Wednesday, December 30, 2009
आपके बाप का है वतन, सेठजी
आपके बाप का है वतन, सेठजी ।
लूटो जितना तुम्हारा हो मन, सेठजी ।
लोग भूखे रहें, कोई मुद्दा नहीं
कर ही लेंगे ये सब कुछ सहन, सेठजी ।
कोई मूरत लगे या बने मकबरा
खर्च हम को ही करना वहन, सेठजी ।
घास हमको न डाले कोई पंच भी
आपके साथ सारा सदन, सेठजी ।
हमको दो गज़ ज़मीं भी नहीं मिल सकी
आपके पास धरती-गगन, सेठजी ।
ठाठ ही ठाठ हैं, आप करते हैं क्या
प्रश्न ये ही है सबसे गहन, सेठजी ।
१३-१२-२००९
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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5 comments:
बहुत सटीक!!!
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत शानदार और प्रभावशाली रचना। बधाई।
एक-एक लफ्ज २४ कैरट का है ! बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
जोशी जी, राम-राम सा
म्हे तो पहली बार आज थारा व्लाग पे आया, चोखो लाग्यो, सेठ जी पढण नै मिल्यो,थारी प्रोफ़ाईल मे गांव शहर को पतो को्नी मिल्यो, थ्हे बता दीजो,
थाने और सारा कुणबा नै नया साल की राम-राम
wah wah wah, behatareen.
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