दर-बाहर
जैसे दिखते बाहर-बाहर ।
क्या तुम वैसे ही हो अन्दर ॥
सर ढँक लें तो पैर उघड़ते
छोटी पड़ी सदा ही चादर ॥
उनका घर उस पार क्षितिज के
और बहुत छोटे अपने पर ॥
बहुत दूर आ गए नीड़ से
अब तो बस अम्बर ही अम्बर ॥
उनकी किस छवि को सच मानें
मुख में राम बगल में खंज़र ॥
सारा खेल निरर्थक निकला
हम प्यासे औ' आप समंदर ॥
१ अप्रेल २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
चदरिया
हम उनको समझाने निकले ।
मतलब धोखा खाने निकले ॥
नाम बताएँ हम किस-किस का ।
सब जाने पहचाने निकले ॥
जिन्हें हकीक़त समझा हमने ।
वो केवल अफ़साने निकले ॥
जिनमें खोये रहे उमर भर ।
वो सब ख़्वाब पुराने निकले ॥
सब बच निकले पतली गलियों ।
एक हमीं टकराने निकले ॥
चार दिनों का जीवन अपना ।
उसमें मगर ज़माने निकले ॥
सूरत ने सब कुछ कह डाला ।
झूठे सभी बहाने निकले ॥
ज्यों की त्यों धर चले चदरिया । *
हम ऐसे दीवाने निकले ॥
१ अप्रेल २००५
* कबीरजी का सन्दर्भ - झीनी रे चदरिया
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
मेरा डर
उनका प्यार तसव्वुर निकला ।
कितना सच मेरा डर निकला ॥
किया जहाँ भी रैन बसेरा ।
बटमारों का ही घर निकला ॥
सबको साया देने वाला ।
आँचल आँसू से तर निकला ॥
सभी संगसारों की ज़द में
केवल मेरा ही सर निकला ॥
उनका ख़त बिन पढ़ा रह गया
सारा तंत्र निरक्षर निकला ॥
जीवन भर परबत खोदा पर
जब निकला चूहा भर निकला ॥
२३ मार्च २००५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
[ इतने दिनों तक पोस्ट न कर पाने के लिए मैं आप सबका क्षमार्थी हूँ, पिताजी ने एक बार कंप्यूटर जो सीखा, अब टाइप कर कर कतार लम्बी कर दी है, मैं ही पीछे रह गया हूँ पोस्ट कराने में - शशिकांत जोशी ]
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
(c) Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम,
व्यंग्य
Monday, May 4, 2009
कभी प्यार से छुआ नहीं
लूट-मार, चोरी-डाका कुछ हुआ नहीं ।
फिर भी मेरे घर में कुछ भी बचा नहीं ॥
अपने दुःख की चीख-पुकारें करते सब
मगर पराया दर्द किसीने सुना नहीं ॥
फलवाली शाखाएँ झुक-झुक जाती हैं
बिन फलवाला पेड़ ज़रा भी झुका नहीं ॥
उन आमों में मीठा रस कैसे होगा
कभी जिन्होंने लू का झोंका सहा नहीं ॥
अपना घाव तभी तक गहरा लगता है
जब तक औरों के घावों का पता नहीं ॥
प्राण धड़कते हैं पत्थर के दिल में भी
मगर किसीने कभी प्यार से छुआ नहीं ॥
सबको अपनी रचना कालजयी लगती
किसी और का गीत किसी को जँचा नहीं ॥
१७ जनवरी २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, April 13, 2009
लोकतंत्र का सर्कस - जय हो
डेमोक्रेसी वाले नीले आसमानों के तले
नेता और लाला जी बस दो ही तो फले ।
जय हो ।
सावन में बाढ़ आए या पड़े सूखा
हर हालत जनसेवक तो कमाई करे ।
जय हो ।
फूट डालें जात, धर्म, प्रान्त के लिए
राष्ट्रीय एकता की बातें पर करें ।
जय हो ।
हमला हो, बाढ़, सूखा, बेकारी बढ़े
नेता सब बचे रहें, जनता पर मरे ।
जय हो ।
बूढ़े हो गए है पर मन न भरा
चुनावों में अब बेटे, पोते हैं खड़े ।
जय हो ।
एक दूसरे को सब चोर कह रहे
ये ही मौसेरे भाई फिर गठबंधन करें ।
जय हो ।
९ मार्च २००९
(बतर्ज़ - 'जय हो' - फ़िल्म स्लमडोग मिलिनिएर )
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
parody,
poem,
satire,
लोक तंत्र का सर्कस,
व्यंग्य
Sunday, April 12, 2009
लोकतंत्र का सर्कस - भोजन का अधिकार
(१) मुहब्बत जिंदाबाद
(मटुकनाथ ने 'भारतीय मुहब्बत पार्टी' बनायी)
अगर मुहब्बत पार्टी सत्ता में आ जाय ।
प्रेमी जन को कोई भी सके न आँख दिखाय ॥
सके न आँख दिखाय, प्रेम में टाँग अड़ाए ।
पुलिस पकड़ ले जाय, जेल की रोटी खाए ॥
जोशी संसद में न समय बर्बाद करेंगें ।
'बुद्ध-जयन्ती पार्क ' सभी आबाद करेंगें ॥
(बुद्ध-जयन्ती पार्क दिल्ली का एक कुख्यात मिलन स्थल है ।)
(२) भोजन का अधिकार
( कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र)
कांग्रेस घोषित करे 'गर फिर आयी सरकार ।
तो जनता को मिलेगा भोजन का अधिकार ॥
भोजन का अधिकार, जहाँ जी चाहे जाओ ।
मनपसंद होटल में जी भर खाना खाओ ॥
जोशी होटल मालिक बोले-पैसे धर दे ।
कहना-मनमोहन के खाते क्रेडिट कर दे ॥
