Sunday, November 30, 2008
तेरे ही सपने
हम जिन जिन से लड़ने निकले|
वे सब के सब अपने निकले|
वो तो मन में ही बैठा था
जिसकी माला जपने निकले|
मेरी आँखों ने जो देखे
वे तेरे ही सपने निकले |
बस वे ही जिंदा रह पाये
कफन बाँध जो मरने निकले|
अणु परमाणु सभी तो घूमे
फिर तुम कहाँ ठहरने निकले |
जीवन में ही मौत छुपी है
जाने किससे बचने निकले|
छोटे छोटे से दुःख सुख ही
हम कविता में रचने निकले|
२५ अप्रेल २०००
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Saturday, November 29, 2008
अन्न- ब्रह्म
अन्न बजे और अन्न बजावै ।
अन्न ही सारे नाच दिखावै ।
पलना, लोरी कहने भर को
अन्न ही सोवै, अन्न सुलावै ।
माया की बदनामी झूठी
अन्न ही दुनिया को भरमावै ।
कम्प्यूटर टी.वी.दिखलाकर
काहे भूखों को भरमावै ।
अन्न मिले तो गाना सूझे
अन्न बिना कुछ भी ना भावे ।
अन्न बिना सब शोर-शराबा
अन्न ब्रह्म ही अनहद गावै ।
१८ फ़रवरी २००१
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And here is an approximate translation -
Food is God
Food sings, food is making you sing
Food is on which the show is running
The crib, lullaby are just name deep
Food sleeps, food makes you sleep
Maya wrongly gets the criticism
Food is what causes the illusion
Showing the computer or the TV
Why do you mislead the hungry
After food, you think of music
Without food, you just feel sick
Without food all is cacophony
Food makes music without touching
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Friday, November 28, 2008
बाजीगरी
क़ैद में निर्दोष अपराधी बरी है |
आपके इंसाफ़ की बाजीगरी है |
तीर उनके चल रहे हैं हर तरफ़ से
पास अपने बस पुरानी मसहरी है |
द्वार कोई खुल न पाता आदमी से
और रोशन आपकी बारादरी है |
दीखता जो द्वार ,है दीवार वो तो
यह महल श्रीमान की कारीगरी है |
रोशनी पर हो गए इल्ज़ाम आयद
यह अँधेरों की पुरानी मुखबरी है |
दावते-इफ्तार वो भी आपके संग
यह हमारे साथ कैसी मसखरी है|
२२ फरवरी १९९६
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, November 27, 2008
घोडा और लगाम
क्या रखा है काम में ।
जो कुछ है सो नाम में ।
भूख और सूखा बैठे हैं
खेत और खलिहान में ।
बल्ब जलें, फ़व्वारे चलते
नेताजी के लान में ।
मेहनत करने वाले भूखे
चुपड़ी मिले हराम में ।
असली कामों में कंजूसी
खर्चा झूठी शान में ।
नहीं पाँच पल जनता आती
कभी किसीके ध्यान में
पूरे पाँच बरस ही उनके
पाँच साल के प्लान में ।
जनता से उनका रिश्ता जो
घोड़े और लगाम में ।
हज सब्सीडी, गोली मिलती
अमरनाथ के धाम में ।
सुरा, सुन्दरी, भजन, प्रसादी
सब कुछ है दूकान में ।
१७ फ़रवरी २००१
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And here is an approximate translation -
Whip and Horse
In work there is no fame?
It is just all in the name!
Only famines and droughts
In fields and warehouses
Lawn sprinklers and fancy lights
Adorn the lushes of the elites.
Hard workers only get hunger
Corrput ones have it buttered
In real matters, very stingy
In showing off, all splurgy
Not even for five minutes
About People, do they think
Only the five years are
In the five year plans (Are not farsighted)
Their relation with the mass
That of the whip and the horse
Hajj subsidy! Bullets on the path
In the pilgrimage of Amarnath!
Wine, women, prayer, holy offering
Everything in one place for shopping!
