Friday, October 31, 2008
अँधियारों के यार उजाले
अँधियारों के यार उजाले |
हैं कितने मक्कार उजाले |
बार बार आँखें चुंधिया कर
खो जाते हुशियार उजाले |
चौबारों छज्जों पर बैठे
करते हैं सिंगार उजाले |
'होरी' की झुग्गी में झांके *
इतने कहाँ उदार उजाले |
कल थोडा सकुचा कर करते
काले कारोबार उजाले |
बीच सड़क में लगा रहे हैं
आज 'मुक्त बाज़ार' उजाले |
जो जलते हैं वे पाते हैं
मिलते नहीं उधार उजाले |
हम नादाँ थे तुमसे मांगे
ए मेरी सरकार! उजाले |
२-फरवरी-१९९५
* मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' का नायक जो उम्र भर गरीबी में ही जीता है और गरीबी में ही मर जाता है | भारत के बहुमत का प्रतीक होरी अंधेरे में ही जीवन बिता देता है |
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And here is an approximate translation (sans rhyming)-
Lights - buddies of darkness:
buddies of darkness, these lights |
how shrewd are they, these lights |
blinding the eyes again and again
then they hide away, these clever lights |
on terrace, verandah and roof-tops
they makeup and show off, these lights |
to peek in Hori's hut
not so merciful, are these lights |
yesterday these lights, had some, hesitation
in doing black market |
today right in the middle of the road
markets 'open' by lights |
those who burn (sacrifice) will get it
you dont get for rent, these lights |
i must be naive, that i am asking you
some light, o my govt!
Light, here is the symbol of progress, freedom, prosperity, in post Independent India. The haves.
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, October 30, 2008
इक पत्थर सा कुछ
खिड़कियाँ, दरवाज़े, छत कुछ भी नहीं |
यह हमारे घर सा कुछ रखा हुआ है |
आदमी से आदमी मिलता है पर
बीच में इक डर सा कुछ रखा हुआ है |
गीत बनने की प्रतीक्षा में युगों से
कंठ में इक स्वर सा कुछ रखा हुआ है |
शख्सियत का तो पता कुछ भी नहीं
द्वार पे नंबर सा कुछ रखा हुआ है |
हाँ में ही इसको हिलाना है अगर
देह पर क्यूँ सर सा कुछ रखा हुआ है |
बिजलियाँ कड़के, कभी सूरज तपे
सर पे इक अम्बर सा कुछ रखा हुआ है |
ज़िंदगी बीती है जिसको तोलते
दिल पे इक पत्थर सा कुछ रखा हुआ है |
९ फरवरी १९९५
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And here is an approximate translation -
Something like a stone:
windows, doors, roof - nothing is here |
here is something like my house |
people meet people but
there is a something like a fear in between |
waiting for eons to be a song
there is something like a voice/note in my throat |
no idea about the personality
there is something like a number on the door |
if it has to nod only in "yes"
why is there something like a head on my body?
lightening flashes or scorching sun
yet, there is something like a sky on my head |
weighing it, life has spent away
there is something like a stone on my chest|
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यह हमारे घर सा कुछ रखा हुआ है |
आदमी से आदमी मिलता है पर
बीच में इक डर सा कुछ रखा हुआ है |
गीत बनने की प्रतीक्षा में युगों से
कंठ में इक स्वर सा कुछ रखा हुआ है |
शख्सियत का तो पता कुछ भी नहीं
द्वार पे नंबर सा कुछ रखा हुआ है |
हाँ में ही इसको हिलाना है अगर
देह पर क्यूँ सर सा कुछ रखा हुआ है |
बिजलियाँ कड़के, कभी सूरज तपे
सर पे इक अम्बर सा कुछ रखा हुआ है |
ज़िंदगी बीती है जिसको तोलते
दिल पे इक पत्थर सा कुछ रखा हुआ है |
९ फरवरी १९९५
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Something like a stone:
windows, doors, roof - nothing is here |
here is something like my house |
people meet people but
there is a something like a fear in between |
waiting for eons to be a song
there is something like a voice/note in my throat |
no idea about the personality
there is something like a number on the door |
if it has to nod only in "yes"
why is there something like a head on my body?
