Monday, November 24, 2008

उल्टी व्याकरण


फिर कोई खिचड़ी पकाई जा रही है |
व्याकरण उल्टी पढ़ाई जा रही है |

कैद हैं सारे उजाले फाइलों में
वक्त पर तोहमत लगाई जा रही है |

पहले छपवा लो, सुनाना बाद में
मुल्क में कविता चुराई जा रही है |

हो उठे हैं सभ्य-गण सहसा रसिक
स्यात् निर्बल की लुगाई जा रही है |

सादगी देखें सियासत की हुज़ूर
सदन में गज़लें सुने जा रही हैं |


९-जून-१९८१

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