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, November 26, 2008
वातानुकूलन
आपका पूरा प्रदर्शन हो गया है |
हर जगह पर दूरदर्शन हो गया है |
अब न बदलेंगे यहाँ मौसम कभी
मुल्क का वातालूकुलन हो गया है |
खिलखिलाती कुर्सियाँ आयोजनों में
लोकमत निर्बल निवेदन हो गया है |
वंश बढ़ता जा रहा है लम्पटों का
सत्य का जबरन नियोजन हो गया है |
आइये अब तो करें बातें हृदय की
देह का सम्पूर्ण शोषण हो गया है |
कांपती है एक बूढी झोंपडी
आज मलयानिल प्रभंजन हो गया है |
६-मार्च-१९७९
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Tuesday, November 25, 2008
एक अनजानी सदी
एक तूफ़ानी नदी है, और हम ।
एक अनजानी सदी है, और हम ।
अब अकेलापन कहाँ तुम ही कहो
साथ में यह बेखुदी है, और हम ।
हों नहीं, तो भी रहेंगे हम सदा
यह यकीं सौ फीसदी है, और हम ।
देखकर खाता बही अब क्या करें
जमा में केवल बदी है, और हम ।
शांत है तूफ़ान, मौसम ठीक पर
नाव पत्थर से लदी है, और हम ।
२ जनवरी २००१
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Monday, November 24, 2008
उल्टी व्याकरण
फिर कोई खिचड़ी पकाई जा रही है |
व्याकरण उल्टी पढ़ाई जा रही है |
कैद हैं सारे उजाले फाइलों में
वक्त पर तोहमत लगाई जा रही है |
पहले छपवा लो, सुनाना बाद में
मुल्क में कविता चुराई जा रही है |
हो उठे हैं सभ्य-गण सहसा रसिक
स्यात् निर्बल की लुगाई जा रही है |
सादगी देखें सियासत की हुज़ूर
सदन में गज़लें सुने जा रही हैं |
९-जून-१९८१
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Sunday, November 23, 2008
वे ही नावें
सबका खस्ता हाल वही ।
वो ही रोटी, दाल वही ।
जिससे आँख चुराते थे
पूछे रोज सवाल वही ।
बस मछुवारे बदले हैं
वो ही मछली, जाल वही ।
उनके घर हलवा पूड़ी
अपने यहाँ अकाल वही ।
सभी परिंदे सहमे-सहमे
वैसे बरगद, डाल वही ।
तूफाँ कल से ज़्यादा है
वे ही नावें, पाल वही ।
३ दिसम्बर २०००
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And here is an approximate translation -
Same boats
everyone is doing bad, same old
same old bread, same old daal
whom we try to avoid
(s/he) asks questions daily
just the fishermen have changed
same fish, same fishing net
big feast at their place
at ours, same old famine
all birds are scared
same banyan tree, same branches
storms are worse than yesterday
same old boats, same old sails
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Saturday, November 22, 2008
बाबू
ख़त लिख दे साँवरिया के नाम बाबू |
वो कहते थे कर देंगे काम बाबू |
कोई भी शासन हो 'लाला' फलेंगे
इनका पक्का है सब इंतज़ाम बाबू |
जो राजा थे, राजा हैं, राजा रहेंगे
और अपने को रहना अवाम बाबू |
हमको तो नियमों में बाँधोगे लेकिन
कौन नेता को डाले लगाम बाबू |
वे महलों में रहकर भी मौसम से डरते
नींद अपनी क्यों जाने हराम बाबू |
कहते हैं 'जनता' अब दिल्ली में रहती
मुझे तू ही बता मेरा नम बाबू |
८-दिसम्बर-१९७५
बतर्ज़ - ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू - फ़िल्म आए दिन बहार के, आशा भोंसले
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Friday, November 21, 2008
संवाद
इधर उधर चहरे ही चहरे।
अन्दर छिछले,बाहर गहरे।
तरह तरह की दौड़ लगाते
लेकिन एक जगह पर ठहरे।
दुहरी हुई कमर जनता की
झंडा ऊँचा-ऊंचा फहरे।
सदियों से संवाद चल रहा
श्रोता गूंगे,वक्ता बहरे।
खुशबू को कैसे बाँधोगे
फूलों पर बैठा दो पहरे।
९ नवम्बर २०००
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And here is an approximate translation -
Dialogue
faces all over, here and there
inside shallow, outside deeper
they are all over the space
but never move from their place
people are becoming hunchbacked
flying ever higher is the flag
dialogue is going on for centuries
audience is dumb, speakers deaf
how to restrain the fragrance
put the flowers under arrest.
