Sunday, December 26, 2010
नौटंकी
(किसी भ्रष्ट को नहीं बख्शेंगे-मनमोहन, एन.डी.ए.की दिल्ली में महासंग्राम रैली-२२-१२-२०१०)
सब नौटंकी कर रहे, सभी बजाते गाल |
कहो हुआ किस भ्रष्ट का अब तक बाँका बाल |
अब तक बाँका बाल, बचाओगे तुम जिसको |
कल संकट आने पर वही बचाए तुमको |
जोशी मौसेरे भाइयों में रिश्तेदारी |
बेचारी जनता को पेलें बारी-बारी |
२३-१२-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
ग्लोबल गाँव में भारत
(पाकिस्तान से प्याज का आयात-२१-१२-२०१०)
एक गाँव जैसी हुई दुनिया सचमुच आज |
तोगड़िया की प्लेट में पाकिस्तानी प्याज |
पाकिस्तानी प्याज,चीन से लहसुन आए |
जिसकी चटनी आयातित रोटी सँग खाएँ |
जोशी मोबाइल से मुट्ठी में हो दुनिया |
पर अधभूखे कब तक 'चैट' करोगे भैया |
२४-१२-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Tuesday, December 21, 2010
इतिहास के पन्नों से प्याज की दुहाई
इतिहास को दुहराने में बीस नहीं सिर्फ १२ साल लगते हैं !
१९९८ की लिखी हुई कुण्डलियाँ आज फिर सन्दर्भ में है ।
पाँच दशक में हो गया सारा राज सुराज ।
घुसी तेल में 'ड्राप्सी', दुर्लभ आलू-प्याज ।
दुर्लभ आलू-प्याज, दूध पानी से सस्ता ।
पतली होती कभी तो कभी हालत खस्ता ।
कह जोशी कविराय देखना नई सदी में ।
मछली बचे न एक, ग्राह ही ग्राह नदी में ।
(मुज़फ्फरनगर के पास लोगों ने प्याज से भरा एक ट्रक लूटा- २८-८-१९९८)
जैसा जिसका मर्ज़ है वैसा करे इलाज ।
आप लूटते मज़े औ' लोग लूटते प्याज ।
लोग लूटते प्याज, उतरेंगे कल छिलके ।
ए मेरी सरकार! रहें अब ज़रा संभल के ।
कह जोशी कविराय भले ही अणुबम फोड़ें ।
पर भूखों के लिए प्याज-रोटी तो छोड़ें ।
(प्याज की कीमत एन सप्ताह में ६० रुपये किलो होने की संभावना- ८-१०-१९९८ )
जैसा-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धड़ियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाईन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित-उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।
(समन्वय समिति की मीटिंग में प्याज का मुद्दा छाया रहा- ९-१०-१९९८)
व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूलकर, लायँ प्याज का राज ।
लायँ प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएँ ।
कह जोशी कविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।
आसमान में चढ़ गए तुच्छ प्याज के दाम ।
साहिब सिंह से अटल तक सब की नींद हराम ।
सब की नींद हराम, तेल-फेक्ट्री में जाओ ।
ड्राप्सी वाला वो ही नुस्खा लेकर आओ ।
कह जोशी कविराय ड्राप्सी 'गर हो जाये ।
कीमत आपने आप प्याज की नीचे आये ।
(प्रधान मंत्री ने केबिनेट सचिव से प्याज की कीमतें घटाने के उपाय सुझाने को कहा-८-१०-१९९८)
साठ रुपय्या प्याज है, बीस रुपय्या सेव ।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठी है सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशी कविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्ज़त कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Saturday, November 27, 2010
बिहार में तीर चल गया
तीर चल गया
