[ ज्योति कलश छलके - 'भाभी की चूड़ियाँ ' फ़िल्म का सुप्रसिद्ध चित्र-पट-गीत ( पं नरेंद्र शर्मा )की तर्ज़ पर आधारित ]
दीवाली पर जेब कट गई |
शोर, धुएँ से फिज़ाँ अट गई |
और पटाखों के सड़कों पर
फैले हैं छिलके | ज्योति कलश छलके |
सबके खाली टेंट हो गए |
नोट गिफ्ट की भेंट हो गए |
संबंधों पर जो खर्चे हैं
वे प्राफिट कल के | ज्योति कलश छलके |
कैसी अंधी दौड़ चल रही |
सबमें होड़ा-होड़ चल रही |
आँख मूँदकर निबल जनों से
पीछे धन, बल के | ज्योति कलश छलके |
कोई काम न करना चाहे |
माल मुफ्त का चरना चाहे |
धर्म-कर्म सब हुआ उपेक्षित
सब आशिक फल के | ज्योतिकलश छलके |
निर्धन जन से आँख चुराई |
धनिकों को दे रहे बधाई |
ऊँची, भारी बातें करते
पर मन के हलके | ज्योतिकलश छलके |
घर आगे गोबरधन रचते |
गोपालन से बचते फिरते |
गोपाष्टमी खिलाया गुड़
फिर खा कागज, छिलके | ज्योति कलश छलके |
रूप चतुर्दशी देह निहारें |
मन की कालिख नहीं उतारें |
भगत नोट के नहा रहे हैं
उबटन मल-मल के | ज्योति कलश छलके |
खेलें जुआ, सत्य ना बोले |
करें मिलावट औ' कम तोलें |
दर्पण में मुँह देख-देखकर
मुड़ -मुड़ कर मुळकें | ज्योति कलश छलके |
दो नंबर की लक्ष्मी आई |
पर इसमें आनंद न भाई |
सच्ची लक्ष्मी तब प्रकटे
जब श्रम सीकर झलकें | ज्योति कलश छलके |
मुख से बोलें राम-राम सा |
पर स्वारथ से सदा काम सा |
राम मिलेंगे धर्म-न्याय से
वन-वन चल-चल के | ज्योति कलश छलके |
मूल गीत सुनाने के लिए क्लिक करें
३०-१०-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
No comments:
Post a Comment