Sunday, December 26, 2010

नौटंकी





(किसी भ्रष्ट को नहीं बख्शेंगे-मनमोहन, एन.डी.ए.की दिल्ली में महासंग्राम रैली-२२-१२-२०१०)

सब नौटंकी कर रहे, सभी बजाते गाल |
कहो हुआ किस भ्रष्ट का अब तक बाँका बाल |
अब तक बाँका बाल, बचाओगे तुम जिसको |
कल संकट आने पर वही बचाए तुमको |
जोशी मौसेरे भाइयों में रिश्तेदारी |
बेचारी जनता को पेलें बारी-बारी |

२३-१२-२०१०

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ग्लोबल गाँव में भारत




(पाकिस्तान से प्याज का आयात-२१-१२-२०१०)

एक गाँव जैसी हुई दुनिया सचमुच आज |
तोगड़िया की प्लेट में पाकिस्तानी प्याज |
पाकिस्तानी प्याज,चीन से लहसुन आए |
जिसकी चटनी आयातित रोटी सँग खाएँ |
जोशी मोबाइल से मुट्ठी में हो दुनिया |
पर अधभूखे कब तक 'चैट' करोगे भैया |

२४-१२-२०१०

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Tuesday, December 21, 2010

इतिहास के पन्नों से प्याज की दुहाई


इतिहास को दुहराने में बीस नहीं सिर्फ १२ साल लगते हैं !
१९९८ की लिखी हुई कुण्डलियाँ आज फिर सन्दर्भ में है ।

पाँच दशक में हो गया सारा राज सुराज ।
घुसी तेल में 'ड्राप्सी', दुर्लभ आलू-प्याज ।
दुर्लभ आलू-प्याज, दूध पानी से सस्ता ।
पतली होती कभी तो कभी हालत खस्ता ।
कह जोशी कविराय देखना नई सदी में ।
मछली बचे न एक, ग्राह ही ग्राह नदी में ।


(मुज़फ्फरनगर के पास लोगों ने प्याज से भरा एक ट्रक लूटा- २८-८-१९९८)

जैसा जिसका मर्ज़ है वैसा करे इलाज ।
आप लूटते मज़े औ' लोग लूटते प्याज ।
लोग लूटते प्याज, उतरेंगे कल छिलके ।
ए मेरी सरकार! रहें अब ज़रा संभल के ।
कह जोशी कविराय भले ही अणुबम फोड़ें ।
पर भूखों के लिए प्याज-रोटी तो छोड़ें ।


(प्याज की कीमत एन सप्ताह में ६० रुपये किलो होने की संभावना- ८-१०-१९९८ )
जैसा-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धड़ियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाईन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित-उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।


(समन्वय समिति की मीटिंग में प्याज का मुद्दा छाया रहा- ९-१०-१९९८)

व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूलकर, लायँ प्याज का राज ।
लायँ प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएँ ।
कह जोशी कविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।


आसमान में चढ़ गए तुच्छ प्याज के दाम ।
साहिब सिंह से अटल तक सब की नींद हराम ।
सब की नींद हराम, तेल-फेक्ट्री में जाओ ।
ड्राप्सी वाला वो ही नुस्खा लेकर आओ ।
कह जोशी कविराय ड्राप्सी 'गर हो जाये ।
कीमत आपने आप प्याज की नीचे आये ।


(प्रधान मंत्री ने केबिनेट सचिव से प्याज की कीमतें घटाने के उपाय सुझाने को कहा-८-१०-१९९८)

साठ रुपय्या प्याज है, बीस रुपय्या सेव ।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठी है सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशी कविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्ज़त कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।


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Saturday, November 27, 2010

बिहार में तीर चल गया


तीर चल गया

( बिहार चुनाव २०१० में राबड़ी, साधु यादव, राम चन्द्र पासवान, राहुल सभी फेल- २४-११ २०१० )
बीवी, साले, अनुज सब सिद्ध हुए बेकार |
अलग मूड में दीखता है अब राज्य बिहार |
है अब राज्य बिहार, हाथ ने साथ न पाया |
लालटेन, झुग्गी सब का हो गया सफाया |
'जोशी' बिना धनुष के ही वह 'तीर' चल गया |
पासवान, लालू, राहुल को फ्लेट कर गया |


नीतीश को नसीहत

( चुनाव २०१० में नीतीश की नेतृत्व में एन.डी.ए. को भयंकर बहुमत- २४-११-१० )
हाथ, लालटेन, झोंपड़ी सब को दिया उखाड़ |
मतदाता ने दे दिया तुमको छप्पर फाड़ |
तुमको छप्पर फाड़, फाड़ छप्पर जो देता |
काम ना करो फाड़ पेट वापिस ले लेता |
जोशी बातें नहीं तनिक सेवा भी करना |
शेर बनाया वही बना दे चूहा वरना |


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पाकर खोने का डर होता


धरती होती, अम्बर होता |
तुम होते तो घर, घर होता |

चाहे कहने को कतरा हूँ
लेकिन एक समंदर होता |

दीवारों पर गुमसुम लटकी
तस्वीरों में भी स्वर होता |

सपने सच होने का जादू
इस जीवन में अक्सर होता |

पाने का क्या जश्न मनाना
पाकर खोने का डर होता |

इंसानी रिश्ते होते फिर
भले न मस्जिद-मंदिर होता |

मैं तो उसके अंदर हूँ ही
काश! वो मेरे अंदर होता |

२२-११-२०१०
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Monday, November 15, 2010

सेवक या राजा


( २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फँसे राजा- ११-११-२०१० )

सेवक श्रम करता नहीं, राजा करे न कष्ट ।
भूखे ही रह जाएँगे अगर नहीं हों भ्रष्ट ।
अगर नहीं हों भ्रष्ट, मिले दो रोटी सूखी ।
लगे तड़पने आत्मा काजू-व्हिस्की-भूखी ।
कह जोशी कविराय देश का बजना बाजा ।
फिर चाहे आए कोई सेवक या राजा ।

--

( सोनिया गाँधी के बारे में सुदर्शन की टिप्पणी-१०-११-१० )

कोई भी करता नहीं कोई ढंग की बात |
पाँव कब्र में पड़े हैं फिर भी घूँसा-लात |
फिर भी घूँसा-लात, जीभ से तीर चलाएँ |
लटपट बूढ़ी जीभ किसी को कुछ कह जाएँ |
कह जोशी कविराय नाम है भले सुदर्शन |
मगर हो रहा शब्दों से तो तुच्छ प्रदर्शन |


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ओबामा की मज़बूरी


ओबामा बाज़ार में बेच रहे सामान |
कोई कुछ तो खरीदो, भला करे भगवान |
भली करे भगवान, विकट मंदी, महँगाई |
डूबी अर्थव्यवस्था, आफत भारी आई |
कह जोशी कविराय साफ स्वारथ का चक्कर |
तभी झरे है मुँह से बातों की शक्कर |

८-११-२०१०

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Wednesday, November 3, 2010

ज्योति कलश छलके - हैप्पी दिवाली



[ ज्योति कलश छलके - 'भाभी की चूड़ियाँ ' फ़िल्म का सुप्रसिद्ध चित्र-पट-गीत ( पं नरेंद्र शर्मा )की तर्ज़ पर आधारित ]

दीवाली पर जेब कट गई |
शोर, धुएँ से फिज़ाँ अट गई |
और पटाखों के सड़कों पर
फैले हैं छिलके | ज्योति कलश छलके |

सबके खाली टेंट हो गए |
नोट गिफ्ट की भेंट हो गए |
संबंधों पर जो खर्चे हैं
वे प्राफिट कल के | ज्योति कलश छलके |

कैसी अंधी दौड़ चल रही |
सबमें होड़ा-होड़ चल रही |
आँख मूँदकर निबल जनों से
पीछे धन, बल के | ज्योति कलश छलके |

कोई काम न करना चाहे |
माल मुफ्त का चरना चाहे |
धर्म-कर्म सब हुआ उपेक्षित
सब आशिक फल के | ज्योतिकलश छलके |

निर्धन जन से आँख चुराई |
धनिकों को दे रहे बधाई |
ऊँची, भारी बातें करते
पर मन के हलके | ज्योतिकलश छलके |

घर आगे गोबरधन रचते |
गोपालन से बचते फिरते |
गोपाष्टमी खिलाया गुड़
फिर खा कागज, छिलके | ज्योति कलश छलके |

रूप चतुर्दशी देह निहारें |
मन की कालिख नहीं उतारें |
भगत नोट के नहा रहे हैं
उबटन मल-मल के | ज्योति कलश छलके |

खेलें जुआ, सत्य ना बोले |
करें मिलावट औ' कम तोलें |
दर्पण में मुँह देख-देखकर
मुड़ -मुड़ कर मुळकें | ज्योति कलश छलके |

दो नंबर की लक्ष्मी आई |
पर इसमें आनंद न भाई |
सच्ची लक्ष्मी तब प्रकटे
जब श्रम सीकर झलकें | ज्योति कलश छलके |

मुख से बोलें राम-राम सा |
पर स्वारथ से सदा काम सा |
राम मिलेंगे धर्म-न्याय से
वन-वन चल-चल के | ज्योति कलश छलके |



मूल गीत सुनाने के लिए क्लिक करें 

३०-१०-२०१०
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Saturday, September 4, 2010

मंदिर-मस्जिद विवाद का हल - २

सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -

२३१ मंदिर-मस्जिद-विवाद : असाध्य बीमारी

'रोगी मरे, न ठीक हो', देकर ऐसी खाज ।
ख़ुद ही बन कर डाक्टर, करते रहे इलाज़ ।
करते रहे इलाज, एक पूजन करवाए ।
तो दूजे का मज़हब, खतरे में पड़ जाए ।
कह जोशी कविराय, समस्या रक्खो जिंदा ।
राजनीति का धंधा, जिससे ना हो मंदा ।

२३२ मंदिर-मस्जिद-विवाद : सीधा तरीका

हो जायेगा एकता का ही काम तमाम ।
अगर अयोध्या में बना, मंदिर तेरा राम ।
मंदिर तेरा राम, तरस थोड़ा तो खाओ ।
सर्व-धर्म-समभाव बने, वह जुगत भिड़ाओ ।
कह जोशी कविराय, तरीका सीधा सुन्दर ।
बने अयोध्या में मस्जिद, मक्का में मन्दिर ।

२३३ मंदिर-मस्जिद-विवाद : विश्व की एकता

मंदिर यदि श्रीराम का, मक्का में बन जाय ।
और अयोध्या में खड़ी, मस्ज़िद सुखद सुहाय ।
मस्ज़िद सुखद सुहाय, मज़े सबको ही आएँ ।
राष्ट्र, धर्म निरपेक्ष, सभी सब्सीडी पाएँ ।
जोशी हाजी सभी, अयोध्या में आयेंगे ।
और तीर्थ यात्री, उड़कर मक्का जायेंगे ।

२३४ मंदिर-मस्ज़िद-विवाद : बीच में दुकान

मंदिर-मस्ज़िद बीच में, खोलो एक दुकान ।
बेचें जिसमें सेठ जी, आवश्यक सामान ।
आवश्यक सामान, मिठाई एवं डंडे ।
जिन्हें खरीदें हिन्दू, मुस्लिम, मुल्ला, पंडे ।
जोशी हर हालत में, होगी वहाँ कमाई ।
दंगे हों तो डंडे, वरना बिके मिठाई ।

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Wednesday, September 1, 2010

मंदिर-मस्जिद विवाद का हल - १

सितम्बर में अयोध्या राम-जन्मभूमि पर कोर्ट का निर्णय आएगा । उससे पहले ही हम कुछ हल अपनी तरफ से दे रहे हैं । प्रकाशनाधीन पुस्तक 'अपनी-अपनी लंका' से -

२२८ मंदिर-मस्जिद विवाद

ख़ास जगह से जोड़ कर, ईश्वर का सम्बन्ध ।
अपनी नेतागिरी का, दोनों करें प्रबंध ।
दोनों करें प्रबंध, धर्म का जोश दिलाएँ ।
भोले-भाले भक्त, लट्ठ लेकर भिड़ जाएँ ।
कह जोशी कवि साथ न संभव, दोनों सरको ।
क्यों कट्टर बन फूँक रहे हो अपने घर को ।

२२९ मंदिर-मस्जिद-विवाद : नई योजना

सब झगड़े मिट जायेंगे, हो जायेगा काम ।
रामल्ला में जब बसें, सँग-सँग अल्ला-राम ।
सँग-सँग अल्ला-राम, मिलें मुल्ला औ' पंडित ।
औ' वहीं ले जायँ, विवादित ढाँचा खंडित ।
कह जोशी कविराय, छोड़ कर सब झगड़ा-ज़िद ।
वहीं बनाएँ पास-पास में मंदिर-मस्जिद ।

२३० मंदिर-मस्जिद-विवाद : अपने-अपने स्वप्न

उनके ख़्वाबों में खुदा, इनके सपने राम ।
दोनों के चलते हुई, सबकी नींद हराम ।
सबकी नींद हराम, स्वप्न हमको भी आते ।
पर उनमें हैं रोटी-पानी, रिश्ते-नाते ।
कह जोशी कविराय, भावना जिसकी जैसी ।
सपनें में भी चीज़, दिखाई देती वैसी ।

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Wednesday, August 25, 2010

जूते और कामन वेल्थ




१. नया उपयोग
(हरियाणा के मुख्यमंत्री हुड्डा पर शक्ति सिंह नाम के एक व्यक्ति ने जूता फेंका -२२-८-२०१०)

बदल गया है वक्त और बदल गए सब यूज़ |
पहना जाता कभी अब फेंका जाता शूज़ |
फेंका जाता शूज़, इसे प्रक्षेपित करता |
वह चर्चित होता पल भर में हीरो बनता |
कह जोशी कविराय जिसे जूता लग जाए |
लगते ही वह हुड्डा जी से बुश बन जाए |

२.
(१५ अगस्त २०१० के कार्यक्रम में श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला पर जूता फेंका )

बुश से लेकर उमर तक फिंकता जूता देख |
दुनिया में संवाद की भाषा नूतन, नेक |
भाषा नूतन, नेक; चिदंबरम औ' जरदारी |
बड़े-बड़ों की छवि जूते से गई निखारी |
कह जोशी कविराय बढ़ गया रुतबा उसका |
जिस पर भी जनता ने खुश हो फेंका जूता |


३. मोम के स्वामी
(भक्तों ने सी.डी. स्वामी नित्यानन्द की मोम की मूर्ति बनवाकर आश्रम में रखी- एक समाचार, २९-७-२०१०)

बने मोम की मूर्ति स्वामी नित्यानंद |
भक्तों का अंदाज यह आया हमें पसंद |
आया हमें पसंद, जहाँ चाहें रखवाएँ |
पर सुंदरियाँ कभी मूर्ति के पास न जाएँ |
कह जोशी कवि वरना गड़बड़ हो जाएगी |
यौवन की गरमी पाकर के पिघल जाएगी |



४.शुद्ध सोना
(मैं २४ कैरेट सोने के सामान शुद्ध हूँ- कर्णाटक के पर्यटन मंत्री जनार्दन रेड्डी, १९-७-२०१० )

मंत्री इतने शुद्ध ज्यों चौबीस कैरेट स्वर्ण |
फिर भी जाने हो रहा क्यों नेतृत्व विवर्ण |
क्यों नेतृत्व विवर्ण, किस तरह पिंड छुडाए |
सारे चिंतन करें मगर कुछ समझ न आए |
कह जोशी कविराय सभी हो रहे निरुत्तर |
कुर्सी के लालच में पकड़े साँप छछूँदर |


५. कामन वेल्थ
(कामन वेल्थ गेम्स में करोड़ों का घपला, खेल समिति शक के घेरे में, अगस्त २०१० )

सबका ही अधिकार है जब कामन है वेल्थ |
अगर न खाएँ तो भला कैसे सुधरे हेल्थ |
कैसे सुधरे हेल्थ, दौड़ना कूद लगाना |
कैसे संभव अगर नहीं खाएँगे खाना |
जोशी नीति कहे यदि हों दो तबले लाना |
तो उनमें से एक स्वयं के घर पहुँचाना |

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Wednesday, March 31, 2010

योअर नेम इज नोट खान



1.
(राहुल गांधी बिना पूर्व सूचना के मुम्बई की लोकल ट्रेन में घूमे- ५-२-२०१०)

आप घूमते ट्रेन में मुम्बई में बिंदास ।
मगर पंडितों को नहीं घर जाने की आस ।
घर जाने की आस, खायँ दिल्ली में धक्के ।
जन्म भूमि के ख्वाब देखते हक्के-बक्के ।
कह जोशी कविराय - 'देश सबका' तब मानें ।
जब 'पंडित' निर्भय हो घर जाने की ठानें ।


2. गुंडों का राज

कैसे मानें देश में- 'सारे लोग समान' ।
एक सभी का मुल्क है- 'प्यारा हिंदुस्तान' ।
प्यारा हिंदुस्तान, इसे हम तब सच मानें ।
जब 'पंडित' घर लौटें तो सत्ता को जानें ।
कह जोशी कविराय 'राज' वरना गुंडों का ।
बड़े जनों के बिगड़े अपराधी मुंडों का ।


3. फिल्म और बकरा
(महाराष्ट्र सरकार ने 'माई नेम इज खान' रिलीज करवाने के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए- १२-२-२०१०)

अपनी रक्षा कर स्वयं या फिर भज ले राम ।
जनता की सरकार को और बहुत हैं काम ।
और बहुत हैं काम क्रिकेट का मैच खिलाना ।
औ' 'मई नेम इज खान' प्रदर्शित भी करवाना ।
कह जोशी कविराय बता देना बकरे को ।
अपने बल पर झेलना हर खतरे को ।


4. योअर नेम इज नोट खान
(पाक अधिकृत कश्मीर भाग चुके आतंकवादी भाइयों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की योजना- १६-२-२०१०)

'पंडित' रहकर जा सकें हम अपने घर-बार ।
नहीं दूर तक दीखते इसके कुछ आसार ।
इसके कुछ आसार, 'खान' यदि हम बन जाएँ ।
आतंकी होकर भी मोटा पैकेज पाएँ ।
कह जोशी कविराय जो शिखा-सूत्र रखेंगे ।
काश्मीर में वे ही सदा अछूत रहेंगे ।


5. कायर या मक्कार

कश्मीरी आतंकियों का करती सत्कार ।
कायर है सत्ता यहाँ या फिर है मक्कार ।
या फिर है मक्कार, केंद्र से पैकेज आए ।
जिसको नेता, आतंकी मिल-जुल कर खाएँ ।
कह जोशी कविराय दलाली खुल्ला खाता ।
पैकेज देने में इनके घर से क्या जाता ।


6. बढ़िया मौका

भाग गए थे जो कभी वे सब आएँ लौट ।
सबको देंगे नौकरी, बोरी भरकर नोट ।
बोरी भर कर नोट, न कोई केस चलेगा ।
ऐसा बढ़िया मौका बोलो कहाँ मिलेगा ।
कह जोशी कवि बात 'पंडितों' की ना करते ।
घर से गए निकले जाने कहाँ भटकते ।


7.

