Monday, October 20, 2008
फ़ाइलों में फ़सल
फ़ाइलों में फ़सल हो रहे हैं |
रेत में भी कमल हो रहे हैं |
वक़्त को तुक नहीं मिल रही है
आप ताज़ा ग़ज़ल हो रहे हैं |
खेत का जिस्म तड़का हुआ है
आप क्यूं जल-महल हो रहे हैं |
आदमी से तो मिलते नहीं हैं
जाने किसकी नक़ल हो रहे हैं |
वो कभी भी किसी के न थे
आप जिनकी बगल हो रहे हैं |
चंद नारे घुसे हैं घरों में
आदमी बेदखल हो रहे हैं |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
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पुस्तक - बेगाने मौसम
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