Thursday, November 6, 2008

घर ,घर है


कहने को क़तरा भर है ।
लेकिन एक समंदर है ।

मैं तो उसके अन्दर हूँ
क्या वो मेरे अन्दर है ।

जितना हमें डराता जो
उसको उतना ही डर है ।

राजमहल हो या छप्पर
कैसा भी हो घर घर है ।

बारिश धूप नहीं रुकते
कहने को छत सर पर है ।

१७अगस्त२०००

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And here is an approximate translation -

Home is Home

It seems just a drop
Hides the whole ocean

I am in It/Him
Is It/He in me?

Those who are scare other
Are scared themselves first

Whether palace or hut
Home is sweet home

Rain or scorching sun don't stop
To say, there indeed is the roof


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

1 comment:

Anonymous said...

जितना हमें डराता जो
उसको उतना ही डर है ।

बहुत तेज़ नज़र है!