Saturday, September 4, 2010

मंदिर-मस्जिद विवाद का हल - २

सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -

२३१ मंदिर-मस्जिद-विवाद : असाध्य बीमारी

'रोगी मरे, न ठीक हो', देकर ऐसी खाज ।
ख़ुद ही बन कर डाक्टर, करते रहे इलाज़ ।
करते रहे इलाज, एक पूजन करवाए ।
तो दूजे का मज़हब, खतरे में पड़ जाए ।
कह जोशी कविराय, समस्या रक्खो जिंदा ।
राजनीति का धंधा, जिससे ना हो मंदा ।

२३२ मंदिर-मस्जिद-विवाद : सीधा तरीका

हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
मंदिर तेरा राम, तरस थोड़ा तो खाओ ।
सर्व-धर्म-समभाव बने, वह जुगत भिड़ाओ ।
कह जोशी कविराय, तरीका सीधा सुन्दर ।
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर ।

२३३ मंदिर-मस्जिद-विवाद : विश्व की एकता

मंदिर यदि श्रीराम का, मक्का में बन जाय ।
और अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय ।
मस्ज़िद सुखद सुहाय, मज़े सबको ही आएँ ।
राष्ट्र, धर्म निरपेक्ष, सभी सब्सीडी पाएँ ।
जोशी हाजी सभी, अयोध्या में आयेंगे ।
और तीर्थ यात्री, उड़कर मक्का जायेंगे ।

२३४ मंदिर-मस्ज़िद-विवाद : बीच में दुकान

मंदिर-मस्ज़िद बीच में, खोलो एक दुकान ।
बेचें जिसमें सेठ जी, आवश्यक सामान ।
आवश्यक सामान, मिठाई एवं डंडे ।
जिन्हें खरीदें हिन्दू, मुस्लिम, मुल्ला, पंडे ।
जोशी हर हालत में, होगी वहाँ कमाई ।
दंगे हों तो डंडे, वरना बिके मिठाई ।

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

3 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट। सद्भाव और आपसी भाईचारा ही इसका हल भी है मगर नेताओं ने इसे पेचीदा बना दिया है\धन्यवाद। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें। धन्यवाद
http://veeranchalgatha.blogspot.com/

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय जोशी कविराय जी
प्रणाम ! घणैमान राम राम !!

ग़ज़ब कुंडलियां रची आपने तो …

बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर
जोशीजी , अयोध्या में तो मस्जिद पहले से ही बनी भी है , और भी बननी संभव है …मक्का में मंदिर की बात करने की भी किसी की औकात लगती है आपको ?

कविता में भी तर्कसंगत कुछ कहते तो मज़ा आता , ऐसी कपोलकल्पना ! और इतने महत्वपूर्ण विषय के संदर्भ में ?? … और वह भी आप जैसे बुजुर्ग के लेखन में , जिनके अवुभवों से नई पीढ़ी प्रेरणा के लिए आशान्वित होती है ।

आपको अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय लेकिन हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
वाह पंडित जी , नमन है आपको !!


- राजेन्द्र स्वर्णकार

joshi kavirai said...

राजेन्द्र जी, टिपण्णी के लिए धन्यवाद | जो शब्द कहे गए हैं, वे सब कवि के स्वयं के न होकर, शायद 'झूठा सच' हो, जिसे कुछ लोग फैला रहे हैं | व्यंग्य को समझें |