२४ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
नैनो कार - घर की शोभा
रोटी, पानी, नौकरी ना कुछ भी दरकार ।
लो बाज़ार में आ गई सबसे सस्ती कार ॥
सबसे सस्ती कर, नाम है इसका 'नैनो' ।
तुरत कराओ बुकिंग भाइयो, प्यारी बहनो ॥
कह जोशी कविराय सड़क पर जगह न मिलती ।
खड़ी रहे घर पर तो भी शोभा बढ़ती ॥
२४ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
लोकतंत्र का सर्कस - पेट सभी का पापी
(१) पापी पेट
होंगें कहीं विदेश में आइ.पी.एल के मैच ।
वे मारे छक्के वहाँ, यहाँ करें हम कैच ॥
यहाँ करें हम कैच, मची है आपाधापी ।
बन्दर और मदारी पेट सभी का पापी ॥
जोशी कहते लोग-क्रिकेट की साख डुबो दी ।
'पहले धंधा, देश बाद में ' कहते मोदी ॥
(२) धर्म रक्षा के लिए
वे क्रिकेट को मानते हैं भारत का धर्म ।
मैच यहाँ न हुए तो डूब मरें कर शर्म ॥
डूब मरें कर्र शर्म, धर्म के रक्षक सारे ।
क्रिकेट धर्म को लेकर चिंतित है बेचारे ॥
कह जोशी कविराय यहाँ जो ना बच पाये ।
तो ये मज़मा धर्म का अफ़्रीका ले जाएँ ॥
२४ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
होंगें कहीं विदेश में आइ.पी.एल के मैच ।
वे मारे छक्के वहाँ, यहाँ करें हम कैच ॥
यहाँ करें हम कैच, मची है आपाधापी ।
बन्दर और मदारी पेट सभी का पापी ॥
जोशी कहते लोग-क्रिकेट की साख डुबो दी ।
'पहले धंधा, देश बाद में ' कहते मोदी ॥
(२) धर्म रक्षा के लिए
वे क्रिकेट को मानते हैं भारत का धर्म ।
मैच यहाँ न हुए तो डूब मरें कर शर्म ॥
डूब मरें कर्र शर्म, धर्म के रक्षक सारे ।
क्रिकेट धर्म को लेकर चिंतित है बेचारे ॥
कह जोशी कविराय यहाँ जो ना बच पाये ।
तो ये मज़मा धर्म का अफ़्रीका ले जाएँ ॥
२४ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
लोकतंत्र का सर्कस - लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ
(१) एक नूर से
इक दूजे की उलटते सभी यहाँ पर खाट ।
लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ ॥
सोलह दूनी आठ, न अल्ला, राघव, माधव ।
ब्रह्मण, बनिया, जात, दलित, मुस्लिम या यादव ॥
कह जोशी कविराय बने सब एक नूर से ।
ऐसी बातें केवल मुँह से, दूर-दूर से ॥
(२) इलाहबाद में परीक्षा में नक़ल न करवाने देने पर सिपाही का नाक काट खाया ।
हमें बताएँ पुलिस की अब रही कहाँ पर धाक ।
नक़ल कराने दी नहीं काट भग गया नाक ॥
काट भग गया नाक, धाक सब ख़ाक हो गयी ।
लेकिन इससे एक बात तो साफ़ हो गई ॥
जोशी ऐसी जगह सिर्फ़ नकटे भिजवायें ।
चले काम सब ठीक सभी से मिलकर खाएँ ॥
२४ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
लोकतंत्र का सर्कस - ३ सोता आधे पेट पर गंगू तेली रोज
(परसादी लाल मीणा ने पोते के मुंडन पर २०-२५ हज़ार लोगों को भोज में बुलाया)
राजनीति में चल रहे तरह-तरह के भोज ।
सोता आधे पेट पर गंगू तेली रोज ॥
गंगू तेली रोज, अगर आटा मिल जाए ।
तो है महँगी दाल कहाँ से जुगत भिड़ाए ॥
कह जोशी कविराय इ कैसी उलझन लादी ।
देना होगा वोट अगर खाली परसादी ॥
(२)
गीता-पाठ
(प्रियंका ने वरुण को गीता पढ़ने की सलाह दी )
असर यहाँ करता नहीं गीता का उपदेश ।
लेकिन उससे बड़ा है पार्टी का आदेश ॥
पार्टी का आदेश, अगर वि.हि.प. जारी कर दे ।
तो कुलदीपक बापू को भी थप्पड़ धर दे ॥
कह जोशी कविराय क्या हुआ गीता पढ़कर ।
भाई-भाई मरे महाभारत में लड़कर ॥
२४ मार्च २००८
(किसी कारणवश ये रचनाएं पहले पोस्ट नहीं हो पाईं , आशा है विषय की शाश्वत रोचकता के कारण अभी भी आनंद देंगी ।)
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
राजनीति में चल रहे तरह-तरह के भोज ।
सोता आधे पेट पर गंगू तेली रोज ॥
गंगू तेली रोज, अगर आटा मिल जाए ।
तो है महँगी दाल कहाँ से जुगत भिड़ाए ॥
कह जोशी कविराय इ कैसी उलझन लादी ।
देना होगा वोट अगर खाली परसादी ॥
(२)
गीता-पाठ
(प्रियंका ने वरुण को गीता पढ़ने की सलाह दी )
असर यहाँ करता नहीं गीता का उपदेश ।
लेकिन उससे बड़ा है पार्टी का आदेश ॥
पार्टी का आदेश, अगर वि.हि.प. जारी कर दे ।
तो कुलदीपक बापू को भी थप्पड़ धर दे ॥
कह जोशी कविराय क्या हुआ गीता पढ़कर ।
भाई-भाई मरे महाभारत में लड़कर ॥
२४ मार्च २००८
(किसी कारणवश ये रचनाएं पहले पोस्ट नहीं हो पाईं , आशा है विषय की शाश्वत रोचकता के कारण अभी भी आनंद देंगी ।)
