Sunday, November 30, 2008
तेरे ही सपने
हम जिन जिन से लड़ने निकले|
वे सब के सब अपने निकले|
वो तो मन में ही बैठा था
जिसकी माला जपने निकले|
मेरी आँखों ने जो देखे
वे तेरे ही सपने निकले |
बस वे ही जिंदा रह पाये
कफन बाँध जो मरने निकले|
अणु परमाणु सभी तो घूमे
फिर तुम कहाँ ठहरने निकले |
जीवन में ही मौत छुपी है
जाने किससे बचने निकले|
छोटे छोटे से दुःख सुख ही
हम कविता में रचने निकले|
२५ अप्रेल २०००
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1 comment:
जीवन में ही मौत छुपी है
जाने किससे बचने निकले|
saral ,sundar rachna.
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