देख झरोखे,जाली देख ।
महलों में दीवाली देख ॥
राजा रखवालों में छुप कर
करे तेरी रखवाली देख ।
क्यों ओठों पर जीभ फिराता
उनके रुख की लाली देख ।
अपनी भूख भूल टी.वी. में
सजी सजाई थाली देख ।
तेरी चाँद भले हो गंजी
उनकी जुल्फें काली देख ।
पहुँच गया सब माल विदेशों
अपनी जेबें खाली देख ।
अपने मुँह मिट्ठू बनते वो
लोग बजाते ताली देख ।
'तंत्र' मसीहा बन कर बैठा
सारा 'लोक' सवाली देख ।
भले जनों को भाषण झाड़ें
लम्पट धूर्त मवाली देख ।
छोड़ देखना फिल्मी 'फायर' *
जा अपनी घरवाली देख ।
(* दीपा मेहता की फ़िल्म फायर का सन्दर्भ )
१५ दिसम्बर १९९८
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1 comment:
sahaj shabdon mein seedhi baat kahi aapne pasand aayi kavita..
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