खिड़कियाँ, दरवाज़े, छत कुछ भी नहीं |
यह हमारे घर सा कुछ रखा हुआ है |
आदमी से आदमी मिलता है पर
बीच में इक डर सा कुछ रखा हुआ है |
गीत बनने की प्रतीक्षा में युगों से
कंठ में इक स्वर सा कुछ रखा हुआ है |
शख्सियत का तो पता कुछ भी नहीं
द्वार पे नंबर सा कुछ रखा हुआ है |
हाँ में ही इसको हिलाना है अगर
देह पर क्यूँ सर सा कुछ रखा हुआ है |
बिजलियाँ कड़के, कभी सूरज तपे
सर पे इक अम्बर सा कुछ रखा हुआ है |
ज़िंदगी बीती है जिसको तोलते
दिल पे इक पत्थर सा कुछ रखा हुआ है |
९ फरवरी १९९५
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And here is an approximate translation -
Something like a stone:
windows, doors, roof - nothing is here |
here is something like my house |
people meet people but
there is a something like a fear in between |
waiting for eons to be a song
there is something like a voice/note in my throat |
no idea about the personality
there is something like a number on the door |
if it has to nod only in "yes"
why is there something like a head on my body?
lightening flashes or scorching sun
yet, there is something like a sky on my head |
weighing it, life has spent away
there is something like a stone on my chest|
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
5 comments:
ati uttam. sundar.
खिड़कियाँ, दरवाज़े, छत कुछ भी नहीं |
यह हमारे घर सा कुछ रखा हुआ है |
आदमी से आदमी मिलता है पर
बीच में इक डर सा कुछ रखा हुआ है |
bahtreen....
भावपूर्ण कविता। बधाई।
बहुत उम्दा, क्या बात है!
देश के मौजूदा हालात को बहुत यथाथॆपरक ढंग से दशाॆया है आपने । किवता कई सवाल भी खडे करती है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो पढें और प्रितिकर्या भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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