( बिहार चुनाव २०१० में राबड़ी, साधु यादव, राम चन्द्र पासवान, राहुल सभी फेल- २४-११ २०१० )
बीवी, साले, अनुज सब सिद्ध हुए बेकार |
अलग मूड में दीखता है अब राज्य बिहार |
है अब राज्य बिहार, हाथ ने साथ न पाया |
लालटेन, झुग्गी सब का हो गया सफाया |
'जोशी' बिना धनुष के ही वह 'तीर' चल गया |
पासवान, लालू, राहुल को फ्लेट कर गया |
नीतीश को नसीहत
( चुनाव २०१० में नीतीश की नेतृत्व में एन.डी.ए. को भयंकर बहुमत- २४-११-१० )
हाथ, लालटेन, झोंपड़ी सब को दिया उखाड़ |
मतदाता ने दे दिया तुमको छप्पर फाड़ |
तुमको छप्पर फाड़, फाड़ छप्पर जो देता |
काम ना करो फाड़ पेट वापिस ले लेता |
जोशी बातें नहीं तनिक सेवा भी करना |
शेर बनाया वही बना दे चूहा वरना |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
पाकर खोने का डर होता
धरती होती, अम्बर होता |
तुम होते तो घर, घर होता |
चाहे कहने को कतरा हूँ
लेकिन एक समंदर होता |
दीवारों पर गुमसुम लटकी
तस्वीरों में भी स्वर होता |
सपने सच होने का जादू
इस जीवन में अक्सर होता |
पाने का क्या जश्न मनाना
पाकर खोने का डर होता |
इंसानी रिश्ते होते फिर
भले न मस्जिद-मंदिर होता |
मैं तो उसके अंदर हूँ ही
काश! वो मेरे अंदर होता |
२२-११-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Monday, November 15, 2010
सेवक या राजा
( २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फँसे राजा- ११-११-२०१० )
सेवक श्रम करता नहीं, राजा करे न कष्ट ।
भूखे ही रह जाएँगे अगर नहीं हों भ्रष्ट ।
अगर नहीं हों भ्रष्ट, मिले दो रोटी सूखी ।
लगे तड़पने आत्मा काजू-व्हिस्की-भूखी ।
कह जोशी कविराय देश का बजना बाजा ।
फिर चाहे आए कोई सेवक या राजा ।
--
( सोनिया गाँधी के बारे में सुदर्शन की टिप्पणी-१०-११-१० )
कोई भी करता नहीं कोई ढंग की बात |
पाँव कब्र में पड़े हैं फिर भी घूँसा-लात |
फिर भी घूँसा-लात, जीभ से तीर चलाएँ |
लटपट बूढ़ी जीभ किसी को कुछ कह जाएँ |
कह जोशी कविराय नाम है भले सुदर्शन |
मगर हो रहा शब्दों से तो तुच्छ प्रदर्शन |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
ओबामा की मज़बूरी
ओबामा बाज़ार में बेच रहे सामान |
कोई कुछ तो खरीदो, भला करे भगवान |
भली करे भगवान, विकट मंदी, महँगाई |
डूबी अर्थव्यवस्था, आफत भारी आई |
कह जोशी कविराय साफ स्वारथ का चक्कर |
तभी झरे है मुँह से बातों की शक्कर |
८-११-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Wednesday, November 3, 2010
ज्योति कलश छलके - हैप्पी दिवाली
[ ज्योति कलश छलके - 'भाभी की चूड़ियाँ ' फ़िल्म का सुप्रसिद्ध चित्र-पट-गीत ( पं नरेंद्र शर्मा )की तर्ज़ पर आधारित ]
दीवाली पर जेब कट गई |
शोर, धुएँ से फिज़ाँ अट गई |
और पटाखों के सड़कों पर
फैले हैं छिलके | ज्योति कलश छलके |
सबके खाली टेंट हो गए |
नोट गिफ्ट की भेंट हो गए |
संबंधों पर जो खर्चे हैं
वे प्राफिट कल के | ज्योति कलश छलके |
कैसी अंधी दौड़ चल रही |
सबमें होड़ा-होड़ चल रही |
आँख मूँदकर निबल जनों से
पीछे धन, बल के | ज्योति कलश छलके |
कोई काम न करना चाहे |
माल मुफ्त का चरना चाहे |
धर्म-कर्म सब हुआ उपेक्षित
सब आशिक फल के | ज्योतिकलश छलके |
