Monday, May 4, 2009

कभी प्यार से छुआ नहीं


लूट-मार, चोरी-डाका कुछ हुआ नहीं ।
फिर भी मेरे घर में कुछ भी बचा नहीं ॥

अपने दुःख की चीख-पुकारें करते सब
मगर  पराया दर्द किसीने सुना नहीं ॥

फलवाली शाखाएँ झुक-झुक जाती हैं
बिन फलवाला पेड़ ज़रा भी झुका नहीं ॥

उन आमों में मीठा रस कैसे होगा
कभी जिन्होंने लू का झोंका सहा नहीं ॥

अपना घाव तभी तक गहरा लगता है
जब तक औरों के घावों का पता नहीं ॥

प्राण धड़कते हैं पत्थर के दिल में भी
मगर किसीने कभी प्यार से छुआ नहीं ॥

सबको अपनी रचना कालजयी लगती
किसी और का गीत किसी को जँचा नहीं ॥

१७ जनवरी २००९


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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1 comment:

Prakash Badal said...

लूट-मार, चोरी-डाका कुछ हुआ नहीं ।
फिर भी मेरे घर में कुछ भी बचा नहीं ॥

उन आमों में मीठा रस कैसे होगा
कभी जिन्होंने लू का झोंका सहा नहीं ॥

अंकल फिर आपकी एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल

वाह! लुट गये बिना लुटे ही कमाल की ग़ज़ल!