सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -
२३१ मंदिर-मस्जिद-विवाद : असाध्य बीमारी
'रोगी मरे, न ठीक हो', देकर ऐसी खाज ।
ख़ुद ही बन कर डाक्टर, करते रहे इलाज़ ।
करते रहे इलाज, एक पूजन करवाए ।
तो दूजे का मज़हब, खतरे में पड़ जाए ।
कह जोशी कविराय, समस्या रक्खो जिंदा ।
राजनीति का धंधा, जिससे ना हो मंदा ।
२३२ मंदिर-मस्जिद-विवाद : सीधा तरीका
हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
मंदिर तेरा राम, तरस थोड़ा तो खाओ ।
सर्व-धर्म-समभाव बने, वह जुगत भिड़ाओ ।
कह जोशी कविराय, तरीका सीधा सुन्दर ।
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर ।
२३३ मंदिर-मस्जिद-विवाद : विश्व की एकता
मंदिर यदि श्रीराम का, मक्का में बन जाय ।
और अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय ।
मस्ज़िद सुखद सुहाय, मज़े सबको ही आएँ ।
राष्ट्र, धर्म निरपेक्ष, सभी सब्सीडी पाएँ ।
जोशी हाजी सभी, अयोध्या में आयेंगे ।
और तीर्थ यात्री, उड़कर मक्का जायेंगे ।
२३४ मंदिर-मस्ज़िद-विवाद : बीच में दुकान
मंदिर-मस्ज़िद बीच में, खोलो एक दुकान ।
बेचें जिसमें सेठ जी, आवश्यक सामान ।
आवश्यक सामान, मिठाई एवं डंडे ।
जिन्हें खरीदें हिन्दू, मुस्लिम, मुल्ला, पंडे ।
जोशी हर हालत में, होगी वहाँ कमाई ।
दंगे हों तो डंडे, वरना बिके मिठाई ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
3 comments:
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट। सद्भाव और आपसी भाईचारा ही इसका हल भी है मगर नेताओं ने इसे पेचीदा बना दिया है\धन्यवाद। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें। धन्यवाद
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
आदरणीय जोशी कविराय जी
प्रणाम ! घणैमान राम राम !!
ग़ज़ब कुंडलियां रची आपने तो …
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर
जोशीजी , अयोध्या में तो मस्जिद पहले से ही बनी भी है , और भी बननी संभव है …मक्का में मंदिर की बात करने की भी किसी की औकात लगती है आपको ?
कविता में भी तर्कसंगत कुछ कहते तो मज़ा आता , ऐसी कपोलकल्पना ! और इतने महत्वपूर्ण विषय के संदर्भ में ?? … और वह भी आप जैसे बुजुर्ग के लेखन में , जिनके अवुभवों से नई पीढ़ी प्रेरणा के लिए आशान्वित होती है ।
आपको अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय लेकिन हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम । वाह पंडित जी , नमन है आपको !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्र जी, टिपण्णी के लिए धन्यवाद | जो शब्द कहे गए हैं, वे सब कवि के स्वयं के न होकर, शायद 'झूठा सच' हो, जिसे कुछ लोग फैला रहे हैं | व्यंग्य को समझें |
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