निर्धन जन से आँख चुराई |
धनिकों को दे रहे बधाई |
ऊँची, भारी बातें करते
पर मन के हलके | ज्योतिकलश छलके |
घर आगे गोबरधन रचते |
गोपालन से बचते फिरते |
गोपाष्टमी खिलाया गुड़
फिर खा कागज, छिलके | ज्योति कलश छलके |
रूप चतुर्दशी देह निहारें |
मन की कालिख नहीं उतारें |
भगत नोट के नहा रहे हैं
उबटन मल-मल के | ज्योति कलश छलके |
खेलें जुआ, सत्य ना बोले |
करें मिलावट औ' कम तोलें |
दर्पण में मुँह देख-देखकर
मुड़ -मुड़ कर मुळकें | ज्योति कलश छलके |
दो नंबर की लक्ष्मी आई |
पर इसमें आनंद न भाई |
सच्ची लक्ष्मी तब प्रकटे
जब श्रम सीकर झलकें | ज्योति कलश छलके |
मुख से बोलें राम-राम सा |
पर स्वारथ से सदा काम सा |
राम मिलेंगे धर्म-न्याय से
वन-वन चल-चल के | ज्योति कलश छलके |
मूल गीत सुनाने के लिए क्लिक करें
३०-१०-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Saturday, September 4, 2010
मंदिर-मस्जिद विवाद का हल - २
सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -
२३१ मंदिर-मस्जिद-विवाद : असाध्य बीमारी
'रोगी मरे, न ठीक हो', देकर ऐसी खाज ।
ख़ुद ही बन कर डाक्टर, करते रहे इलाज़ ।
करते रहे इलाज, एक पूजन करवाए ।
तो दूजे का मज़हब, खतरे में पड़ जाए ।
कह जोशी कविराय, समस्या रक्खो जिंदा ।
राजनीति का धंधा, जिससे ना हो मंदा ।
२३२ मंदिर-मस्जिद-विवाद : सीधा तरीका
हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
मंदिर तेरा राम, तरस थोड़ा तो खाओ ।
सर्व-धर्म-समभाव बने, वह जुगत भिड़ाओ ।
कह जोशी कविराय, तरीका सीधा सुन्दर ।
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर ।
२३३ मंदिर-मस्जिद-विवाद : विश्व की एकता
मंदिर यदि श्रीराम का, मक्का में बन जाय ।
और अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय ।
मस्ज़िद सुखद सुहाय, मज़े सबको ही आएँ ।
राष्ट्र, धर्म निरपेक्ष, सभी सब्सीडी पाएँ ।
जोशी हाजी सभी, अयोध्या में आयेंगे ।
और तीर्थ यात्री, उड़कर मक्का जायेंगे ।
२३४ मंदिर-मस्ज़िद-विवाद : बीच में दुकान
मंदिर-मस्ज़िद बीच में, खोलो एक दुकान ।
बेचें जिसमें सेठ जी, आवश्यक सामान ।
आवश्यक सामान, मिठाई एवं डंडे ।
जिन्हें खरीदें हिन्दू, मुस्लिम, मुल्ला, पंडे ।
जोशी हर हालत में, होगी वहाँ कमाई ।
दंगे हों तो डंडे, वरना बिके मिठाई ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
२३१ मंदिर-मस्जिद-विवाद : असाध्य बीमारी
'रोगी मरे, न ठीक हो', देकर ऐसी खाज ।
ख़ुद ही बन कर डाक्टर, करते रहे इलाज़ ।
करते रहे इलाज, एक पूजन करवाए ।
तो दूजे का मज़हब, खतरे में पड़ जाए ।
कह जोशी कविराय, समस्या रक्खो जिंदा ।
राजनीति का धंधा, जिससे ना हो मंदा ।
२३२ मंदिर-मस्जिद-विवाद : सीधा तरीका
हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
मंदिर तेरा राम, तरस थोड़ा तो खाओ ।
सर्व-धर्म-समभाव बने, वह जुगत भिड़ाओ ।
कह जोशी कविराय, तरीका सीधा सुन्दर ।
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर ।
२३३ मंदिर-मस्जिद-विवाद : विश्व की एकता
मंदिर यदि श्रीराम का, मक्का में बन जाय ।
और अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय ।
मस्ज़िद सुखद सुहाय, मज़े सबको ही आएँ ।
राष्ट्र, धर्म निरपेक्ष, सभी सब्सीडी पाएँ ।
जोशी हाजी सभी, अयोध्या में आयेंगे ।
और तीर्थ यात्री, उड़कर मक्का जायेंगे ।
२३४ मंदिर-मस्ज़िद-विवाद : बीच में दुकान
मंदिर-मस्ज़िद बीच में, खोलो एक दुकान ।
बेचें जिसमें सेठ जी, आवश्यक सामान ।
आवश्यक सामान, मिठाई एवं डंडे ।
जिन्हें खरीदें हिन्दू, मुस्लिम, मुल्ला, पंडे ।
जोशी हर हालत में, होगी वहाँ कमाई ।
दंगे हों तो डंडे, वरना बिके मिठाई ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Wednesday, September 1, 2010
मंदिर-मस्जिद विवाद का हल - १
सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -
२२८ मंदिर-मस्जिद विवाद
ख़ास जगह से जोड़ कर, ईश्वर का सम्बन्ध ।
अपनी नेतागिरी का, दोनों करें प्रबंध ।
दोनों करें प्रबंध, धर्म का जोश दिलाएँ ।
भोले-भाले भक्त, लट्ठ लेकर भिड़ जाएँ ।
कह जोशी कवि साथ न संभव, दोनों सरको ।
क्यों कट्टर बन फूँक रहे हो अपने घर को ।
२२९ मंदिर-मस्जिद-विवाद : नई योजना
सब झगड़े मिट जायेंगे, हो जायेगा काम ।
रामल्ला में जब बसें, सँग-सँग अल्ला-राम ।
सँग-सँग अल्ला-राम, मिलें मुल्ला औ' पंडित ।
औ' वहीं ले जायँ, विवादित ढाँचा खंडित ।
कह जोशी कविराय, छोड़ कर सब झगड़ा-ज़िद ।
वहीं बनाएँ पास-पास में मंदिर-मस्जिद ।
२३० मंदिर-मस्जिद-विवाद : अपने-अपने स्वप्न
उनके ख़्वाबों में खुदा, इनके सपने राम ।
दोनों के चलते हुई, सबकी नींद हराम ।
सबकी नींद हराम, स्वप्न हमको भी आते ।
पर उनमें हैं रोटी-पानी, रिश्ते-नाते ।
कह जोशी कविराय, भावना जिसकी जैसी ।
सपनें में भी चीज़, दिखाई देती वैसी ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
२२८ मंदिर-मस्जिद विवाद
ख़ास जगह से जोड़ कर, ईश्वर का सम्बन्ध ।
अपनी नेतागिरी का, दोनों करें प्रबंध ।
दोनों करें प्रबंध, धर्म का जोश दिलाएँ ।
भोले-भाले भक्त, लट्ठ लेकर भिड़ जाएँ ।
कह जोशी कवि साथ न संभव, दोनों सरको ।
क्यों कट्टर बन फूँक रहे हो अपने घर को ।
२२९ मंदिर-मस्जिद-विवाद : नई योजना
सब झगड़े मिट जायेंगे, हो जायेगा काम ।
रामल्ला में जब बसें, सँग-सँग अल्ला-राम ।
सँग-सँग अल्ला-राम, मिलें मुल्ला औ' पंडित ।
औ' वहीं ले जायँ, विवादित ढाँचा खंडित ।
कह जोशी कविराय, छोड़ कर सब झगड़ा-ज़िद ।
वहीं बनाएँ पास-पास में मंदिर-मस्जिद ।
२३० मंदिर-मस्जिद-विवाद : अपने-अपने स्वप्न
उनके ख़्वाबों में खुदा, इनके सपने राम ।
दोनों के चलते हुई, सबकी नींद हराम ।
सबकी नींद हराम, स्वप्न हमको भी आते ।
पर उनमें हैं रोटी-पानी, रिश्ते-नाते ।
कह जोशी कविराय, भावना जिसकी जैसी ।
सपनें में भी चीज़, दिखाई देती वैसी ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Wednesday, August 25, 2010
जूते और कामन वेल्थ
१. नया उपयोग
(हरियाणा के मुख्यमंत्री हुड्डा पर शक्ति सिंह नाम के एक व्यक्ति ने जूता फेंका -२२-८-२०१०)
बदल गया है वक्त और बदल गए सब यूज़ |
पहना जाता कभी अब फेंका जाता शूज़ |
फेंका जाता शूज़, इसे प्रक्षेपित करता |
वह चर्चित होता पल भर में हीरो बनता |
कह जोशी कविराय जिसे जूता लग जाए |
लगते ही वह हुड्डा जी से बुश बन जाए |
२.
