Tuesday, January 13, 2009

महलों में दीवाली देख

देख झरोखे,जाली देख ।
महलों में दीवाली देख ॥

राजा रखवालों में छुप कर
करे तेरी रखवाली देख ।

क्यों ओठों पर जीभ फिराता
उनके रुख की लाली देख ।

अपनी भूख भूल टी.वी. में
सजी सजाई थाली देख ।

तेरी चाँद भले हो गंजी
उनकी जुल्फें काली देख ।

पहुँच गया सब माल विदेशों
अपनी जेबें खाली देख ।

अपने मुँह मिट्ठू बनते वो
लोग बजाते ताली देख ।

'तंत्र' मसीहा बन कर बैठा
सारा 'लोक' सवाली देख ।

भले जनों को भाषण झाड़ें
लम्पट धूर्त मवाली देख ।

छोड़ देखना फिल्मी 'फायर' *
जा अपनी घरवाली देख ।

(* दीपा मेहता की फ़िल्म फायर का सन्दर्भ )

१५ दिसम्बर १९९८

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

1 comment:

Manish Kumar said...

sahaj shabdon mein seedhi baat kahi aapne pasand aayi kavita..