Friday, November 14, 2008

आग-फूस का रिश्ता


कब तक यह ठहराव जियेंगे |
अब तो एक बहाव जियेंगे |

जान बचाती घूमे दुनिया
मजनू तो पथराव जियेंगे |

बंद अँधेरे कमरों में भी
अम्बर का फैलाव जियेंगे |

चाहे मुल्क भाड़ में जाए
वे डंकल प्रस्ताव जियेंगे | *

शब्दों के सीमित अर्थों में
हम तो मन के भाव जियेंगे |

तूफानों वाले मौसम में
कागज़ वाली नाव जियेंगे |

आग-फूस का रिश्ता उनसे
पर हम यहीं तनाव जियेंगे |

०१-जनवरी-१९९५


* World Trade Organization का डंकल प्रस्ताव जिसमें प्रोसेस की बजाय प्रोडक्ट पेटेंट किया जाना प्रस्तावित किया गया |

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2 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

'मजनू तो पथराव जियेंगे'
शानदार अभिव्यक्ति।

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन,,,