(१५ अगस्त २०१० के कार्यक्रम में श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला पर जूता फेंका )
बुश से लेकर उमर तक फिंकता जूता देख |
दुनिया में संवाद की भाषा नूतन, नेक |
भाषा नूतन, नेक; चिदंबरम औ' जरदारी |
बड़े-बड़ों की छवि जूते से गई निखारी |
कह जोशी कविराय बढ़ गया रुतबा उसका |
जिस पर भी जनता ने खुश हो फेंका जूता |
३. मोम के स्वामी
(भक्तों ने सी.डी. स्वामी नित्यानन्द की मोम की मूर्ति बनवाकर आश्रम में रखी- एक समाचार, २९-७-२०१०)
बने मोम की मूर्ति स्वामी नित्यानंद |
भक्तों का अंदाज यह आया हमें पसंद |
आया हमें पसंद, जहाँ चाहें रखवाएँ |
पर सुंदरियाँ कभी मूर्ति के पास न जाएँ |
कह जोशी कवि वरना गड़बड़ हो जाएगी |
यौवन की गरमी पाकर के पिघल जाएगी |
४.शुद्ध सोना
(मैं २४ कैरेट सोने के सामान शुद्ध हूँ- कर्णाटक के पर्यटन मंत्री जनार्दन रेड्डी, १९-७-२०१० )
मंत्री इतने शुद्ध ज्यों चौबीस कैरेट स्वर्ण |
फिर भी जाने हो रहा क्यों नेतृत्व विवर्ण |
क्यों नेतृत्व विवर्ण, किस तरह पिंड छुडाए |
सारे चिंतन करें मगर कुछ समझ न आए |
कह जोशी कविराय सभी हो रहे निरुत्तर |
कुर्सी के लालच में पकड़े साँप छछूँदर |
५. कामन वेल्थ
(कामन वेल्थ गेम्स में करोड़ों का घपला, खेल समिति शक के घेरे में, अगस्त २०१० )
सबका ही अधिकार है जब कामन है वेल्थ |
अगर न खाएँ तो भला कैसे सुधरे हेल्थ |
कैसे सुधरे हेल्थ, दौड़ना कूद लगाना |
कैसे संभव अगर नहीं खाएँगे खाना |
जोशी नीति कहे यदि हों दो तबले लाना |
तो उनमें से एक स्वयं के घर पहुँचाना |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Wednesday, March 31, 2010
योअर नेम इज नोट खान
1.