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Saturday, April 11, 2009
लोकतंत्र का सर्कस - २
(१)
वे जो करें बिहार में झारखण्ड में आप ।
राजनीति में भोगते सभी यही संताप ॥
सभी यही संताप, राज के खेल निराले ।
यहाँ नहीं होते कोई भी भोले-भाले ॥
कह जोशीकविराय उन्हें बस कुर्सी दीखे ।
वो हैं लोमड़-बाघ, और हम भेड़ सरीखे ॥
(२)
कांग्रेस में मची है अद्भुत रेलमपेल ।
पासवान को ले भगी लालूजी की रेल ॥
लालूजी की रेल, निभेगी कब तक यारी ।
मतलब की मनुहार अंत में पड़ती भारी ॥
कह जोशीकविराय काम होगा सस्ते में ।
बता बेटिकट कहीं उतारेंगें रस्ते में ॥
(३)
लालूजी के आपस है गाड़ी भरकर घास ।
उसको उतनी डालते जिससे जितनी आस ॥
जिससे जितनी आस, सोनिया को कल डाली ।
पासवान के लिए वही तरकीब निकाली ॥
जोशी रामविलास नहीं उनसे कुछ कम हैं ।
पासवान को बना सके किसमें वह दम है ॥
(४)
जो कुछ संप्रग ने किया अमरसिंह के साथ ।
उसको वो ही मिल रहा है लालू के हाथ ॥
है लालू के हाथ नीति यह कहती आई ।
सबको अपने कर्मों का फल मिलाता भाई ॥
कह जोशीकविराय काठ की है 'गर हंडिया ।
बस चढ़ती इक बार भले हो कितनी बढ़िया ॥
(५)
अनुभव उल्टे हो रहे मान भले न मान ।
लोकतंत्र में बड़ा है हंडिया का स्थान ॥
हंडिया का स्थान, आग पर चढ़ती रहती ।
इस-उस चूल्हे चढ़े मगर ख़ुद कभी न जलती ॥
जोशी भोली जनता झूठी आस लगाये ।
खिचड़ी पकती मगर उसे नेता खा जाएँ ॥
(६)
धनबल-भुजबल के बिना किसको मिलते वोट ।
तो यदि बाँटे वरुण ने तो इसमें क्या खोट ॥
तो इसमें क्या खोट, यही सरकारें करतीं ।
वोट बैंक के खातिर बिजली फ्री में देती ॥
जोशी टीवी बाँटें, दें सस्ते में चावल ।
तब आचार संहिता क्यूँ न होती घायल ॥
(७)
मन मोहन, मायावती, अडवाणी औ पवार ।
लालू के कंधे चढ़े पासवान तैयार ॥
पासवान तैयार, सभी को कुर्सी दिखती ।
गौडा और मुलायम को भी लार टपकती ॥
कह जोशी कविराय भाड़ में जाए सेवा ।
मची हुई है लूट सभी को भावे मेवा ॥
(८)
नीति और साहित्य का कैसा बंटाधार ।
अब कविता में आगये लालू और पवार ॥
लालू और पवार, मुलायम और पासवान जी ।
राम, कृष्ण, गाँधी पर जाता नहीं ध्यान जी ॥
कह जोशीकविराय विकट माया की माया ।
कविता में आदर्शों का हो गया सफाया ॥
(९)
वृक्ष कभी न फल चखें, नदी न पीती नीर ।
परमारथ के वास्ते, साधू धरें शरीर ॥
साधू धरें शरीर, सार को गह लेते हैं ।
पार्टी तो तिनका भूसा सब तज देते हैं ॥
कह जोशी कवि टिकट नहीं देता 'गर पटना ।
चल दिल्ली दरबार सत्य हो जाए सपना ॥
(१०)
चोर अन्य दल में अगर तो है पक्का चोर ।
पल में साधू हो अगर आए अपनी ओर ॥
आए अपनी ओर, विरोधी को तज करके ।
तो लो उसका हाथ थाम आगे बढ़ करके ॥
जोशी साधू औ' शैतान सभी आ जाएँ ।
किसी तरह सत्ता- वैतरणी पार लगायें ॥
२२ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
वे जो करें बिहार में झारखण्ड में आप ।
राजनीति में भोगते सभी यही संताप ॥
सभी यही संताप, राज के खेल निराले ।
यहाँ नहीं होते कोई भी भोले-भाले ॥
कह जोशीकविराय उन्हें बस कुर्सी दीखे ।
वो हैं लोमड़-बाघ, और हम भेड़ सरीखे ॥
(२)
कांग्रेस में मची है अद्भुत रेलमपेल ।
पासवान को ले भगी लालूजी की रेल ॥
लालूजी की रेल, निभेगी कब तक यारी ।
मतलब की मनुहार अंत में पड़ती भारी ॥
कह जोशीकविराय काम होगा सस्ते में ।
बता बेटिकट कहीं उतारेंगें रस्ते में ॥
(३)
लालूजी के आपस है गाड़ी भरकर घास ।
उसको उतनी डालते जिससे जितनी आस ॥
जिससे जितनी आस, सोनिया को कल डाली ।
पासवान के लिए वही तरकीब निकाली ॥
जोशी रामविलास नहीं उनसे कुछ कम हैं ।
पासवान को बना सके किसमें वह दम है ॥
(४)
जो कुछ संप्रग ने किया अमरसिंह के साथ ।
उसको वो ही मिल रहा है लालू के हाथ ॥
है लालू के हाथ नीति यह कहती आई ।
सबको अपने कर्मों का फल मिलाता भाई ॥
कह जोशीकविराय काठ की है 'गर हंडिया ।
बस चढ़ती इक बार भले हो कितनी बढ़िया ॥
(५)
अनुभव उल्टे हो रहे मान भले न मान ।
लोकतंत्र में बड़ा है हंडिया का स्थान ॥
हंडिया का स्थान, आग पर चढ़ती रहती ।
इस-उस चूल्हे चढ़े मगर ख़ुद कभी न जलती ॥
जोशी भोली जनता झूठी आस लगाये ।
खिचड़ी पकती मगर उसे नेता खा जाएँ ॥
(६)
धनबल-भुजबल के बिना किसको मिलते वोट ।
तो यदि बाँटे वरुण ने तो इसमें क्या खोट ॥
तो इसमें क्या खोट, यही सरकारें करतीं ।
वोट बैंक के खातिर बिजली फ्री में देती ॥
जोशी टीवी बाँटें, दें सस्ते में चावल ।
तब आचार संहिता क्यूँ न होती घायल ॥
(७)
मन मोहन, मायावती, अडवाणी औ पवार ।
लालू के कंधे चढ़े पासवान तैयार ॥
पासवान तैयार, सभी को कुर्सी दिखती ।
गौडा और मुलायम को भी लार टपकती ॥
कह जोशी कविराय भाड़ में जाए सेवा ।
मची हुई है लूट सभी को भावे मेवा ॥
(८)
नीति और साहित्य का कैसा बंटाधार ।
अब कविता में आगये लालू और पवार ॥
लालू और पवार, मुलायम और पासवान जी ।
राम, कृष्ण, गाँधी पर जाता नहीं ध्यान जी ॥
कह जोशीकविराय विकट माया की माया ।
कविता में आदर्शों का हो गया सफाया ॥
(९)
वृक्ष कभी न फल चखें, नदी न पीती नीर ।
परमारथ के वास्ते, साधू धरें शरीर ॥
साधू धरें शरीर, सार को गह लेते हैं ।
पार्टी तो तिनका भूसा सब तज देते हैं ॥
कह जोशी कवि टिकट नहीं देता 'गर पटना ।
चल दिल्ली दरबार सत्य हो जाए सपना ॥
(१०)
चोर अन्य दल में अगर तो है पक्का चोर ।
पल में साधू हो अगर आए अपनी ओर ॥
आए अपनी ओर, विरोधी को तज करके ।
तो लो उसका हाथ थाम आगे बढ़ करके ॥
जोशी साधू औ' शैतान सभी आ जाएँ ।
किसी तरह सत्ता- वैतरणी पार लगायें ॥
२२ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Thursday, March 19, 2009
लोकतंत्र का सर्कस - १
(१)
अपना मानेंगें किसे, किसका हो विश्वास ।
छोड़ सोनिया को भगे, लालू, रामविलास ॥
लालू रामविलास, जिधर जब घास दिखेगी ।
मौसेरे भाइयों की जोड़ी वहीं मिलेगी ॥
कह जोशी कविराय लोग, दल आते-जाते ।
नहीं किसी का कोई सब मतलब के नाते ॥
(२)
वरुण फँस गए झाड़कर भड़काऊ स्पीच ।
जिसको भी मौका मिले टाँग रहा है खीच ॥
टाँग रहा है खींच, फूल किस मुख से झरते ।
सब अपनी-अपनी शैली में गाली बकते ।
जोशी निर्वाचन आयोगी चुप क्यों रहते ।
तिलक, तराजू के ऊपर जब जूते पड़ते ।
(३)
लोकतंत्र में आगये कैसे दिन भगवान ।
नैया पार लगायेंगें काका और रहमान ॥
काका और रहमान, पढ़ें कविता औ' गायें ।
ये उनकी पैरोडी पर चीखें-चिल्लाएँ ॥
कह जोशी कविराय जो मन से सेवा करता ।
उसे लोक कुर्सी पर क्या दिल में भी रखता ॥
(४)
लोकतंत्र की सज रही है अद्भुत बारात ।
कुर्सी दुल्हन एक है लेकिन दूल्हे सात ॥
लेकिन दूल्हे सात, अजब है गड़बड़ झाला ।
असमंजस में है दुल्हन किसको डाले माला ॥
कह जोशी कविराय यही इतिहास बताये ।
हर द्रुपदा के पाँच-पाँच पति होते आए ॥
१९ मार्च २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Tuesday, March 17, 2009
सुख-सागर
सुखराम जी को सज़ा सुनादी गई है । उनके घोटाला उद्घाटन-काल की कुछ कुण्डलियाँ पुनरावलोकन के लिए प्रस्तुत हैं ।
सुखराम के घर सी.बी.आई. के छापे; तीन करोड़ नक़द मिले, एक समाचार-१६-८-९६
लन्दन में सुखराम जी करवा रहे इलाज़ ।
घर में घुस कर खोलती सी.बी.आई. राज़ ॥
सी.बी.आई. राज,आ गया कलजुग भारी ।
जनसेवक को बता रहे हैं भ्रष्टाचारी ॥
कह जोशी कविराय नहीं कुछ काला धंधा ।
कहो कौन करता जग में सेवा, बिन चन्दा ॥
सौ करोड़ के देश में केवल चार करोड़ ।
रखने पर सुखराम के बाजू रहे मरोड़ ॥
बाजू रहे मरोड़, होड़ सी लगी हुई है ।
धन-संग्रह की तृष्णा सब में जगी हुई है ॥
कह जोशी कविराय तलाशी करवाएंगें ।
छुट भैयों के घर में इतने मिल जायेंगें ॥
बिन मेहनत के ही अगर घर में आयें दाम ।
सारे 'सुख' हों भले ही मगर नहीं हैं 'राम' ॥
मगर नहीं हैं 'राम', धर्म औ कर्म छोड़कर ।
सिर्फ़ भोग का आराधन चल रहा निरंतर ॥
कह जोशी कविराय मुक्त हैं काले धंधे ।
पीछे छूटा देश बढ़े आगे कुछ बन्दे ॥
सुखराम अस्पताल में अपना समय बिताने और ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए माला जपेंगे - १७-९-९६
जब तक रिश्वत खा रहे, भोग रहे आराम ।
तब तक क्षणभर के लिए याद न आए राम ॥
याद न आए राम, लगी जब सी.बी.आई. ।
राम-नाम की माला जपने की सुध आई ॥
कह जोशी कविराय सिर्फ़ दुःख में जो भजते ।
ऐसों की फरियाद रामजी कभी न सुनते ॥
मुझे बदनाम कराने के लिए चोरी-छिपे रकम मेरे घर में रखी गई -सुखराम, ८-१०-९६
कोई रुपये रख गया करने को बदनाम ।
लेकिन सच्चे संत हैं पंडित श्री सुखराम ॥
पंडित श्री सुखराम, ज़रा भी ना ललचायें ।
पर-धन धूरि समान, हाथ तक नहीं लगाएँ ॥
कह जोशी कविराय विप्र सीधे, संतोषी ।
जनता ही है दुष्ट बताती उनको दोषी ॥
खुला निमंत्रण आपको अपना रहा ज़नाब ।
बड़े शौक से कीजिए छवि को मेरी ख़राब ॥
छवि को मेरी ख़राब, नोट जितने जी चाहें ।
खुला पड़ा है गेट आप आकर रख जाएँ ॥
कह जोशी कविराय करो माया पर काबू ।
ख़ुद ही सुख और राम चले आयेंगे बाबू ॥
जेल में सुखराम को डेंगू का डर सता रहा है -१२-१०-९६
नेताओं ने कर दिए खाली कई मकान ।
कूलर खाली न करे मच्छर बेईमान ॥
मच्छर बेईमान, कोठरी में मंडराए ।
पंडित जी की पूजा में बाधा पहुँचाये ॥
कह जोशी कविराय नोट जिसने रखवाए ।
'एडिस' मच्छर भेज आपको वही डराए ॥
ताज़ा हाल
सुख-सागर से डर गए रहे किनारे बैठ ।
कैसे पायेंगे भला सच को गहरे पैठ ॥
सच को गहरे पैठ, यहाँ की जनता भोली ।
दो दिन पढ़ अख़बार सोचती मारो गोली ॥
कह जोशी कविराय हमारा कहा मानिए ।
बैक डेट से उलट-पलटकर हाल जानिए ॥
अब तो अस्सी पार हैं तन-मन से असमर्थ ।
ऐसे में इस सज़ा का बोलो क्या है अर्थ ॥
बोलो क्या है अर्थ, जेल यदि भेजें जाएँ ।
इसकी क्या गारंटी सज़ा पूरी कर पायें ॥
कह जोशी कविराय सज़ा यदि देना चाहो ।
ब्याज सहित सारे पैसे वापिस मंगवाओ ॥
२६ फरवरी २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
सुखराम के घर सी.बी.आई. के छापे; तीन करोड़ नक़द मिले, एक समाचार-१६-८-९६
लन्दन में सुखराम जी करवा रहे इलाज़ ।
घर में घुस कर खोलती सी.बी.आई. राज़ ॥
सी.बी.आई. राज,आ गया कलजुग भारी ।
जनसेवक को बता रहे हैं भ्रष्टाचारी ॥
कह जोशी कविराय नहीं कुछ काला धंधा ।
कहो कौन करता जग में सेवा, बिन चन्दा ॥
सौ करोड़ के देश में केवल चार करोड़ ।
रखने पर सुखराम के बाजू रहे मरोड़ ॥
बाजू रहे मरोड़, होड़ सी लगी हुई है ।
धन-संग्रह की तृष्णा सब में जगी हुई है ॥
कह जोशी कविराय तलाशी करवाएंगें ।
छुट भैयों के घर में इतने मिल जायेंगें ॥
बिन मेहनत के ही अगर घर में आयें दाम ।
सारे 'सुख' हों भले ही मगर नहीं हैं 'राम' ॥
मगर नहीं हैं 'राम', धर्म औ कर्म छोड़कर ।
सिर्फ़ भोग का आराधन चल रहा निरंतर ॥
कह जोशी कविराय मुक्त हैं काले धंधे ।
पीछे छूटा देश बढ़े आगे कुछ बन्दे ॥
सुखराम अस्पताल में अपना समय बिताने और ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए माला जपेंगे - १७-९-९६
जब तक रिश्वत खा रहे, भोग रहे आराम ।
तब तक क्षणभर के लिए याद न आए राम ॥
याद न आए राम, लगी जब सी.बी.आई. ।
राम-नाम की माला जपने की सुध आई ॥
कह जोशी कविराय सिर्फ़ दुःख में जो भजते ।
ऐसों की फरियाद रामजी कभी न सुनते ॥
मुझे बदनाम कराने के लिए चोरी-छिपे रकम मेरे घर में रखी गई -सुखराम, ८-१०-९६
कोई रुपये रख गया करने को बदनाम ।
लेकिन सच्चे संत हैं पंडित श्री सुखराम ॥
पंडित श्री सुखराम, ज़रा भी ना ललचायें ।
पर-धन धूरि समान, हाथ तक नहीं लगाएँ ॥
कह जोशी कविराय विप्र सीधे, संतोषी ।
जनता ही है दुष्ट बताती उनको दोषी ॥
खुला निमंत्रण आपको अपना रहा ज़नाब ।
बड़े शौक से कीजिए छवि को मेरी ख़राब ॥
छवि को मेरी ख़राब, नोट जितने जी चाहें ।
खुला पड़ा है गेट आप आकर रख जाएँ ॥
कह जोशी कविराय करो माया पर काबू ।
ख़ुद ही सुख और राम चले आयेंगे बाबू ॥
जेल में सुखराम को डेंगू का डर सता रहा है -१२-१०-९६
नेताओं ने कर दिए खाली कई मकान ।
कूलर खाली न करे मच्छर बेईमान ॥
मच्छर बेईमान, कोठरी में मंडराए ।
पंडित जी की पूजा में बाधा पहुँचाये ॥
कह जोशी कविराय नोट जिसने रखवाए ।
'एडिस' मच्छर भेज आपको वही डराए ॥
ताज़ा हाल
सुख-सागर से डर गए रहे किनारे बैठ ।
कैसे पायेंगे भला सच को गहरे पैठ ॥
सच को गहरे पैठ, यहाँ की जनता भोली ।
दो दिन पढ़ अख़बार सोचती मारो गोली ॥
कह जोशी कविराय हमारा कहा मानिए ।
बैक डेट से उलट-पलटकर हाल जानिए ॥
अब तो अस्सी पार हैं तन-मन से असमर्थ ।
ऐसे में इस सज़ा का बोलो क्या है अर्थ ॥
बोलो क्या है अर्थ, जेल यदि भेजें जाएँ ।
इसकी क्या गारंटी सज़ा पूरी कर पायें ॥
कह जोशी कविराय सज़ा यदि देना चाहो ।
ब्याज सहित सारे पैसे वापिस मंगवाओ ॥
२६ फरवरी २००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
लाला का डी.ए.
