Wednesday, November 19, 2008

ख़ुद से ही हाथापाई



जैसे तैसे बात बनाई।
लेकिन बात कहां बन पाई।

इक लम्हे का कर्जा जिसकी
सारी उमर चली भरपाई।

अपना दर्द बता औरों को
हम करवा बैठे रुसवाई।

उनके खाते चहल पहल है
अपने हिस्से में तनहाई।

कैसा दर्शन,कैसा चिंतन
बस ख़ुद से ही हाथापाई।

६ अकतूबर २०००

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2 comments:

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

श्यामल सुमन said...

इक लम्हे का कर्जा जिसकी
सारी उमर चली भरपाई।

अच्छी प्रस्तुति।

सपन संजोये सुख के सारे।
पीड़ा से अब हुई सगाई।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com