Sunday, May 10, 2009
अन्दर-बाहर
जैसे दिखते बाहर-बाहर ।
क्या तुम वैसे ही हो अन्दर ॥
सर ढँक लें तो पैर उघड़ते
छोटी पड़ी सदा ही चादर ॥
उनका घर उस पार क्षितिज के
और बहुत छोटे अपने पर ॥
बहुत दूर आ गए नीड़ से
अब तो बस अम्बर ही अम्बर ॥
उनकी किस छवि को सच मानें
मुख में राम बगल में खंज़र ॥
सारा खेल निरर्थक निकला
हम प्यासे औ' आप समंदर ॥
१ अप्रेल २००५
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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पुस्तक - बेगाने मौसम
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3 comments:
उनकी किस छवि को सच मानें
मुख में राम बगल में खंज़र ॥
wah joshi ji maza baandh diya. har sher lajawaab hai. dheron badhai.
सारा खेल निरर्थक निकला
हम प्यासे औ' आप समंदर ॥
बहुत अधिक खूब!
सर ढँक लें तो पैर उघड़ते
छोटी पड़ी सदा ही चादर ॥
सारा खेल निरर्थक निकला
हम प्यासे औ' आप समंदर ॥
ये दो शेर ख़ास पसंद आये
आपका वीनस केसरी
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