Sunday, October 26, 2008

राणा के घाव

लकड़ी है अनाज के भाव |
कैसे जलते रहें अलाव |

सबको महफ़िल की ज़ल्दी है
कौन गिने राणा के घाव |

घर वाले ही छेद कर रहे
कैसे बच पायेगी नाव |

कौन पुकार सुने द्रुपदा की
बूढे-बड़े खेलते दाँव |

फील-पाँव का भरम खुल गया
नाहक पटक रहे हो पाँव |

लार टपकती जब दूल्हे को
सब बाराती हैं बेभाव |

२४-जून-२०००

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And here is an approximate translation -
Rana's (Sangaa) wounds

wood is as pricy as grain
how can the cooking fire keep burning?

everyone is in rush to get to the court
who has time to count Rana's wounds
(reference to Rana Sangaa - the great warrior who had many wounds in the battlefield)

when insiders are making holes
how can the boat be saved?

who will hear the cries of help of draupadi
when elders are gambling

now we know it is elephant-foot
your foot-stomping is useless now


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

5 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut hi achhi rachna. Diwali ki subh kamnayen swikar karen.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा िलखा है आपने । दीपावली की शुभकामनाएं । दीपावली का पवॆ आपके जीवन में सुख समृिद्ध लाए । दीपक के प्रकाश की भांित जीवन में खुिशयों का आलोक फैले, यही मंगलकामना है । दीपावली पर मैने एक किवता िलखी है । समय हो तो उसे पढें और प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

कुन्नू सिंह said...

दिपावली की शूभकामनाऎं!!


शूभ दिपावली!


- कुन्नू सिंह

Azad said...

Kaafi dino k baad acchi kavita padhne ko mili!
Dhanyawaad!
http://hshekhar.blogspot.com/