Tuesday, November 18, 2008

पानी हर पत्थर में है


सूरज रोज़ सफ़र में है |
फ़िर तू ही क्यों घर में है ?

अपने बाज़ू तोलो तो
पानी हर पत्थर में है |

वो परदे के अन्दर हैं
लेकिन मेरी नज़र में हैं |

नहीं लगे जनता के सुर
लेकिन तंत्र बहर में है |

जो गलियों में ढूँढ रहे
क़ातिल उनके घर में है |

पाल उठा दो नावों के
कुछ संकेत लहर में है |

थकी अमीना राह तके
हामिद* मगर शहर में है |

३-जुलाई-१९९४


* मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह का मुख्य पात्र जो ईद के मेले से खिलौनों की बजाय अपनी दादी के लिए चिमटा लाता है ताकि उसका हाथ ना जले

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com

2 comments:

श्यामल सुमन said...

सुन्दर प्रस्तुति।

खौफ शहर में आतंकी का।
खोजूँ अमन किस सहर में है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

नीरज गोस्वामी said...

अपने बाज़ू तोलो तो
पानी हर पत्थर में है |
बेहतरीन ग़ज़ल...वाह.
नीरज