Wednesday, December 24, 2008
सुर्खी है अखबारों में
या तो रौनक बाज़ारों में ।
या सत्ता के गलियारों में ।
चेहरे होते जाते पीले
पर सुर्खी है अख़बारों में ।
जड़ा फ़र्श पर संगेमरमर
मगर दरारें दीवारों में ।
धरती पर काँटे,उनको क्या
जिनको उड़ना गुब्बारों में ।
चला 'लोक' से 'तंत्र' हमारा
क़ैद हो गया परिवारों में ।
अपना चेहरा लेकर क्या तुम
जा पाओगे दरबारों में ।
२२ नवम्बर १९९७
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, December 18, 2008
आप
यूँ तो चाँद सितारे आप ।
लेकिन नहीं हमारे आप ।
घर के भीतर भी डर लगता
जब से हैं रखवारे आप ।
हम तो सिकर दुपहरी झेलें
दिखते साँझ सकारे आप ।
कौन सहारा बने आपका
किसके बने सहारे आप ।
पानी गुज़र गया सर से है
बैठे रहे किनारे आप ।
२ फरवरी २००१
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
You
Like the moon you shine
But you are not mine
It is scary even inside the home
Ever since guard you have become
We bear the torture of high noon
You are cool as the evening moon
Who can be you support?
Have YOU been anyone's support?
Above (our) heads, the water flows
But you sit pretty on the shores
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, December 17, 2008
जाने कब
ज़िंदगी चुटकुला नहीं यारो
कैसे पल में बयान हो जाए ।
आज डरता है वो हवाओं से
जिसकी बेटी जवान हो जाए ।
बच्चे छोटे हैं लड़खड़ाते हैं
कैसे पंछी उड़ान को जाए ।
रिश्ते बहते नहीं जब खूँ में
लाख ऊँचा मकान हो जाए ।
अपनी बातें भी कोई बातें हैं
आपका ही बखान हो जाए ।
अक्ल मज़हब के गिरवी मत रखना
जाने कब तालिबान हो जाए ।
३० अक्टूबर २००२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
Life is not a joke my dear friend
How can I describe it in a moment
Even the winds get him scared
Whose daughter is coming of age
The chicks are small and wobbly
How can the bird go for foraging
When relations don't warm the blood
(then) let the house be multi-storied
(what difference does it make, if warmth of relations is not there?)
Nothing about me for the conversation
Let us just have your own glorification!
Don't pawn your minds to religion
Who knows when it may turn 'talibaan'
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
कैसे पल में बयान हो जाए ।
आज डरता है वो हवाओं से
जिसकी बेटी जवान हो जाए ।
बच्चे छोटे हैं लड़खड़ाते हैं
कैसे पंछी उड़ान को जाए ।
रिश्ते बहते नहीं जब खूँ में
लाख ऊँचा मकान हो जाए ।
अपनी बातें भी कोई बातें हैं
आपका ही बखान हो जाए ।
अक्ल मज़हब के गिरवी मत रखना
जाने कब तालिबान हो जाए ।
३० अक्टूबर २००२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
Life is not a joke my dear friend
How can I describe it in a moment
Even the winds get him scared
Whose daughter is coming of age
The chicks are small and wobbly
How can the bird go for foraging
When relations don't warm the blood
(then) let the house be multi-storied
(what difference does it make, if warmth of relations is not there?)
Nothing about me for the conversation
Let us just have your own glorification!
Don't pawn your minds to religion
Who knows when it may turn 'talibaan'
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
religion,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, December 8, 2008
सबकी ख़बर
इतनी संकरी डगर है मियाँ |
दो का मुश्किल गुज़र है मियां |
एक हो जायँ दिल-जान से
काफ़ी लम्बी डगर है मियाँ
जाम दो तो सलीके से दो
वरना म 'अ क्या, ज़हर है मियाँ |
यूँ तो कहने को हर चीज़ है
पर कहीं कुछ कसर है मियाँ |
चुप भली है भरम के लिए
वरना सबकी ख़बर है मियाँ |
लोग हर हाल में मस्त हैं
इक हमीं पर कहर है मियाँ |
सिर्फ़ वो ही नहीं सुन रहे
शे'र जिनके लिए है मियाँ |
३ अगस्त १९९५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Sunday, December 7, 2008
तन का फैलाव
उनसे अगर लगाव न होता।
इतना अधिक तनाव न होता।
ओंठों पर सच ना लाते तो
सर पर यूँ पथराव न होता।
आपस में अनजाने रहते
घर में अगर अलाव न होता।
उनको पाना कठिन नहीं था
मन में अगर दुराव न होता।
शहरी होना क्या मुश्किल था
गँवई अगर स्वभाव न होता।
मन की दुनिया भी पा जाते
तन का यूँ फैलाव न होता ।
५ अप्रेल २००१
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
physical (material) expanse
had it not been for attachment
won't need any stress management
had i not used so truthful tones
won't have been pelted with stones
lived like strangers in the same space
