Thursday, February 5, 2009

तुमसे बात करनी थी


दर्द होता वो या दवा होता ।
कुछ न कुछ तो मगर हुआ होता ।

पर्दादारी भी इतनी क्या कीजे
कम कम ख़ुद से तो कहा होता ।

किसी के साथ हँसते रो लेते
आदमीयत का हक अदा होता ।

सुबह तक तुमसे बात करनी थी
तू अगर शाम को मिला होता ।

ये कठिन रास्ते सहल होते
करके हिम्मत जो चल पड़ा होता ।

दिल तो पत्थर में भी धड़कता है
तूने 'गर प्यार से छुआ होता ।

३१ जुलाई २००२

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3 comments:

रंजना said...

ये कठिन रास्ते सहल होते
करके हिम्मत जो चल पड़ा होता ।

दिल तो पत्थर में भी धड़कता है
तूने 'गर प्यार से छुआ होता !!

Waah ! Sundar gazal.

seema gupta said...

पर्दादारी भी इतनी क्या कीजे
कम कम ख़ुद से तो कहा होता ।
"वाह ये तो पर्दादारी की इन्तहा हो गयी......न जमाने से कहा गया न ही ख़ुद से ..."

Regards

joshi kavirai said...

रचना पसंद आने से खुशी हुई | ऐसे ही प्रेरेअना मिलाती है | पढ़ते रहिये |