Saturday, November 1, 2008

मुक्त व्यापार


सारा खेल उधार हो गया
घर भारत सरकार हो गया

उन्हें मुनाफ़ा हमको घाटा
यह कैसा व्यापार हो गया

नगरी में अंधेर नहीं है
क्यूँ चौपट दरबार हो गया

बंधुआ है मज़दूर अभी तक
मगर मुक्त व्यापार हो गया

पाप बढ़ गए बहुत धरा पर
पर मुश्किल अवतार हो गया

१-फरवरी-१९९५

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)



And here is an approximate translation -

Free Economy

The whole game is on credit
Home economy is like the government (deficit)

They have profit, we have loss
What kind of business is this?

The labourer is bonded
But the market/economy is free

Lot of sins on this earth
But avatar (of vishnu) has become difficult



(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी प्रकाशित या प्रकाशनाधीन
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

3 comments:

Anonymous said...

गंभीर और धारदार रचना। बेहद पसंद आईं ये पंक्तियां-
बंधुआ है मज़दूर अभी तक
मगर मुक्त व्यापार हो गया |

संगीता पुरी said...

अच्‍छी कविता।

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब रचना...सच्चाई को बयां करती हुई...वाह.
नीरज