ईद और मुहर्रम
उनसे सारी उमर ठनी ।
मगर न कोई बात बनी ।
घर-आँगन चंदन महके
मन में फूले नागफनी ।
गीली दीवारें मिट्टी की
सर पर काली घटा तनी ।
जो जितने अनजाने थे
उनमें उतनी अधिक छनी ।
झोंपडियों पर लिखा मुहर्रम
बड़े घरों में ईद मनी ।
१७ दिसम्बर १९९८
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