Saturday, January 10, 2009

शब्द और आचरण


भावना बिन क्या धरा है व्याकरण में ।
शब्द का अनुवाद तो हो आचरण में ॥

हैं सुरक्षित चंद घर औ ' लोग माना
घूमता आतंक पर वातावरण में ।

स्वयं की रक्षा सभी मिलकर करें अब
'तंत्र' तो है लिप्त अपराधीकरण में ।

छोड़िए सद्भावना संदेश देना
होइए शामिल कभी जीवन मरण में ।

और भी हैं धर्म मानव देह के पर
दे रहें हैं ध्यान सब बाजीकरण में ।

रत्न आभूषण बहुत पहने हुए हैं
पर कहाँ हैं सत्य-करुणा आभरण में ।

२८ जनवरी १९९९

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