Tuesday, March 17, 2009

सुख-सागर

सुखराम जी को सज़ा सुनादी गई है । उनके घोटाला उद्घाटन-काल की कुछ कुण्डलियाँ पुनरावलोकन के लिए प्रस्तुत हैं ।

सुखराम के घर सी.बी.आई. के छापे; तीन करोड़ नक़द मिले, एक समाचार-१६-८-९६

लन्दन में सुखराम जी करवा रहे इलाज़ ।
घर में घुस कर खोलती सी.बी.आई. राज़ ॥
सी.बी.आई. राज,आ गया कलजुग भारी ।
जनसेवक को बता रहे हैं भ्रष्टाचारी ॥
कह जोशी कविराय नहीं कुछ काला धंधा ।
कहो कौन करता जग में सेवा, बिन चन्दा ॥

सौ करोड़ के देश में केवल चार करोड़ ।
रखने पर सुखराम के बाजू रहे मरोड़

बाजू रहे मरोड़, होड़ सी लगी हुई है ।
धन-संग्रह की तृष्णा सब में जगी हुई है

कह जोशी कविराय तलाशी करवाएंगें ।
छुट भैयों के घर में इतने मिल जायेंगें


बिन मेहनत के ही अगर घर में आयें दाम ।
सारे 'सुख' हों भले ही मगर नहीं हैं 'राम'

मगर नहीं हैं 'राम', धर्म औ कर्म छोड़कर ।
सिर्फ़ भोग का आराधन चल रहा निरंतर

कह जोशी कविराय मुक्त हैं काले धंधे ।
पीछे छूटा देश बढ़े आगे कुछ बन्दे




सुखराम अस्पताल में अपना समय बिताने और ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए माला जपेंगे - १७-९-९६

जब तक रिश्वत खा रहे, भोग रहे आराम ।
तब तक क्षणभर के लिए याद न आए राम

याद न आए राम, लगी जब सी.बी.आई. ।
राम-नाम की माला जपने की सुध आई

कह जोशी कविराय सिर्फ़ दुःख में जो भजते ।
ऐसों की फरियाद रामजी कभी न सुनते


मुझे बदनाम कराने के लिए चोरी-छिपे रकम मेरे घर में रखी गई -सुखराम, ८-१०-९६

कोई रुपये रख गया करने को बदनाम ।
लेकिन सच्चे संत हैं पंडित श्री सुखराम

पंडित श्री सुखराम, ज़रा भी ना ललचायें ।
पर-धन धूरि समान, हाथ तक नहीं लगाएँ

कह जोशी कविराय विप्र सीधे, संतोषी ।
जनता ही है दुष्ट बताती उनको दोषी


खुला निमंत्रण आपको अपना रहा ज़नाब ।
बड़े शौक से कीजिए छवि को मेरी ख़राब

छवि को मेरी ख़राब, नोट जितने जी चाहें ।
खुला पड़ा है गेट आप आकर रख जाएँ

कह जोशी कविराय करो माया पर काबू ।
ख़ुद ही सुख और राम चले आयेंगे बाबू




जेल में सुखराम को डेंगू का डर सता रहा है -१२-१०-९६

नेताओं ने कर दिए खाली कई मकान ।
कूलर खाली न करे मच्छर बेईमान

मच्छर बेईमान, कोठरी में मंडराए ।
पंडित जी की पूजा में बाधा पहुँचाये

कह जोशी कविराय नोट जिसने रखवाए ।
'एडिस' मच्छर भेज आपको वही डराए



ताज़ा हाल

सुख-सागर से डर गए रहे किनारे बैठ ।
कैसे पायेंगे भला सच को गहरे पैठ

सच को गहरे पैठ, यहाँ की जनता भोली ।
दो दिन पढ़ अख़बार सोचती मारो गोली

कह जोशी कविराय हमारा कहा मानिए ।
बैक डेट से उलट-पलटकर हाल जानिए



अब तो अस्सी पार हैं तन-मन से असमर्थ ।
ऐसे में इस सज़ा का बोलो क्या है अर्थ

बोलो क्या है अर्थ, जेल यदि भेजें जाएँ ।
इसकी क्या गारंटी सज़ा पूरी कर पायें

कह जोशी कविराय सज़ा यदि देना चाहो ।
ब्याज सहित सारे पैसे वापिस मंगवाओ


२६ फरवरी २००९

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

No comments: