Monday, January 5, 2009

ईद और मुहर्रम



उनसे सारी उमर ठनी ।
मगर न कोई बात बनी ।

घर-आँगन चंदन महके
मन में फूले नागफनी ।

गीली दीवारें मिट्टी की
सर पर काली घटा तनी ।

जो जितने अनजाने थे
उनमें उतनी अधिक छनी ।

झोंपडियों पर लिखा मुहर्रम
बड़े घरों में ईद मनी ।

१७ दिसम्बर १९९८

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