बात राजा को यही खलने लगी है ।
क्यों कलम तलवार सी चलने लगी है ।
एक कविता जी विवादों से घिरी थी
अब हमारे गाँव में रहने लगी है ।
सब सहा, कुछ भी न बोली आज तक
वह धरा प्रतिवाद क्यों करने लगी है ।
जो नदी इतिहास में सोई पड़ी थी
हरहराती मुल्क में बहने लगी है ।
ज़िक्र ख़ुद से भी नहीं जिसका किया
बात क्यों दुनिया वही कहने लगी है ।
रात बीती पर नहीं सूरज उगा
आखरी कंदील भी मरने लगी है ।
जो कभी दुर्गा, सरस्वती और श्री थी
आज ख़ुद की छाँव से डरने लगी है ।
अब कहो फ़रियाद की जाए कहाँ पर
बाड़ ही जब खेत को चरने लगी है ।
२८ अक्टूबर २००४
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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