Monday, January 12, 2009

सूरज जलता है


वो यूँ तो चुप रहता है ।
पर कितना कुछ कहता है ॥

उसकी आँखों का आँसू
मेरी आँखों बहता है ।

जिससे मेरा झगड़ा है
दिल में ही तो रहता है ।

पत्थर के सीने में भी
कोई झरना बहता है ।

तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।

२३ दिसम्बर १९९८

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7 comments:

Anonymous said...

'तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।'

-गंभीर पंक्तियाँ. साधुवाद.

अमृत कुमार तिवारी said...

"पत्थर के सीने में भी
कोई झरना बहता है ।

तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।"
दिल को छू गईं...आभार

संगीता पुरी said...

बहुत ही गंभीर रचना ....बधाई।

Anonymous said...

जहाँ हर कोई ब्लॉग बना कर बोले जा रहे हैं, वहाँ आपकी गंभीर रचनाएँ मन को व्यथित सी कर देती हैं | क्या स्रोत है जनाब, भावनाएं और उनकी अभिव्यक्ति दोनों लाजवाब |

Prakash Badal said...
This comment has been removed by the author.
Prakash Badal said...

नमस्कार अंकल,

आपकी ग़ज़ल मुझे एक बार फिर झंझोड़कर चली गई। वाह वाह हर शेर जितना हलकी भाषा में है उतना भारी अर्थ लिए हुए है।

joshi kavirai said...

priya badal,mausam ne sab rang dho diye . sarii bheden kalii sahab .. bahut badhiya .

jinake rang dhule we janen .kyuun kale ko galii sahab .

ramesh joshi