Thursday, February 5, 2009
बेगाने मौसम
मन की बात न माने मौसम ।
क्यूँ इतने बेगाने मौसम ।
मीठा सपना बन कर आते
गुज़रे हुए ज़माने मौसम ।
खेतों ने अर्जी भेजी पर
करते रहे बहाने मौसम ।
जब पानी बिन फसल मर गयी
तब आए समझाने मौसम ।
दर्द किसी का कब सुनते हैं
आते दर्द सुनाने मौसम ।
देर रात दस्तक देते हैं
खौफनाक, अनजाने मौसाम ।
तहखानों में कैद हो गए
सुंदर, सुखद, सुहाने मौसम ।
२ अगस्त २००२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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पुस्तक - बेगाने मौसम
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2 comments:
बहुत ही उम्दा रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।
जब पानी बिन फसल मर गयी
तब आए समझाने मौसम ।
दर्द किसी का कब सुनते हैं
आते दर्द सुनाने मौसम ।
आपने जो शेर छांटे दरअसल पूरी ग़ज़ल की जान हैं | गद्य वाला ब्लॉग भी देखें http://jhoothasach.blogspot.com/
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