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Thursday, November 20, 2008
दुनिया इतनी बुरी नहीं है
दो बातें दो पल कर देखो |
साथ हमारे चल कर देखो |
दुनिया इतनी बुरी नहीं है
ख़ुद से ज़रा निकल कर देखो |
जीवन का मतलब समझोगे
किसी लक्ष्य में ढल कर देखो |
जलने में भी बड़ा मज़ा है
सूरज जैसे जल कर देखो |
धरती-अम्बर का रिश्ता है
बादल के संग गलकर देखो |
वो रूठे हैं मन जायेंगे
तुम ही तनिक पहल कर देखो |
१८-दिसम्बर-१९९४
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Wednesday, November 19, 2008
ख़ुद से ही हाथापाई
जैसे तैसे बात बनाई।
लेकिन बात कहां बन पाई।
इक लम्हे का कर्जा जिसकी
सारी उमर चली भरपाई।
अपना दर्द बता औरों को
हम करवा बैठे रुसवाई।
उनके खाते चहल पहल है
अपने हिस्से में तनहाई।
कैसा दर्शन,कैसा चिंतन
बस ख़ुद से ही हाथापाई।
६ अकतूबर २०००
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Tuesday, November 18, 2008
पानी हर पत्थर में है
सूरज रोज़ सफ़र में है |
फ़िर तू ही क्यों घर में है ?
अपने बाज़ू तोलो तो
पानी हर पत्थर में है |
वो परदे के अन्दर हैं
लेकिन मेरी नज़र में हैं |
नहीं लगे जनता के सुर
लेकिन तंत्र बहर में है |
जो गलियों में ढूँढ रहे
क़ातिल उनके घर में है |
पाल उठा दो नावों के
कुछ संकेत लहर में है |
थकी अमीना राह तके
हामिद* मगर शहर में है |
३-जुलाई-१९९४
* मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह का मुख्य पात्र जो ईद के मेले से खिलौनों की बजाय अपनी दादी के लिए चिमटा लाता है ताकि उसका हाथ ना जले
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Saturday, November 15, 2008
सभी कुछ प्यार में
ज़हर फैला हो जहाँ परिवेश में |
किस तरह कोई जिए उस देश में |
जिंदगी तुमसे शिकायत है यही
मौत आती है तुम्हारे वेश में |
यातना की बात मुझसे मत करो
सत्य कह दूँगा कहीं आवेश में |
कर रहे हैं वे सभी कुछ प्यार में
राम जाने क्या करेंगे द्वेष में |
भाज्य में ही शून्य जब रक्खा गया
सोच लो फिर क्या बचेगा शेष में
२५ फरवरी १९९६
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All in love
Where poison is in the atmosphere
How does one live in there?
Life, only complain with you is that
Death comes in your disguise |
Don't talk about the tortures to me
I might say the truth in provocation |
They are doing this 'all in love'
God knows what they will do in hate |
When the divisor itself is zero
What is left in the quotient ?
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Friday, November 14, 2008
आग-फूस का रिश्ता
कब तक यह ठहराव जियेंगे |
अब तो एक बहाव जियेंगे |
जान बचाती घूमे दुनिया
मजनू तो पथराव जियेंगे |
बंद अँधेरे कमरों में भी
अम्बर का फैलाव जियेंगे |
चाहे मुल्क भाड़ में जाए
वे डंकल प्रस्ताव जियेंगे | *
शब्दों के सीमित अर्थों में
हम तो मन के भाव जियेंगे |
तूफानों वाले मौसम में
कागज़ वाली नाव जियेंगे |
आग-फूस का रिश्ता उनसे
पर हम यहीं तनाव जियेंगे |
०१-जनवरी-१९९५
* World Trade Organization का डंकल प्रस्ताव जिसमें प्रोसेस की बजाय प्रोडक्ट पेटेंट किया जाना प्रस्तावित किया गया |
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Wednesday, November 12, 2008
सिर्फ़ प्रयास
जब तक तेरे पास रहे |
एक सुखद एहसास रहे |
मुस्काते ही आँसू आए
महफ़िल में उपहास रहे |
मन में अम्बर का सपना ले
पैर तले की घास रहे |
जब-जब हँसने का मौसम था
तब-तब और उदास रहे |
माँ कहती थी राजा बेटा
मगर सदा वनवास रहे |
पूरण काम हुए होंगे वे
हम तो सिर्फ़ प्रयास रहे |
८-जनवरी-१९९५
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Monday, November 10, 2008
लोग
रोज़ शहर में आते लोग |