(राहुल गांधी बिना पूर्व सूचना के मुम्बई की लोकल ट्रेन में घूमे- ५-२-२०१०)
आप घूमते ट्रेन में मुम्बई में बिंदास ।
मगर पंडितों को नहीं घर जाने की आस ।
घर जाने की आस, खायँ दिल्ली में धक्के ।
जन्म भूमि के ख्वाब देखते हक्के-बक्के ।
कह जोशी कविराय - 'देश सबका' तब मानें ।
जब 'पंडित' निर्भय हो घर जाने की ठानें ।
2. गुंडों का राज
कैसे मानें देश में- 'सारे लोग समान' ।
एक सभी का मुल्क है- 'प्यारा हिंदुस्तान' ।
प्यारा हिंदुस्तान, इसे हम तब सच मानें ।
जब 'पंडित' घर लौटें तो सत्ता को जानें ।
कह जोशी कविराय 'राज' वरना गुंडों का ।
बड़े जनों के बिगड़े अपराधी मुंडों का ।
3. फिल्म और बकरा
(महाराष्ट्र सरकार ने 'माई नेम इज खान' रिलीज करवाने के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए- १२-२-२०१०)
अपनी रक्षा कर स्वयं या फिर भज ले राम ।
जनता की सरकार को और बहुत हैं काम ।
और बहुत हैं काम क्रिकेट का मैच खिलाना ।
औ' 'मई नेम इज खान' प्रदर्शित भी करवाना ।
कह जोशी कविराय बता देना बकरे को ।
अपने बल पर झेलना हर खतरे को ।
4. योअर नेम इज नोट खान
(पाक अधिकृत कश्मीर भाग चुके आतंकवादी भाइयों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की योजना- १६-२-२०१०)
'पंडित' रहकर जा सकें हम अपने घर-बार ।
नहीं दूर तक दीखते इसके कुछ आसार ।
इसके कुछ आसार, 'खान' यदि हम बन जाएँ ।
आतंकी होकर भी मोटा पैकेज पाएँ ।
कह जोशी कविराय जो शिखा-सूत्र रखेंगे ।
काश्मीर में वे ही सदा अछूत रहेंगे ।
5. कायर या मक्कार
कश्मीरी आतंकियों का करती सत्कार ।
कायर है सत्ता यहाँ या फिर है मक्कार ।
या फिर है मक्कार, केंद्र से पैकेज आए ।
जिसको नेता, आतंकी मिल-जुल कर खाएँ ।
कह जोशी कविराय दलाली खुल्ला खाता ।
पैकेज देने में इनके घर से क्या जाता ।
6. बढ़िया मौका
भाग गए थे जो कभी वे सब आएँ लौट ।
सबको देंगे नौकरी, बोरी भरकर नोट ।
बोरी भर कर नोट, न कोई केस चलेगा ।
ऐसा बढ़िया मौका बोलो कहाँ मिलेगा ।
कह जोशी कवि बात 'पंडितों' की ना करते ।
घर से गए निकले जाने कहाँ भटकते ।
7.
भारत देगा नौकरी और प्रशिक्षण पाक ।
सीधे पढ़-लिख छानते शेष मुल्क में ख़ाक ।
शेष मुल्क में ख़ाक, धाक, सर्विस जो चाहें ।
उनको यह संकेत शीघ्र हथियार उठाएँ ।
कह जोशी कवि जो राजा को जूता मारे ।
राजा सादर उसको अपना बाप पुकारे ।
8.
'गर भारत में आप हैं शर्मा, गुप्ता, सिंह ।
तो सत्ता के पास में नहीं है एनीथिंग ।
नहीं है एनीथिंग, अल्पसंख्यक को सब कुछ ।
अगर बदल लो धर्म तभी हो पाएगा कुछ ।
कह जोशी कवि बनो मुसलमाँ या ईसाई ।
मिले वजीफा, सीट मज़े से करो पढ़ाई ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Tuesday, March 30, 2010
स्वामी और हम
दिल्ली और कर्नाटक में स्वामियों के कर्म उजागर- ५-३-२०१०
1. स्वामी और हम
स्वर्ण-महल रावण रहें, बन-बन भटकें राम ।
छः दशकों के राज का हासिल यह परिणाम ।
हासिल यह परिणाम , सेक्स में डूबे स्वामी ।
झूठ-मूठ ही हम गाते- 'मूरख, खल, कामी' ।
कह जोशी कविराय समेटें अपना ढाबा ।
अच्छा हो घर-बार बसा लें ऐसे बाबा ।
2.
ताम-झाम से जानिए धर्म-कर्म का मर्म ।
जितने ज्यादा ठाठ हैं उतने ही दुष्कर्म ।
उतने ही दुष्कर्म, कहाँ से रुपये आते ।
ना पूछे सरकार, न ही बाबा बतलाते ।
जोशी भोजन के बारे में बहुत पढ़ाए ।
मगर संतुलित भोजन टीचर ना कर पाए ।
3.
ए.सी. सारा आश्रम, हैं आयातित कार ।
भूल 'राम' भजते जहाँ बाबा 'पञ्च-मकार' ।
बाबा 'पञ्च-मकार' मद्य की बहती नदियाँ ।
मैथुन-मुद्रा युक्त सर्व करतीं सुन्दरियाँ ।
कह जोशी कविराय स्वर्ग जाकर क्या करना ।
जहाँ अप्सरा मिलें वहीं बाबा को रहना ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
सीमा-सुरक्षा
1. सीमा-सुरक्षा
(पिछले दो दशकों में चीन ने भारत की बहुत सी ज़मीन हथियाई- एक रिपोर्ट, ११-१-२०१०)
पंद्रह फुट का शेड है, छः फुट की दूकान ।
तिस पर सड़कों पर रखा लाला का सामान ।
लाला का सामान, जहाँ पर भी ये जाएँ ।
धड़ से चार गुनी अपनी टाँगें फैलाएँ ।
जोशी चीनी सीमा पर यदि इन्हें बसा दें ।
तो ये ल्हासा तक अपनी दूकान लगा दें ।
2. ग्लोबल वार्मिंग
(उत्तर भारत में कड़ाके की ठण्ड-१२-१-२०१०)
वे ग्लोबल वार्मिंग कहें, हमें लग रही ठण्ड ।
यह वैज्ञानिक तथ्य है या कोई पाखंड ।
या कोई पाखंड, फेक्ट्री नहीं लगाएँ ।
ठीक पुरानी करने की तकनीक ले जाएँ ।
जोशी तो फिर कैसे अपना काम चलेगा ।
फ़िक्र नहीं, सब योरप-अमरीका भेजेगा ।
3. चिक-चिक करके
(महँगाई पर सोनिया चिंतित- २१-१-२०१०)
काम करो ना करो पर करो काम की फ़िक्र ।
फ़िक्र करो ना करो पर करो फ़िक्र का ज़िक्र ।
करो फ़िक्र का ज़िक्र, बढ़े जनता की हिम्मत ।
औ' लग जाए आस, घटेगी अब तो कीमत ।
जोशी सहते-सहते जनता सह जाएगी ।
थोड़े दिन चिक-चिक करके फिर रह जाएगी ।
4. राम की सीमा
(इंदौर में तम्बुओं में भाजपा का अधिवेशन- १८-२-२०१०)
मंदिर तक सीमित हुए पुरुषोत्तम श्री राम ।
आदर्शों के राम से नहीं किसी को काम ।
नहीं किसी को काम, यहाँ तम्बू थे ए.सी. ।
ऐसे करते महँगाई की ऐसी-तैसी ।
कह जोशी कविराय हमारी हालत पतली ।
आप खा रहे अधिवेशन में भुट्टा-इमली ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Thursday, February 25, 2010
बातें सभी पुरानी हैं
बातें सभी पुरानी हैं ।
राजा है या रानी है ।
ऊपर से जो ठहरी दीखे
झील वही तूफ़ानी है ।
अपनी कहकर जिसको गाया
तेरी राम कहानी है ।
कैसे देखें तेरा चेहरा
आँखें पानी-पानी हैं ।
उजली दाढ़ी , लंबे चोगे
करतूतें शैतानी हैं ।
२६-११-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, February 24, 2010
दिन बीता और शाम हो गई
दिन बीता और शाम हो गई ।
आफ़त एक तमाम हो गई ।
मै'अ कुछ यूँ दी उसने हमको
पीनी हमें हराम हो गई ।
जो ख़ुद से भी नहीं कही थी
वे सब बातें आम हो गई ।
घोड़ा जितना ज़्यादा दौड़ा
उतनी सख्त लगाम हो गई ।
'मुक्त' हुआ व्यापार इस कदर
सारी सोच गुलाम हो गई ।
जो भी दुःख-दंडकवन भटकी
वही जिंदगी राम हो गई ।
२७-७-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Tuesday, February 23, 2010
गर आप हमारे हो जाते
'गर आप हमारे हो जाते ।
तो लाख सहारे हो जाते ।
अँधियारे में रहने वाले
जगमग घर-द्वारे हो जाते ।
उत्तर तुम दे देते तो
हम एक किनारे हो जाते ।
खींचातानी मिट जाती
सब वारे-न्यारे हो जाते ।
अनदेखे रहने वाले हम
आँखों के तारे हो जाते ।
८-१२-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Subscribe to:
Posts (Atom)