Wednesday, January 14, 2009

डायरी


करती नींद हराम डायरी ।
कैसी है हे राम! डायरी ॥

करते जो हालात कराता
कुछ ना आए काम डायरी ॥

वह लिखने में कब आता है
जो देती अंजाम डायरी ॥

नहीं दीखती जिनको मंजिल
उनके लिए मुकाम डायरी ॥

ज्यादातर को गुठली भर है
कुछ के खातिर आम डायरी ॥

राजा भोज साफ़ बच जाते
गंगू को इल्ज़ाम डायरी ॥

दुनिया की डायरियाँ झूठी
सच जो लिक्खें राम डायरी ॥

२८ अगस्त १९९८

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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2 comments:

Udan Tashtari said...

राजा भोज साफ़ बच जाते
गंगू को इल्ज़ाम डायरी ॥


--सटीक!!

joshi kavirai said...

समीर जी ,आबे ज़म ज़म को पीकर मेरे सामने । उसने उगला है कितना ज़हर देखिये ॥ बढ़िया। आपका गद्य भी बहता है ।बेटे की शादी की भी बधाई