लेकिन लौट न पाते लोग |
यहाँ किसे सुनने की फुरसत
किसको हाल सुनाते लोग |
बात करो तो चुप हो जाते
बिना बात चिल्लाते लोग |
छूट गए सब संगी साथी
ख़ुद से ही बतियाते लोग |
वक्त मिले तो रोते धोते
कोई गीत न गाते लोग |
सपनों की ताबीर खोजते
ख़ुद सपना हो जाते लोग|
जब भी ढूँढा मुझको अपने
अन्दर ही मिल जाते लोग |
२३ नवम्बर ९५
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Sunday, November 9, 2008
राम धुन - आजादी पाये हुए हमको बरस पचास
(आजादी की स्वर्ण जयन्ती की पूर्व संध्या पर इंडिया गेट लेसर किरणों की रोशनी में भीगता रहा- एक समाचार १४ अगस्त १९९७)
आजादी पाये हुए हमको बरस पचास ।
टूटे सारे स्वप्न औ' जनमन हुआ उदास ।
जनमन हुआ उदास,पाँच सौ घोटाले हैं ।
उजले कपड़े वालों के धंधे काले हैं ।
कह जोशी कविराय असह दुःख-भार हो गया ।
फिर भी मुश्किल प्रभु तेरा अवतार हो गया ।।
लोकतंत्र से लुप्त है लोक रूप भगवान ।
कण-कण पर हावी हुआ तंत्र रूप शैतान ।
तंत्र रूप शैतान, दुःखी भेड़ें बेचारी ।
कोई भी हो तंत्र गई है खाल उतारी ।
कह जोशी कविराय ठण्ड से कांपें थर-थर ।
कब लोगे अवतार धरा पर हे परमेश्वर ।।
होरी सोता गाँव में अब भी आधे पेट ।
भीगे लेसर किरण में मगर इंडिया गेट ।
मगर इंडिया गेट, ओढ़ करके बरसाती ।
पुलिस फोर्स के बीच रईसी दौड़ लगाती ।
कह जोशी कविराय बाढ़ में डूबे जनता ।
बहे मवेशी बच्चे, कोई बात न सुनता ।।
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And here is an approximate translation -
(On the eve of the Golden Jubilee of India's Independence day, India Gate was immersed in laser show - A news, 14 August 1997)
it has been 50 years since independence |
all dreams are broken and people are sad |
people are sad, with five hundred scandals |
people in white clothes do black dealings |
says joshi kavi, weight of sorrow is unbearable |
to take another avatar, o lord, why are you unable ||
from 'democracy', is missing the 'demo-' god |
everywhere is strong, the '-cracy' demon |
the '-cracy' demon, the sheep are all scared |
no matter what '-cracy', they will be sheared |
says joshi kavi, shivering in bitter cold |
when will you take avatar on the earth, o lord ||
'Hori' still sleeps, half-hungry in the village |
but india gate is, immersed in laser rays|
immersed in laser rays, covered in raincoat |
protected by police, the rich swish by |
says joshi kavi, people drown in floods |
livestock, kids are swept away, but who cares ||
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पुस्तक - राम धुन
Saturday, November 8, 2008
क्या पता उनको
ढूँढते हैं वे मनोरंजन ख़बर में।
क्या पता उनको घुटन कितनी क़बर में ।
सिर्फ़ पानी ही नहीं मिलता फ़सल को
लाश भी तिरती मिली अक्सर नहर में ।
बहुत भारी पड़ रहा हर एक लम्हा
चल रहा है ठीक सब उनकी नज़र में ।
हम स्वयं ही मंज़िलों तक पहुँच जाते
रहनुमाँ 'गर कम मिले होते सफ़र में ।
गाँव से उम्मीद लेकर तो चला था
खो गया पर आदमी आकर शहर में ।
ज़हर पीने से हमें इंकार कब था
ज़हर की तासीर तो होती ज़हर में ।
१६ नवम्बर १९९५
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Thursday, November 6, 2008
घर ,घर है
कहने को क़तरा भर है ।
लेकिन एक समंदर है ।
मैं तो उसके अन्दर हूँ
क्या वो मेरे अन्दर है ।
जितना हमें डराता जो
उसको उतना ही डर है ।
राजमहल हो या छप्पर
कैसा भी हो घर घर है ।
बारिश धूप नहीं रुकते
कहने को छत सर पर है ।
१७अगस्त२०००
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Home is Home
It seems just a drop
Hides the whole ocean
I am in It/Him
Is It/He in me?
