Saturday, October 25, 2008

कर्जे के ठाठ

कर्ज़े के ही हों भले, इन्हे चाहिए ठाठ |
जानकार कहते इसे, सोलह दूनी आठ |
सोलह दूनी आठ, समझ इनके मनसूबे |
ये नौकायन करें, मुल्क मझाधारों डूबे |
कह जोशी कविराय, क़र्ज़ भारत के खाते |
नेता मार डकार, रहेंगे आते-जाते ||

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And here is an approximate translation -
they want ishtyle, even on loan!
those in the know call it - sixteen two's are eight |
sixteen two's are eight, understand their intentions!
they to enjoy boat-ride, nation may drown (in debt) |
so says joshi kavi, loan in country's account |
politicians burp and will keep coming and going | (corruption will continue, it is in the system)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

1 comment:

श्यामल सुमन said...

अपने मुल्क क मिजाज ही कुछ ऐसा है।
कर्ज पे इसर नाज पसने पे शरम आती है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com