had it not been for the cozy fireplace
it wasn't difficult to win their hearts
if it wasn't for hateful inner darks
it is easy to be an urbanite mature
if it wasn't for the rustic nature
easy to have peaceful spiritual trance
had it not been for the physical (material) expanse
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
इतना अधिक तनाव न होता।
ओंठों पर सच ना लाते तो
सर पर यूँ पथराव न होता।
आपस में अनजाने रहते
घर में अगर अलाव न होता।
उनको पाना कठिन नहीं था
मन में अगर दुराव न होता।
शहरी होना क्या मुश्किल था
गँवई अगर स्वभाव न होता।
मन की दुनिया भी पा जाते
तन का यूँ फैलाव न होता ।
५ अप्रेल २००१
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
physical (material) expanse
had it not been for attachment
won't need any stress management
had i not used so truthful tones
won't have been pelted with stones
lived like strangers in the same space
had it not been for the cozy fireplace
it wasn't difficult to win their hearts
if it wasn't for hateful inner darks
it is easy to be an urbanite mature
if it wasn't for the rustic nature
easy to have peaceful spiritual trance
had it not been for the physical (material) expanse
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Saturday, December 6, 2008
ढलवाँ रोशनदान
घर लेकर अरमानों में
रहते रहे मकानों में |
रोटी पानी था लेकिन
धूप न थी दालानों में |
उनको यादों में रखलो
जो न छपे दीवानों में |
महलों में रातें भी रोशन
दिन भी रात खदानों में |
क्या बतलाएँ कैसे आए
चलकर रेगिस्तानों में |
चिड़िया के तिनके न रुके
ढलवाँ रोशनदानों में |
हमीं शमां में रोशन थे
हमीं जले परवानों में |
३ मार्च १९९५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Thursday, December 4, 2008
उतना जलना दीपक को
हर हालत में साथ चलें |
ले हाथों में हाथ चलें |
ऎसी कोई बात बने
जिसकी सदियों बात चले|
उतना जलना दीपक को
जितनी लम्बी रात चले|
बंद न हो संवाद कभी
चाहे लाख विवाद चले|
कभी नहीं तन्हा थे हम
साथ तुम्हारी याद चले|
१६ अप्रेल २०००
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Wednesday, December 3, 2008
लड़कियाँ
फूल तितली का उपमान हैं लड़कियाँ ।
एक में दो-दो उपमान हैं लड़कियाँ ।
जिसने देखा वही बिद्ध होकर गिरा
एक उड़ता हुआ बाण हैं लड़कियाँ ।
सास भी है बहू औ' बहू सास है
ख़ुद ही ख़ुद से परेशान हैं लड़कियाँ ।
तीर भी है वही औ' वही बाण है
ख़ुद पे ख़ुद का ही संधान हैं लड़कियाँ ।
बनती बेटी, बहिन और प्रेयसी कभी
नित नया एक अरमान हैं लड़कियाँ ।
देखती हैं शीशा वे हरेक कोण से
ख़ुद में ही एक घमासान हैं लड़कियाँ ।
इनको रखिये बचा कर के हर हाल में
आप हम सब का अरमान हैं लड़कियाँ ।
२२ जून २००१
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
urban life,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Tuesday, December 2, 2008
इल्जाम
आँधी और तूफ़ान आगये
चिर परिचित मेहमान आगये |
घुटन, अँधेरा, दर्द, उदासी
जीने के सामान आगये |
उनका नाम क्या लिया, हमपर
सब के सब इल्ज़ाम आगये |
उनके घर के हर रस्ते में
छोटे बड़े मकान आगये |
दो गज़ का अरमान किया तो
कुर्की के फरमान आ गए |
उन्हें मनाना आसाँ था पर
मन में गरब गुमान आ गए
८ जून १९९५
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
http://joshikavi.blogspot.com
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
satire,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Monday, December 1, 2008
मन-कदलीवन
वो शायद ग़मज़दा बहुत है ।
हँसता रहता सदा बहुत है ।
दर्द सुनाया उन्हें उमर भर
फिर भी बाक़ी रहा बहुत है ।
जो अच्छा हो वो रख लेना
वैसे हमने कहा बहुत है ।
तार-तार है मन कदलीवन
इन गलियों में हवा बहुत है ।
उनसे मिलकर क्यों भ्रम तोडें
जिनके बारे सुना बहुत है ।
हमें पता है अपनी किस्मत
वैसे उनकी दुआ बहुत है ।
२२ जून २००१
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
And here is an approximate translation -
Trodden hearts (like a banana field)
Perhaps he is very sorrowful
He is always laughing a lot
Told them my woes all life long
Still to tell there is a lot
Keep only whatever is good
Though I have said a lot
Heart is shredded like a banana field
In these alleys, wind blows a lot
Why to meet and break illusions
About whom we have heard a lot
We know our destiny even though
Their kind blessings are a lot
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Labels:
book - begAne mausam,
ghazal,
hindi,
poem,
पुस्तक - बेगाने मौसम
Subscribe to:
Posts (Atom)