(छः प्रतिशत डी.ए. की घोषणा)
छः प्रतिशत डी.ए.बढ़ा, धन्यवाद श्रीमान ।
दस प्रतिशत दुर्लभ हुई, राशन की दूकान ।
राशन की दूकान, वस्तुएं आगे-आगे ।
पीछे-पीछे हम औ' डी.ए.भागे-भागे ।
जोशी हमें बनाना उल्लू छोड़ दीजिये ।
डी.ए. लाला के खाते में जोड़ दीजिये ।
२७-२-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
मुँह पर पट्टी
(राजस्थान विधान सभा में भाजपा सदस्यों ने मुँह पर पट्टी बाँध कर विरोध प्रदर्शन किया २६-२-२००९)
हम तो बांधें पेट पर, मुँह पर पट्टी आप ।
जनता नेता भोगते, अपने-अपने पाप ।
अपने-अपने पाप, आपने हमें धुन दिया ।
औ' हम इतने मूर्ख कि, आपको पुनः चुन लिया ।
कह जोशी कविराय, आपके मुँह पर पट्टी ।
इधर हो रही गुम जनता की सिट्टी-पिट्टी ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Friday, February 13, 2009
सांभर वाली झील
एड़ी नीचे कील, फील गुड ।
दे पतंग को ढील, फील गुड ॥
तेरे खातिर रात पूष की
बड़ा ले गयी चील, फील गुड ।
राणाजी के ट्रस्ट खुल गए
धक्के खाएँ भील, फील गुड ।
दिखने में ज़्यादा दिखती पर
तौलें हलकी खील, फील गुड ।
राजनीति में कहाँ मधुरता
सांभर वाली झील, फील गुड ।
५ फ़रवरी २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, February 12, 2009
जनता तो रस्ते का बूँटा
राम नाम की लूट, फील गुड ।
लूट सके तो लूट, फील गुड ॥
हमें रिटायर करें साठ पर
नेतागिरी अटूट, फीलगुड ।
मुसलमान, अँगरेज़ थक गए
अपने डालें फूट, फील गुड ।
क्या पढ़ना ऎसी चिट्ठी को
फटी हुई है कूंट, फील गुड ।
जनता तो रस्ते का बूँटा
जितना चाहे चूँट, फील गुड ।
यात्री सुविधा वर्ष वहाँ है
अपनी टाँग भरूंट,फील गुड ।
१५ फरवरी २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, February 11, 2009
मचलता पारा हुआ है आदमी
वक्त का मारा हुआ है आदमी ।
तंत्र से हारा हुआ है आदमी ।
बस चुनावों के समय उनके लिए
काम का नारा हुआ है आदमी ।
वोट दें, ना दें, चुने जायेंगे वो
क्यूँ यूँ बेचारा हुआ है आदमी ।
कब से घर सर पर उठाये फिर रहा
एक बंजारा हुआ है आदमी ।
क़ैद मुट्ठी में नहीं कर पाओगे
मचलता पारा हुआ है आदमी ।
साफ़ उत्तर आपको देना पड़ेगा
प्रश्न दुबारा हुआ है आदमी ।
११ मई २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
तंत्र से हारा हुआ है आदमी ।
बस चुनावों के समय उनके लिए
काम का नारा हुआ है आदमी ।
वोट दें, ना दें, चुने जायेंगे वो
क्यूँ यूँ बेचारा हुआ है आदमी ।
कब से घर सर पर उठाये फिर रहा
एक बंजारा हुआ है आदमी ।
क़ैद मुट्ठी में नहीं कर पाओगे
मचलता पारा हुआ है आदमी ।
साफ़ उत्तर आपको देना पड़ेगा
प्रश्न दुबारा हुआ है आदमी ।
११ मई २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम,
व्यंग्य
Tuesday, February 10, 2009
मोम का दिल
सामने जब आइना होगा ।
मुश्किलों से सामना होगा ।
ढूँढती थी मंजिलें हमको
आपने शायद सुना होगा ।
आग का जिस में बसेरा है
मोम का वो दिल बना होगा ।
आप थोड़ी देर को हैं साथ
मन बहुत फिर अनमना होगा ।
छोड़ आए आशियाँ अपना
उम्र भर अब आसमां होगा ।
१६ अगस्त २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, February 9, 2009
ख़ुद ही रस्ता भूल गए हैं
मेरा साथ निभाने वाले ।
निकले दिल बहलाने वाले ॥
पहले अपनी जान बचालें
मेरी जान बचाने वाले ।
थोड़े दिन ही जम पाते हैं
केवल रंग जमाने वाले ।
अन्दर से कमजोर बहुत हैं
ऊँचे घर तहखाने वाले ।
ख़ुद ही रस्ता भूल गए हैं
मुझको राह दिखाने वाले ।
पहले ख़ुद से आँख मिलालें
मुझसे आँख मिलाने वाले ।
२३ सितम्बर २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, February 8, 2009
इतिहास में सोई नदी
बात राजा को यही खलने लगी है ।
क्यों कलम तलवार सी चलने लगी है ।
एक कविता जी विवादों से घिरी थी
अब हमारे गाँव में रहने लगी है ।
सब सहा, कुछ भी न बोली आज तक
वह धरा प्रतिवाद क्यों करने लगी है ।
जो नदी इतिहास में सोई पड़ी थी
हरहराती मुल्क में बहने लगी है ।
ज़िक्र ख़ुद से भी नहीं जिसका किया
बात क्यों दुनिया वही कहने लगी है ।
रात बीती पर नहीं सूरज उगा
आखरी कंदील भी मरने लगी है ।
जो कभी दुर्गा, सरस्वती और श्री थी
आज ख़ुद की छाँव से डरने लगी है ।
अब कहो फ़रियाद की जाए कहाँ पर
बाड़ ही जब खेत को चरने लगी है ।
२८ अक्टूबर २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
क्यों कलम तलवार सी चलने लगी है ।
एक कविता जी विवादों से घिरी थी
अब हमारे गाँव में रहने लगी है ।
सब सहा, कुछ भी न बोली आज तक
वह धरा प्रतिवाद क्यों करने लगी है ।
