Thursday, October 30, 2008

चलो चलें इंसानों में


क्या रुकना बुतखानों में |
चलो चलें इंसानों में |

शमां देखती जिनका रस्ता
हम हैं उन परवानों में |

उनसे आँख मिलाने वाले
हम ही थे दीवानों में |

बस दो-चार सफ़ीने निकले
चलने को तूफानों में |

हम ही सिर्फ़ मुहाज़िर हैं
उनके पाकिस्तानों में |

४ अगस्त १९९५

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com

2 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

'हम ही सिर्फ़ मुहाजिर हैं…'बहुत ख़ूब।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन..