Thursday, May 14, 2009

चार फूल औ शूल हज़ार


ऊँचे लोगों से व्यवहार ।
किन ख़्वाबों में हो तुम यार ॥

ये रस्ते आसान नहीं हैं
चार फूल औ शूल हज़ार ॥

गर्दन, आँखे, कमर झुक गए
जो भी हो आया दरबार ॥

बाट अलग लेने -देने के
तुमसे कैसे हो व्यापार ॥

अब जाओ, कल बात करेंगे
तुम पर कोई और सवार ॥

११ सितम्बर २००५

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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3 comments:

Prakash Badal said...

वाह अँकल वाह बहुत ही बेहतरीन रचना!

अब जाओ कल बात करेंग़े,
तुम पर कोई और सवार!

Yogesh Verma Swapn said...

joshi ji aapki gazalen diwana bana rahi hain. bahut khoob.

joshi kavirai said...

आप लोगों को पसंद है जो मैं देख कर लिखता हूँ, समझ नहीं आता की खुश हुआ जाए की दुःखी! जो मेरी बातों को समझा, उसे भी कहीं देखनी पड़ी है ऎसी दुनिया .