Sunday, January 11, 2009

हम तो


हम क्या करते 'गर कमरों में कुरसी ठिठुरे ।
रगड़ हथेली गरमी पैदा करते हम तो ॥

उनके महलों के दीपक की गरमी लेकर
खड़े रात भर जमुना जल में रहते हम तो ।

फिक्रमंद हैं आप हमारे लिए सुना है
इसी भरोसे हर मौसम को सहते हम तो ।

आप चेतनायुक्त, आपकी वाणी में बल
गूँगे मक्खी-मच्छर हैं क्या करते हम तो ।

आप तैर सकते उलटी धाराओं में भी
इक लावारिस लाश धार संग बहते हम तो ।

पेड़ जलें गरमी में जैसे, सरदी में भी
हम भी वैसे बाड़मेर हैं दहते हम तो । *

(* राजस्थान के बाड़मेर जिले में गरमी और सर्दी दोनों अधिक पड़ते हैं)

१ जनवरी १९९९

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

No comments: