Sunday, April 12, 2009

लोकतंत्र का सर्कस - लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ


(१) एक नूर से

इक दूजे की उलटते सभी यहाँ पर खाट ।
लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ ॥
सोलह दूनी आठ, न अल्ला, राघव, माधव ।
ब्रह्मण, बनिया, जात, दलित, मुस्लिम या यादव ॥
कह जोशी कविराय बने सब एक नूर से ।
ऐसी बातें केवल मुँह से, दूर-दूर से ॥

(२) इलाहबाद में परीक्षा में नक़ल न करवाने देने पर सिपाही का नाक काट खाया ।

हमें बताएँ पुलिस की अब रही कहाँ पर धाक ।
नक़ल कराने दी नहीं काट भग गया नाक ॥
काट भग गया नाक, धाक सब ख़ाक हो गयी ।
लेकिन इससे एक बात तो साफ़ हो गई ॥
जोशी ऐसी जगह सिर्फ़ नकटे भिजवायें ।
चले काम सब ठीक सभी से मिलकर खाएँ ॥

२४ मार्च २००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

2 comments:

समयचक्र said...

वाह महाराज जी रचना भी सोलह आने अच्छी लगी . बधाई.

समयचक्र said...

वाह महाराज जी रचना भी सोलह आने अच्छी लगी . बधाई.