सांभर वाली झील
एड़ी नीचे कील, फील गुड ।
दे पतंग को ढील, फील गुड ॥
तेरे खातिर रात पूष की
बड़ा ले गयी चील, फील गुड ।
राणाजी के ट्रस्ट खुल गए
धक्के खाएँ भील, फील गुड ।
दिखने में ज़्यादा दिखती पर
तौलें हलकी खील, फील गुड ।
राजनीति में कहाँ मधुरता
सांभर वाली झील, फील गुड ।
५ फ़रवरी २००४
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
2 comments:
बड़ा फील गुड हो रहा है रचना पढ़कर.
बहुत बढिया!!अच्छी लगी रचना।
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