Friday, February 6, 2009
उन रातों में दीप जलाओ
यूँ तो वह कमज़ोर नहीं है ।
लेकिन कोई ज़ोर नहीं है ॥
ऊँची-ऊँची उड़ें पतंगें
मगर हाथ में डोर नहीं है ।
उन रातों में दीप जलाओ
जिनकी कोई भोर नहीं है ।
वे छींकें तो हल्ला मचता
लोग मरें तो शोर नहीं है ।
उतर गए ऎसी धारा में
जिसका कोई छोर नहीं है ।
कैसा राष्ट्र बनाया देखो
दीन-दुखी को ठौर नहीं है ।
५ अप्रेल २०००
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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पुस्तक - बेगाने मौसम
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3 comments:
बेहतरीन गज़ल...बधाई.
ऊँची-ऊँची उड़ें पतंगें
मगर हाथ में डोर नहीं है ।
...........
वे छींकें तो हल्ला मचता
लोग मरें तो शोर नहीं है ।
...बहुत सुंदर रचना
bahut badhiya ghazal....
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