Sunday, February 8, 2009

इतिहास में सोई नदी

बात राजा को यही खलने लगी है ।
क्यों कलम तलवार सी चलने लगी है ।

एक कविता जी विवादों से घिरी थी
अब हमारे गाँव में रहने लगी है ।

सब सहा, कुछ भी न बोली आज तक
वह धरा प्रतिवाद क्यों करने लगी है ।

जो नदी इतिहास में सोई पड़ी थी
हरहराती मुल्क में बहने लगी है ।

ज़िक्र ख़ुद से भी नहीं जिसका किया
बात क्यों दुनिया वही कहने लगी है ।

रात बीती पर नहीं सूरज उगा
आखरी कंदील भी मरने लगी है ।

जो कभी दुर्गा, सरस्वती और श्री थी
आज ख़ुद की छाँव से डरने लगी है ।

अब कहो फ़रियाद की जाए कहाँ पर
बाड़ ही जब खेत को चरने लगी है ।

२८ अक्टूबर २००४

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

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