सूरज जलता है
वो यूँ तो चुप रहता है ।
पर कितना कुछ कहता है ॥
उसकी आँखों का आँसू
मेरी आँखों बहता है ।
जिससे मेरा झगड़ा है
दिल में ही तो रहता है ।
पत्थर के सीने में भी
कोई झरना बहता है ।
तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।
२३ दिसम्बर १९९८
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7 comments:
'तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।'
-गंभीर पंक्तियाँ. साधुवाद.
"पत्थर के सीने में भी
कोई झरना बहता है ।
तुमने सिर्फ़ रोशनी देखी
लेकिन सूरज जलता है ।"
दिल को छू गईं...आभार
बहुत ही गंभीर रचना ....बधाई।
जहाँ हर कोई ब्लॉग बना कर बोले जा रहे हैं, वहाँ आपकी गंभीर रचनाएँ मन को व्यथित सी कर देती हैं | क्या स्रोत है जनाब, भावनाएं और उनकी अभिव्यक्ति दोनों लाजवाब |
नमस्कार अंकल,
आपकी ग़ज़ल मुझे एक बार फिर झंझोड़कर चली गई। वाह वाह हर शेर जितना हलकी भाषा में है उतना भारी अर्थ लिए हुए है।
priya badal,mausam ne sab rang dho diye . sarii bheden kalii sahab .. bahut badhiya .
jinake rang dhule we janen .kyuun kale ko galii sahab .
ramesh joshi
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