पैसे चार कमाने में ।
मरते हैं जी जाने में ॥
कितना ऊँचा काम कर गए ।
इस चालाक ज़माने में ॥
हमने सारी उमर बिता दी
उनका दिल बहलाने में ॥
फिर भी जगह मिली चौखट पर
उनके दौलतखाने में ॥
बैठक में मीठी लफ़्फ़ाजी
सत्य कहीं तहखाने में ॥
भीड़-भाड़ में क्या बतलाएँ
कभी मिलो वीराने में ॥
२४ अक्टूबर २००५
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
6 comments:
प्रणाम कविवर!
aapki rachnaon ko mera naman.joshi ji , mere pas aapki tareef ke liye shabdon ki kami hai, kuchh iska bhi ilaaj karen.
swapnyogesh.blogspot.com
shabdateet sundar..!
फिर भी जगह मिली चौखट पर
उनके दौलतखाने में ॥
आज आपका ये शेर पूरा नहीं लगा इसको पूरा करने के लिए इसके पहले वाला शेर भी जोड़ना पड़ेगा जो नियम के खिलाफ है हर शेर को अपने में पूर्ण होना चाहिए
आपका वीनस केसरी
वीनस, धन्यवाद |
वैसे कविता में कवि के भाव ही मुख्य होते हैं, फिर भी हल्का सा परिवर्तन कर के नियम भी रखा जा सकता है -
जगह मिली तो बस चौखट पर
उनके दौलतखाने में |
बैठक में मीठी लफ़्फ़ाजी
सत्य कहीं तहखाने में ॥
भीड़-भाड़ में क्या बतलाएँ
कभी मिलो वीराने में ॥
ye panktiyaan achhi lagi.
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