lightening flashes or scorching sun
yet, there is something like a sky on my head |
weighing it, life has spent away
there is something like a stone on my chest|
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पुस्तक - बेगाने मौसम
चलो चलें इंसानों में
क्या रुकना बुतखानों में |
चलो चलें इंसानों में |
शमां देखती जिनका रस्ता
हम हैं उन परवानों में |
उनसे आँख मिलाने वाले
हम ही थे दीवानों में |
बस दो-चार सफ़ीने निकले
चलने को तूफानों में |
हम ही सिर्फ़ मुहाज़िर हैं
उनके पाकिस्तानों में |
४ अगस्त १९९५
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Tuesday, October 28, 2008
कोई दीप जलाये रखना
बनी हवेली उनके मन की |
लेकिन जगह नहीं आँगन की |
कोई दीप जलाए रखना
जब जब चलें हवाएँ सनकी |
बेर झूमते हैं मस्ती में
देह चिर रही कदली-वन की | *
जब महका साँपों ने घेरा
कैसी किस्मत है चंदन की |
कौन किसी का दुःख-सुख पूछे
सबको चिंता अभिनन्दन की |
क्या-क्या नाच नचाती हमको
अभिलाषा उनके दर्शन की |
२५-दिसम्बर-१९९४
* कहु रहीम कैसे निभे, केर-बेर कर संग | वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग || (रहीमजी का दोहा)
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, October 27, 2008
छोटा था आकाश बहुत
आँधी, वर्षा, तूफाँ सब कुछ झेल गए हँसते-हँसते
शायद उनके वादों पर था, हमको ही विश्वास बहुत|
प्रथम किरण से गोधूली तक कहाँ-कहाँ उड़ते फिरते
परवाज़ें थीं बहुत बड़ी और, छोटा था आकाश बहुत|
रुपया, पैसा, कपड़ा ,लत्ता, गाड़ी, बंगला सब तो है
क्या बतलाएँ किसकी ख़ातिर, हम हैं आज उदास बहुत|
साक़ी, सागर, मीना सब थे उनकी महफ़िल में लेकिन
हमने अपना खून पी लिया, क्या करते थी प्यास बहुत|
५-जून-२०००
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Sunday, October 26, 2008
राणा के घाव
लकड़ी है अनाज के भाव |
कैसे जलते रहें अलाव |
सबको महफ़िल की ज़ल्दी है
कौन गिने राणा के घाव |
घर वाले ही छेद कर रहे
कैसे बच पायेगी नाव |
कौन पुकार सुने द्रुपदा की
बूढे-बड़े खेलते दाँव |
फील-पाँव का भरम खुल गया
नाहक पटक रहे हो पाँव |
लार टपकती जब दूल्हे को
सब बाराती हैं बेभाव |
२४-जून-२०००
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And here is an approximate translation -
Rana's (Sangaa) wounds
wood is as pricy as grain
how can the cooking fire keep burning?
everyone is in rush to get to the court
who has time to count Rana's wounds
(reference to Rana Sangaa - the great warrior who had many wounds in the battlefield)
when insiders are making holes
how can the boat be saved?
who will hear the cries of help of draupadi
when elders are gambling
now we know it is elephant-foot
your foot-stomping is useless now
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कैसे जलते रहें अलाव |
सबको महफ़िल की ज़ल्दी है
कौन गिने राणा के घाव |
घर वाले ही छेद कर रहे
कैसे बच पायेगी नाव |
कौन पुकार सुने द्रुपदा की
बूढे-बड़े खेलते दाँव |
फील-पाँव का भरम खुल गया
नाहक पटक रहे हो पाँव |
लार टपकती जब दूल्हे को
सब बाराती हैं बेभाव |
२४-जून-२०००
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Rana's (Sangaa) wounds
wood is as pricy as grain
how can the cooking fire keep burning?
everyone is in rush to get to the court
who has time to count Rana's wounds
(reference to Rana Sangaa - the great warrior who had many wounds in the battlefield)
when insiders are making holes
how can the boat be saved?
who will hear the cries of help of draupadi
when elders are gambling
now we know it is elephant-foot
your foot-stomping is useless now
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Saturday, October 25, 2008
नेटवर्क मज़बूत है टी.वी. का श्रीमान
नेटवर्क मज़बूत है टी.वी. का श्रीमान |
बचकर जायेगा कहाँ भोला हिन्दुस्तान|
भोला हिन्दुस्तान, 'नेट' में फँस जायेगा |
देख-देख नंगापन, अंधा हो जायेगा |
कह जोशी कविराय, राह जो देख न पाये |
उसे 'मुक्त-बाज़ार' जिधर चाहे ले जाए ||
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And here is an approximate translation -
sir, TV's network is very strong|
where will the naive India escape?
Naive India, will be caught in the "Net' |
will go blind watching overdoze of (near)nakedness|
so says joshi kavi, those who can't see the path |
'free market' will lead them where it wishes!
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बचकर जायेगा कहाँ भोला हिन्दुस्तान|
भोला हिन्दुस्तान, 'नेट' में फँस जायेगा |
देख-देख नंगापन, अंधा हो जायेगा |
कह जोशी कविराय, राह जो देख न पाये |
उसे 'मुक्त-बाज़ार' जिधर चाहे ले जाए ||
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sir, TV's network is very strong|
where will the naive India escape?
Naive India, will be caught in the "Net' |
will go blind watching overdoze of (near)nakedness|
so says joshi kavi, those who can't see the path |
'free market' will lead them where it wishes!
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पुस्तक - राम धुन
अमरीका 'कान्हा' हुआ, 'गोपी' पिछड़े देश
अमरीका 'कान्हा' हुआ, 'गोपी' पिछड़े देश |
विश्व-बैंक-तरु पर चढ़ा, चोरी करके ड्रेस |
चोरी करके ड्रेस, गोपियाँ हा-हा खातीं |
ऋण के जल से बाहर आने से घबरातीं |
कह जोशी कविराय, 'उघाड़ीकरण' हो गया |
मुक्त-व्यवस्था-यमुना-तट पट-हरण हो गया ||
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And here is an approximate translation -
america is 'krishna', all developing countries - 'gopi'es|
has climbed the tree of world bank, having stolen the dress |
having stolen the dress, the gopies crying out loud |
they are scared to come out of the waters of debt |
so says joshi kavi, 'undressing' has happened |
on the banks of the free market yamuna, 'unveiling' has happened!
(reference to world bank, WTO, exploitation of developing countries, krishna's stealing the dresses of gopies)
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विश्व-बैंक-तरु पर चढ़ा, चोरी करके ड्रेस |
चोरी करके ड्रेस, गोपियाँ हा-हा खातीं |
ऋण के जल से बाहर आने से घबरातीं |
कह जोशी कविराय, 'उघाड़ीकरण' हो गया |
मुक्त-व्यवस्था-यमुना-तट पट-हरण हो गया ||
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america is 'krishna', all developing countries - 'gopi'es|
has climbed the tree of world bank, having stolen the dress |
having stolen the dress, the gopies crying out loud |
they are scared to come out of the waters of debt |
so says joshi kavi, 'undressing' has happened |
on the banks of the free market yamuna, 'unveiling' has happened!
(reference to world bank, WTO, exploitation of developing countries, krishna's stealing the dresses of gopies)
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कर्जे के ठाठ
कर्ज़े के ही हों भले, इन्हे चाहिए ठाठ |
जानकार कहते इसे, सोलह दूनी आठ |
सोलह दूनी आठ, समझ इनके मनसूबे |
ये नौकायन करें, मुल्क मझाधारों डूबे |
कह जोशी कविराय, क़र्ज़ भारत के खाते |
नेता मार डकार, रहेंगे आते-जाते ||
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And here is an approximate translation -
they want ishtyle, even on loan!
those in the know call it - sixteen two's are eight |
sixteen two's are eight, understand their intentions!
they to enjoy boat-ride, nation may drown (in debt) |
so says joshi kavi, loan in country's account |
politicians burp and will keep coming and going | (corruption will continue, it is in the system)
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जानकार कहते इसे, सोलह दूनी आठ |
सोलह दूनी आठ, समझ इनके मनसूबे |
ये नौकायन करें, मुल्क मझाधारों डूबे |
कह जोशी कविराय, क़र्ज़ भारत के खाते |
नेता मार डकार, रहेंगे आते-जाते ||
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they want ishtyle, even on loan!
