चार फूल औ शूल हज़ार
ऊँचे लोगों से व्यवहार ।
किन ख़्वाबों में हो तुम यार ॥
ये रस्ते आसान नहीं हैं
चार फूल औ शूल हज़ार ॥
गर्दन, आँखे, कमर झुक गए
जो भी हो आया दरबार ॥
बाट अलग लेने -देने के
तुमसे कैसे हो व्यापार ॥
अब जाओ, कल बात करेंगे
तुम पर कोई और सवार ॥
११ सितम्बर २००५
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
3 comments:
वाह अँकल वाह बहुत ही बेहतरीन रचना!
अब जाओ कल बात करेंग़े,
तुम पर कोई और सवार!
joshi ji aapki gazalen diwana bana rahi hain. bahut khoob.
आप लोगों को पसंद है जो मैं देख कर लिखता हूँ, समझ नहीं आता की खुश हुआ जाए की दुःखी! जो मेरी बातों को समझा, उसे भी कहीं देखनी पड़ी है ऎसी दुनिया .
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