जो नदी इतिहास में सोई पड़ी थी
हरहराती मुल्क में बहने लगी है ।
ज़िक्र ख़ुद से भी नहीं जिसका किया
बात क्यों दुनिया वही कहने लगी है ।
रात बीती पर नहीं सूरज उगा
आखरी कंदील भी मरने लगी है ।
जो कभी दुर्गा, सरस्वती और श्री थी
आज ख़ुद की छाँव से डरने लगी है ।
अब कहो फ़रियाद की जाए कहाँ पर
बाड़ ही जब खेत को चरने लगी है ।
२८ अक्टूबर २००४
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Saturday, February 7, 2009
ग्लोबल गाँव
ठुड्डी घुटनों तक पहुँचाई ।
फिर भी छोटी पड़ी रजाई ।
हमसे इतनी दूर हुए वो
जितनी डी.ऐ. से महँगाई ।
खिड़की, दरवाजे बिन पल्ले
हवा बह रही है पछवाई ।
सुख को बहुमत ना मिल पाया
औ' दुःख ने कुर्सी हथियाई ।
रहे पास में लेकिन ऐसे
जैसे अमरीका क्यूबाई ।
दुनिया ग्लोबल गाँव हुई पर
वो ही बकरे, वही कसाई ।
२१ मार्च २०००
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
फिर भी छोटी पड़ी रजाई ।
हमसे इतनी दूर हुए वो
जितनी डी.ऐ. से महँगाई ।
खिड़की, दरवाजे बिन पल्ले
हवा बह रही है पछवाई ।
सुख को बहुमत ना मिल पाया
औ' दुःख ने कुर्सी हथियाई ।
रहे पास में लेकिन ऐसे
जैसे अमरीका क्यूबाई ।
दुनिया ग्लोबल गाँव हुई पर
वो ही बकरे, वही कसाई ।
२१ मार्च २०००
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
globalization,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Friday, February 6, 2009
उन रातों में दीप जलाओ
यूँ तो वह कमज़ोर नहीं है ।
लेकिन कोई ज़ोर नहीं है ॥
ऊँची-ऊँची उड़ें पतंगें
मगर हाथ में डोर नहीं है ।
उन रातों में दीप जलाओ
जिनकी कोई भोर नहीं है ।
वे छींकें तो हल्ला मचता
लोग मरें तो शोर नहीं है ।
उतर गए ऎसी धारा में
जिसका कोई छोर नहीं है ।
कैसा राष्ट्र बनाया देखो
दीन-दुखी को ठौर नहीं है ।
५ अप्रेल २०००
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, February 5, 2009
तुमसे बात करनी थी
दर्द होता वो या दवा होता ।
कुछ न कुछ तो मगर हुआ होता ।
पर्दादारी भी इतनी क्या कीजे
कम कम ख़ुद से तो कहा होता ।
किसी के साथ हँसते रो लेते
आदमीयत का हक अदा होता ।
सुबह तक तुमसे बात करनी थी
तू अगर शाम को मिला होता ।
ये कठिन रास्ते सहल होते
करके हिम्मत जो चल पड़ा होता ।
दिल तो पत्थर में भी धड़कता है
तूने 'गर प्यार से छुआ होता ।
३१ जुलाई २००२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
बेगाने मौसम
मन की बात न माने मौसम ।
क्यूँ इतने बेगाने मौसम ।
मीठा सपना बन कर आते
गुज़रे हुए ज़माने मौसम ।
खेतों ने अर्जी भेजी पर
करते रहे बहाने मौसम ।
जब पानी बिन फसल मर गयी
तब आए समझाने मौसम ।
दर्द किसी का कब सुनते हैं
आते दर्द सुनाने मौसम ।
देर रात दस्तक देते हैं
खौफनाक, अनजाने मौसाम ।
तहखानों में कैद हो गए
सुंदर, सुखद, सुहाने मौसम ।
२ अगस्त २००२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, February 4, 2009
अपना घर
सर पर है झीना सा अम्बर ।
तिस पर मौसम के ये तेवर ।
हालत पतली है, खस्ता है
उनके आश्वासन तो हैं पर ।
सारे सफ़र निरर्थक निकले
जैसी धरती, वैसा अम्बर ।
वह अलाव तो ठंडा ही था
हम बैठे थे जिसे घेर कर ।
सूरज आसपास ही होगा
मुखर हो रहे कलरव के स्वर ।
कुछ साजो-सामान नहीं है
फ़िर भी अपना घर, अपना घर ।
४ जनवरी २००३
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, January 22, 2009
ऐसा भी अफसाना
यूं भी आँख चुराना क्या ।
इतना भी घबराना क्या ।
जब ख़ुद से अनबन रहती हो
दुनिया से बतियाना क्या ।
अगर फैसले पहले तय हों
तो फरियाद सुनाना क्या ।
जिसमें नायक का मरना तय
ऐसा भी अफसाना क्या ।
'गर ताबीर नहीं हो तो फिर
सपना लाख सुहाना क्या ।
कोई मक़सद नहीं अगर तो
जीना क्या, मर जाना क्या ।
१२ नवम्बर १९९९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
इतना भी घबराना क्या ।
जब ख़ुद से अनबन रहती हो
दुनिया से बतियाना क्या ।
अगर फैसले पहले तय हों
तो फरियाद सुनाना क्या ।
जिसमें नायक का मरना तय
ऐसा भी अफसाना क्या ।
'गर ताबीर नहीं हो तो फिर
सपना लाख सुहाना क्या ।
कोई मक़सद नहीं अगर तो
जीना क्या, मर जाना क्या ।
१२ नवम्बर १९९९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Friday, January 16, 2009
आप सो रहे हैं टाँग पसारे
सूरज चन्दा सारे तारे ।
धरती और आकाश तुम्हारे ॥
सारा चारा आप चर गए
लोग अभी तक हैं बेचारे ।
ओठों से कुछ और बोलते
आँख करे कुछ और इशारे ।
एक टाँग पर मुल्क खड़ा है
आप सो रहे हैं टाँग पसारे ।
बाट जोतते उजियारे की