Those who are scare other
Are scared themselves first
Whether palace or hut
Home is sweet home
Rain or scorching sun don't stop
To say, there indeed is the roof
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सरकार! तुम्हारे हाथों में
केवल उधार है खातों में, कब अन्न पड़ा इन आंतों में,
था एक वोट जो सौंप दिया, सरकार! तुम्हारे हाथों में |
साबुन, तेल, लिपस्टिक लो, खाने की चीजें पौष्टिक लो,
अपनी सारी तनख्वाह और घरबार तुम्हारे हाथों में |
चाहे जितना लूटो-नोंचो, जब प्राफिट है तो क्यों सोचो
सब चीजों का उत्पादन और व्यापर तुम्हारे हाथों में |
चाहो तो पत्ता साफ़ करो या फिर हमको माफ़ करो
अब अपनी तो गर्दन और तलवार तुम्हारे हाथों में |
चाहे दो डुबो इशारे पर अथवा ले चलो किनारे पर
अब जनता की तो नैया और पतवार तुम्हारे हाथों में |
चाहे छोटा, खुशहाल करो अथवा वीभत्स, विशाल करो
एकाध करो या दस-बारह, परिवार तुम्हारे हाथों में |
५-१०-१९७३
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Tuesday, November 4, 2008
पूरी ख़बर है हमको
दो चार तिनके लेकर, तूफाँ के सामने हैं
वैसे क़यामातों की, पूरी ख़बर है हमको |
मुख में है राम लेकिन, तीखी छुरी बगल में
ऊंची सियासतों की, पूरी ख़बर है हमको |
हम जैसा जी रहे हैं, वैसाही लिख रहे हैं
ताज़ी रवायतों की, पूरी ख़बर है हमको |
हम ही तो हैं मुहाफिज़, क़ौमी अमानतों के
उनकी खयानतों की, पूरी ख़बर है हमको |
कितना कठिन समय है, यह तुम भी जानते हो
रस्मी इनायतों की, पूरी ख़बर है हमको |
हो कौन किसका दुश्मन, रहबर ही तय करेंगे
ज़ाती अदावतों की, पूरी ख़बर है हमको |
४ जनवरी १९९६
* रवायत - रवैया, रिवाज़ (ways, style, customs, mannerism) | मुहाफिज़ - रक्षक (protector)
खयानत - धोखा | अदावत - दुश्मनी (animosity)
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Monday, November 3, 2008
प्रश्न
बचकर मेरी नज़र से निकले
तो क्यूँ आप इधर से निकले
गाँव समेटा शहर आगये
जाएँ कहाँ शहर से निकले
प्रश्न उठ रहे जब अन्दर से
कैसे हल बाहर से निकले
शाम ढले थककर घर लौटे
कहाँ रुकें जो घर से निकले
वे तो मन में कहीं नहीं थे
जो संकेत ख़बर से निकले
जात पाँत में भटक जायेंगे
'गर मस्जिद -मन्दिर से निकले
२५-५-९५
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, November 2, 2008
उनके ख्वाब में
ना हम किसी हिसाब में हैं
ना हम किसी किताब में हैं
लेकिन सदा रहेंगे हम
हम तो उनके ख़्वाब में हैं
हमको जलवों से क्या लेना
हम तो छुपे हिज़ाब में हैं
अपनी शोक सभा में आने
वाले सभी नक़ाब में हैं
सत्ता के दस्तरख्वानो में
हड्डी हमीं कबाब में हैं
क्या बाँचें ख़त हमें पता है
जो कुछ लिखा ज़वाब में है
१७ अगस्त ९५
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And here is an approximate translation -
In their dreams
We are not in any calculations
We are not in any books
But we will remain
For we are in their dreams
What concern we have with beauty
We have to live under veil
At our funeral gathering
Everyone is wearing masks
In the feasts of the powerful
We are the bone in the kebob
Why to read the letter
We already know the reply
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Saturday, November 1, 2008
मुक्त व्यापार
सारा खेल उधार हो गया
घर भारत सरकार हो गया
उन्हें मुनाफ़ा हमको घाटा
यह कैसा व्यापार हो गया
नगरी में अंधेर नहीं है
क्यूँ चौपट दरबार हो गया
बंधुआ है मज़दूर अभी तक
मगर मुक्त व्यापार हो गया
पाप बढ़ गए बहुत धरा पर
पर मुश्किल अवतार हो गया
१-फरवरी-१९९५
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And here is an approximate translation -
Free Economy
The whole game is on credit
Home economy is like the government (deficit)
They have profit, we have loss
What kind of business is this?
The labourer is bonded
But the market/economy is free
Lot of sins on this earth
But avatar (of vishnu) has become difficult
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