Wednesday, February 4, 2009

अपना घर


सर पर है झीना सा अम्बर ।
तिस पर मौसम के ये तेवर ।

हालत पतली है, खस्ता है
उनके आश्वासन तो हैं पर ।

सारे सफ़र निरर्थक निकले
जैसी धरती, वैसा अम्बर ।

वह अलाव तो ठंडा ही था
हम बैठे थे जिसे घेर कर ।

सूरज आसपास ही होगा
मुखर हो रहे कलरव के स्वर ।

कुछ साजो-सामान नहीं है
फ़िर भी अपना घर, अपना घर ।

४ जनवरी २००३

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2 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

सर पर है झीना सा अम्बर ।
तिस पर मौसम के ये तेवर ।

हालत पतली है, खस्ता है
उनके आश्वासन तो हैं पर ।
बहुत सुंदर लिखा है

joshi kavirai said...

ग़ज़ल पसंद आयी, धन्यवाद