Saturday, May 16, 2009
मुल्क फँसा है मझधारों में
गद्दी पर असवार* हो गए ।
जनता से सरकार हो गए ॥
'सोने की चिड़िया' पर उनके
सब के सब अधिकार हो गए ॥
पहले तो बेकार घूमते
लेकिन अब बाकार** हो गए ॥
कर्ज़दार है मुल्क भले ही
वे सरमायादार हो गए ॥
देश अंधेरे में पर उनके
सब सपने साकार हो गए ॥
पार नहीं पड़ रही 'लोक' की
पर वे अपरम्पार हो गए ॥
मुल्क फँसा है मझधारों में
उनके बेड़े पार हो गए ॥
२७ जनवरी २००६
* सवार ** कार सहित
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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पुस्तक - बेगाने मौसम
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4 comments:
ab tak koi role nahin tha
extra the kirdaar ho gaye
joshi ji lagta hai apko padh kar hamen bhi gazal kahni aa jayegi.
bahut khoob rahi aapki rachna. wah wah wah.
वाह वाह
कर्ज़दार है मुल्क भले ही
वे सरमायादार हो गए ॥
जोशी जी क्या खूब कही है .....!!
joshi g maine utpataang kaveetaaon par 50-50 tippaniyan dedhi hai.magar aapki sundar rahna par matr 3 tippani dhekhkar atyant dhukh hua.
ati sundar rachna ke liye shubhkamna.
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