Tuesday, December 2, 2008

इल्जाम


आँधी और तूफ़ान आगये
चिर परिचित मेहमान आगये |

घुटन, अँधेरा, दर्द, उदासी
जीने के सामान आगये |

उनका नाम क्या लिया, हमपर
सब के सब इल्ज़ाम आगये |

उनके घर के हर रस्ते में
छोटे बड़े मकान आगये |

दो गज़ का अरमान किया तो
कुर्की के फरमान आ गए |

उन्हें मनाना आसाँ था पर
मन में गरब गुमान आ गए

८ जून १९९५

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2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

guman aadmi se jinda rahane ka hak chhinane lagte hain. narayan narayan

श्यामल सुमन said...

गमजदा रहा भर दिन लेकिन।
आपकी कविता देखी तो मुस्कान आ गए।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com