तन्हा नेक इरादे तुम
कितने सीधे-सादे तुम ।
बचपन के से वादे तुम ॥
लफ़्फ़ाजों की महफ़िल में
तन्हा नेक इरादे तुम ॥
मेरी छोटी सी आमद है
करते रोज़ तकादे तुम ॥
ठिठक गए बासंती झोंके
पहने हुए लबादे तुम ॥
तृप्त भला कैसे हो लोगे
प्यासा मुझे उठाके तुम ॥
मंजिल पर कैसे पहुँचोगे
भारी गठरी लादे तुम ॥
२५ अगस्त २००५
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
5 comments:
simple shabdon men lajawaab rachna. badhai sweekaren. kabhi mere blog par padharen.
Waah !! Bahut sundar kavita..
आप लोगों को पसंद है जो मैं देख कर लिखता हूँ, समझ नहीं आता की खुश हुआ जाए की दुःखी! जो मेरी बातों को समझा, उसे भी कहीं देखनी पड़ी है ऎसी दुनिया | काश की किसी को ऎसी रचना लिखने का मौका ही ना मिले!
बहुत सुन्दर गजल
वीनस केसरी
अति सुन्दर!
मेरी छोटी सी आमद है
करते रोज़ तकादे तुम ॥
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