Saturday, November 22, 2008

बाबू


ख़त लिख दे साँवरिया के नाम बाबू |
वो कहते थे कर देंगे काम बाबू |

कोई भी शासन हो 'लाला' फलेंगे
इनका पक्का है सब इंतज़ाम बाबू |

जो राजा थे, राजा हैं, राजा रहेंगे
और अपने को रहना अवाम बाबू |

हमको तो नियमों में बाँधोगे लेकिन
कौन नेता को डाले लगाम बाबू |

वे महलों में रहकर भी मौसम से डरते
नींद अपनी क्यों जाने हराम बाबू |

कहते हैं 'जनता' अब दिल्ली में रहती
मुझे तू ही बता मेरा नम बाबू |

८-दिसम्बर-१९७५

बतर्ज़ - ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू - फ़िल्म आए दिन बहार के, आशा भोंसले

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3 comments:

श्यामल सुमन said...

अच्छी रचना है। बधाई। कहते हैं कि-

लोग कहते हैं जनता का शासन भी है।
मगर जनता हुई क्यों नाकाम बाबू।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

शोभा said...

वे महलों में रहकर भी मौसम से डरते
नींद अपनी क्यों जाने हराम बाबू |

कहते हैं 'जनता' अब दिल्ली में रहती
मुझे तू ही बता मेरा नम बाबू |
वाह बहुत खूब

joshi kavirai said...

श्यामल-जी शोभा-जी, रचनाएँ आपको पसंद आयी, शुक्रिया