ख़ुद से ही हाथापाई
जैसे तैसे बात बनाई।
लेकिन बात कहां बन पाई।
इक लम्हे का कर्जा जिसकी
सारी उमर चली भरपाई।
अपना दर्द बता औरों को
हम करवा बैठे रुसवाई।
उनके खाते चहल पहल है
अपने हिस्से में तनहाई।
कैसा दर्शन,कैसा चिंतन
बस ख़ुद से ही हाथापाई।
६ अकतूबर २०००
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
2 comments:
Bahut badiya.
इक लम्हे का कर्जा जिसकी
सारी उमर चली भरपाई।
अच्छी प्रस्तुति।
सपन संजोये सुख के सारे।
पीड़ा से अब हुई सगाई।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Post a Comment