Thursday, May 14, 2009

तन्हा नेक इरादे तुम


कितने सीधे-सादे तुम ।
बचपन के से वादे तुम ॥

लफ़्फ़ाजों की महफ़िल में
तन्हा नेक इरादे तुम ॥

मेरी छोटी सी आमद है
करते रोज़ तकादे तुम ॥

ठिठक गए बासंती झोंके
पहने हुए लबादे तुम ॥

तृप्त भला कैसे हो लोगे
प्यासा मुझे उठाके तुम ॥

मंजिल पर कैसे पहुँचोगे
भारी गठरी लादे तुम ॥

२५ अगस्त २००५

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5 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

simple shabdon men lajawaab rachna. badhai sweekaren. kabhi mere blog par padharen.

रंजना said...

Waah !! Bahut sundar kavita..

joshi kavirai said...

आप लोगों को पसंद है जो मैं देख कर लिखता हूँ, समझ नहीं आता की खुश हुआ जाए की दुःखी! जो मेरी बातों को समझा, उसे भी कहीं देखनी पड़ी है ऎसी दुनिया | काश की किसी को ऎसी रचना लिखने का मौका ही ना मिले!

वीनस केसरी said...

बहुत सुन्दर गजल
वीनस केसरी

shashi said...

अति सुन्दर!

मेरी छोटी सी आमद है
करते रोज़ तकादे तुम ॥