Sunday, May 10, 2009

मेरा डर


उनका प्यार तसव्वुर निकला ।
कितना सच मेरा डर निकला ॥

किया जहाँ भी रैन बसेरा ।
बटमारों का ही घर निकला ॥

सबको साया देने वाला ।
आँचल आँसू से तर निकला ॥

सभी संगसारों की ज़द में
केवल मेरा ही सर निकला ॥

उनका ख़त बिन पढ़ा रह गया
सारा तंत्र निरक्षर निकला ॥

जीवन भर परबत खोदा पर
जब निकला चूहा भर निकला ॥

२३ मार्च २००५

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[ इतने दिनों तक पोस्ट न कर पाने के लिए मैं आप सबका क्षमार्थी हूँ, पिताजी ने एक बार कंप्यूटर जो सीखा, अब टाइप कर कर कतार लम्बी कर दी है, मैं ही पीछे रह गया हूँ पोस्ट कराने में - शशिकांत जोशी ]


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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3 comments:

शोभा said...

वाह बहुत अच्छा लिखा है. बधाई स्वीकारें.

joshi kavirai said...

धन्यवाद, सुधि पाठकों से ही कवि या लेखक को प्रोत्साहन मिलता है, वरना दिल के घाव लिए तो सभी घूमते हैं !

वीनस केसरी said...

सुन्दर गजल
आपका वीनस केसरी