अब भी बस्ती गाँव दुआरे ।
४ सितम्बर १९९७
-- ११ साल पहले लिखी यह ग़ज़ल आज भी उतनी ही शाश्वत प्रतीत होती है, कि समझ नहीं आता अपनी नज़र की दाद दूँ या देश के दुर्भाग्य पर शोक ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
politics,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम,
व्यंग्य
Wednesday, January 14, 2009
डायरी
करती नींद हराम डायरी ।
कैसी है हे राम! डायरी ॥
करते जो हालात कराता
कुछ ना आए काम डायरी ॥
वह लिखने में कब आता है
जो देती अंजाम डायरी ॥
नहीं दीखती जिनको मंजिल
उनके लिए मुकाम डायरी ॥
ज्यादातर को गुठली भर है
कुछ के खातिर आम डायरी ॥
राजा भोज साफ़ बच जाते
गंगू को इल्ज़ाम डायरी ॥
दुनिया की डायरियाँ झूठी
सच जो लिक्खें राम डायरी ॥
२८ अगस्त १९९८
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Tuesday, January 13, 2009
महलों में दीवाली देख
देख झरोखे,जाली देख ।
महलों में दीवाली देख ॥
राजा रखवालों में छुप कर
करे तेरी रखवाली देख ।
क्यों ओठों पर जीभ फिराता
उनके रुख की लाली देख ।
अपनी भूख भूल टी.वी. में
सजी सजाई थाली देख ।
तेरी चाँद भले हो गंजी
उनकी जुल्फें काली देख ।
पहुँच गया सब माल विदेशों
अपनी जेबें खाली देख ।
अपने मुँह मिट्ठू बनते वो
लोग बजाते ताली देख ।
'तंत्र' मसीहा बन कर बैठा
सारा 'लोक' सवाली देख ।
भले जनों को भाषण झाड़ें
लम्पट धूर्त मवाली देख ।
छोड़ देखना फिल्मी 'फायर' *
जा अपनी घरवाली देख ।
(* दीपा मेहता की फ़िल्म फायर का सन्दर्भ )
१५ दिसम्बर १९९८
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
महलों में दीवाली देख ॥
राजा रखवालों में छुप कर
करे तेरी रखवाली देख ।
क्यों ओठों पर जीभ फिराता
उनके रुख की लाली देख ।
अपनी भूख भूल टी.वी. में
सजी सजाई थाली देख ।
तेरी चाँद भले हो गंजी
उनकी जुल्फें काली देख ।
पहुँच गया सब माल विदेशों
अपनी जेबें खाली देख ।
अपने मुँह मिट्ठू बनते वो
लोग बजाते ताली देख ।
'तंत्र' मसीहा बन कर बैठा
सारा 'लोक' सवाली देख ।
भले जनों को भाषण झाड़ें
लम्पट धूर्त मवाली देख ।
छोड़ देखना फिल्मी 'फायर' *
जा अपनी घरवाली देख ।
(* दीपा मेहता की फ़िल्म फायर का सन्दर्भ )
१५ दिसम्बर १९९८
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, January 12, 2009
सूरज जलता है
वो यूँ तो चुप रहता है ।
पर कितना कुछ कहता है ॥
उसकी आँखों का आँसू
मेरी आँखों बहता है ।
जिससे मेरा झगड़ा है
दिल में ही तो रहता है ।
पत्थर के सीने में भी
कोई झरना बहता है ।
तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।
२३ दिसम्बर १९९८
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, January 11, 2009
हम तो
हम क्या करते 'गर कमरों में कुरसी ठिठुरे ।
रगड़ हथेली गरमी पैदा करते हम तो ॥
उनके महलों के दीपक की गरमी लेकर
खड़े रात भर जमुना जल में रहते हम तो ।
फिक्रमंद हैं आप हमारे लिए सुना है
इसी भरोसे हर मौसम को सहते हम तो ।
आप चेतनायुक्त, आपकी वाणी में बल
गूँगे मक्खी-मच्छर हैं क्या करते हम तो ।
आप तैर सकते उलटी धाराओं में भी
इक लावारिस लाश धार संग बहते हम तो ।
पेड़ जलें गरमी में जैसे, सरदी में भी
हम भी वैसे बाड़मेर हैं दहते हम तो । *
(* राजस्थान के बाड़मेर जिले में गरमी और सर्दी दोनों अधिक पड़ते हैं)
१ जनवरी १९९९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
politics,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Saturday, January 10, 2009
शब्द और आचरण
भावना बिन क्या धरा है व्याकरण में ।
शब्द का अनुवाद तो हो आचरण में ॥
हैं सुरक्षित चंद घर औ ' लोग माना
घूमता आतंक पर वातावरण में ।
स्वयं की रक्षा सभी मिलकर करें अब
'तंत्र' तो है लिप्त अपराधीकरण में ।
छोड़िए सद्भावना संदेश देना
होइए शामिल कभी जीवन मरण में ।
और भी हैं धर्म मानव देह के पर
दे रहें हैं ध्यान सब बाजीकरण में ।
रत्न आभूषण बहुत पहने हुए हैं
पर कहाँ हैं सत्य-करुणा आभरण में ।
२८ जनवरी १९९९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
globalization,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, January 5, 2009
ईद और मुहर्रम
उनसे सारी उमर ठनी ।
मगर न कोई बात बनी ।
घर-आँगन चंदन महके
मन में फूले नागफनी ।
गीली दीवारें मिट्टी की
सर पर काली घटा तनी ।
जो जितने अनजाने थे
उनमें उतनी अधिक छनी ।
झोंपडियों पर लिखा मुहर्रम
बड़े घरों में ईद मनी ।
१७ दिसम्बर १९९८
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Subscribe to:
Posts (Atom)