Monday, November 10, 2008

लोग


रोज़ शहर में आते लोग |
लेकिन लौट न पाते लोग |

यहाँ किसे सुनने की फुरसत
किसको हाल सुनाते लोग |

बात करो तो चुप हो जाते
बिना बात चिल्लाते लोग |

छूट गए सब संगी साथी
ख़ुद से ही बतियाते लोग |

वक्त मिले तो रोते धोते
कोई गीत न गाते लोग |

सपनों की ताबीर खोजते
ख़ुद सपना हो जाते लोग|

जब भी ढूँढा मुझको अपने
अन्दर ही मिल जाते लोग |

२३ नवम्बर ९५

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3 comments:

manvinder bhimber said...

वक्त मिले तो रोते धोते
कोई गीत न गाते लोग |

सपनों की ताबीर खोजते
ख़ुद सपना हो जाते लोग|

जब भी ढूँढा मुझको अपने
अन्दर ही मिल जाते लोग |
waah kya baat hai

makrand said...

bahut sunder rachana

cartoonist ABHISHEK said...

सपनों की ताबीर खोजते
ख़ुद सपना हो जाते लोग|
....badhai joshi ji