Sunday, October 19, 2008

रहनुमा का खौफ़


आजकल कर्फ्यू शहर में है |
लोग सहमे,डरे घर में हैं |

पाँव लटके कब्र में तो क्या
हाथ कुर्सी की कमर में हैं |

ज़हर अमृत में नहीं कुछ फर्क
बात तो सारी असर में है |

देख लेना सत्य ही होंगे
ख्वाब जो मेरी नज़र में हैं |

रहनुमा का खौफ तबसे है
आदमी जब से सफ़र में है |

मंजिलें मुश्किल बहुत तो क्या
हौसला अब भी बशर में है |

१६ नवम्बर ९५

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