those in the know call it - sixteen two's are eight |
sixteen two's are eight, understand their intentions!
they to enjoy boat-ride, nation may drown (in debt) |
so says joshi kavi, loan in country's account |
politicians burp and will keep coming and going | (corruption will continue, it is in the system)
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Friday, October 24, 2008
गड़बड़ है
छुप कर लोग मचानों में |
छोडें तीर ढलानों में |
हम तनहा थे क्या करते
सबके सधे निशानों में|
सौदा-सुलुफ ज़रूरी है
पर ख़तरा दूकानों में | *
टूटा गरब सुजान भगत का
भूख भरी खलिहानों में | *
हमको ही म'अ कम मिलती है
गड़बड़ है पैमानों में | *
३ अगस्त १९९५
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Something Is Wrong
hiding atop the machaan (in hunting)
people shoot arrows down the slope
i was alone, what to do
was in everyone's aim easily
commerce is important
but danger is in the market *
pride of sujaan bhagat is broken
only hunger is in the graneries *
i only get less drink
something wrong with the measurements *
* reference to the open markets, one-sided economic reforms, proposals and deals
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, October 22, 2008
दो रुबाइयाँ
बंद मुट्ठी में कभी व्योम नहीं होता है |
चन्द प्यालों में ढला सोम नहीं होता है |
मुल्क से मिलना है तो जनपथ पे चलो,
झुंड चमचों का कोई कौम नहीं होता है |
जिंदगी दिन से या रातों से नहीं होती है |
मुहब्बत सिर्फ़ मुलाकातों से नहीं होती है |
जो सर हथेली पर लेके चलें - वो आयें ,
इश्क की बात है, बातों से नहीं होती है |
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Monday, October 20, 2008
फ़ाइलों में फ़सल
फ़ाइलों में फ़सल हो रहे हैं |
रेत में भी कमल हो रहे हैं |
वक़्त को तुक नहीं मिल रही है
आप ताज़ा ग़ज़ल हो रहे हैं |
खेत का जिस्म तड़का हुआ है
आप क्यूं जल-महल हो रहे हैं |
आदमी से तो मिलते नहीं हैं
जाने किसकी नक़ल हो रहे हैं |
वो कभी भी किसी के न थे
आप जिनकी बगल हो रहे हैं |
चंद नारे घुसे हैं घरों में
आदमी बेदखल हो रहे हैं |
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, October 19, 2008
रहनुमा का खौफ़
आजकल कर्फ्यू शहर में है |
लोग सहमे,डरे घर में हैं |
पाँव लटके कब्र में तो क्या
हाथ कुर्सी की कमर में हैं |
ज़हर अमृत में नहीं कुछ फर्क
बात तो सारी असर में है |
देख लेना सत्य ही होंगे
ख्वाब जो मेरी नज़र में हैं |
रहनुमा का खौफ तबसे है
आदमी जब से सफ़र में है |
मंजिलें मुश्किल बहुत तो क्या
हौसला अब भी बशर में है |
१६ नवम्बर ९५
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पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, October 15, 2008
कन्धों पर भारी है सर
दुहरी होने लगी कमर |
कन्धों पर भारी है सर |
राम-राम आदाब बंद हैं
धर्मों में बँट गया शहर |
शाम हुई घर जाना है
पर कैसा और किसका घर |
क्यूँ हर रात सताता है
रोज़ सुबह होने का डर |
मौसम क्या रुक पायेगा
जब तक होगी उन्हें ख़बर |
मंजिल का कुछ पता नहीं
सारा जीवन सिर्फ़ सफ़र |
विष पीकर जीती दुनिया
अमृत पीकर जाती मर |
दिल की राहें रोक खड़े
पत्थर के मस्ज़िद-मंदर |
१९-मई-१९९५
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And here is an approximate translation -
The head is heavy on the shoulders|
the back is getting doubly bent|
the head is heavy on the shoulders|
raam-raam and aadaab (salutations of hindus and muslims) are no more
the city is divided in religions |
it is evening and should go home
but what home? whose home?
why does it scare every night
the fear of the morning!
will the seasons (situations) remain still
till they get to know?
no idea of any destination
this whole life has been a journey!
they live drinking poison
and die drinking nectar!
as hurdles on the path of the hearts
stand the mosques and temples |
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