भारत देगा नौकरी और प्रशिक्षण पाक ।
सीधे पढ़-लिख छानते शेष मुल्क में ख़ाक ।
शेष मुल्क में ख़ाक, धाक, सर्विस जो चाहें ।
उनको यह संकेत शीघ्र हथियार उठाएँ ।
कह जोशी कवि जो राजा को जूता मारे ।
राजा सादर उसको अपना बाप पुकारे ।


8.

'गर भारत में आप हैं शर्मा, गुप्ता, सिंह ।
तो सत्ता के पास में नहीं है एनीथिंग ।
नहीं है एनीथिंग, अल्पसंख्यक को सब कुछ ।
अगर बदल लो धर्म तभी हो पाएगा कुछ ।
कह जोशी कवि बनो मुसलमाँ या ईसाई ।
मिले वजीफा, सीट मज़े से करो पढ़ाई ।

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Tuesday, March 30, 2010

स्वामी और हम


दिल्ली और कर्नाटक में स्वामियों के कर्म उजागर- ५-३-२०१०

1. स्वामी और हम

स्वर्ण-महल रावण रहें, बन-बन भटकें राम ।
छः दशकों के राज का हासिल यह परिणाम ।
हासिल यह परिणाम , सेक्स में डूबे स्वामी ।
झूठ-मूठ ही हम गाते- 'मूरख, खल, कामी' ।
कह जोशी कविराय समेटें अपना ढाबा ।
अच्छा हो घर-बार बसा लें ऐसे बाबा ।


2.

ताम-झाम से जानिए धर्म-कर्म का मर्म ।
जितने ज्यादा ठाठ हैं उतने ही दुष्कर्म ।
उतने ही दुष्कर्म, कहाँ से रुपये आते ।
ना पूछे सरकार, न ही बाबा बतलाते ।
जोशी भोजन के बारे में बहुत पढ़ाए ।
मगर संतुलित भोजन टीचर ना कर पाए ।


3.

ए.सी. सारा आश्रम, हैं आयातित कार ।
भूल 'राम' भजते जहाँ बाबा 'पञ्च-मकार' ।
बाबा 'पञ्च-मकार' मद्य की बहती नदियाँ ।
मैथुन-मुद्रा युक्त सर्व करतीं सुन्दरियाँ ।
कह जोशी कविराय स्वर्ग जाकर क्या करना ।
जहाँ अप्सरा मिलें वहीं बाबा को रहना ।

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सीमा-सुरक्षा


1. सीमा-सुरक्षा
(पिछले दो दशकों में चीन ने भारत की बहुत सी ज़मीन हथियाई- एक रिपोर्ट, ११-१-२०१०)

पंद्रह फुट का शेड है, छः फुट की दूकान ।
तिस पर सड़कों पर रखा लाला का सामान ।
लाला का सामान, जहाँ पर भी ये जाएँ ।
धड़ से चार गुनी अपनी टाँगें फैलाएँ ।
जोशी चीनी सीमा पर यदि इन्हें बसा दें ।
तो ये ल्हासा तक अपनी दूकान लगा दें ।


2. ग्लोबल वार्मिंग
(उत्तर भारत में कड़ाके की ठण्ड-१२-१-२०१०)

वे ग्लोबल वार्मिंग कहें, हमें लग रही ठण्ड ।
यह वैज्ञानिक तथ्य है या कोई पाखंड ।
या कोई पाखंड, फेक्ट्री नहीं लगाएँ ।
ठीक पुरानी करने की तकनीक ले जाएँ ।
जोशी तो फिर कैसे अपना काम चलेगा ।
फ़िक्र नहीं, सब योरप-अमरीका भेजेगा ।


3. चिक-चिक करके
(महँगाई पर सोनिया चिंतित- २१-१-२०१०)

काम करो ना करो पर करो काम की फ़िक्र ।
फ़िक्र करो ना करो पर करो फ़िक्र का ज़िक्र ।
करो फ़िक्र का ज़िक्र, बढ़े जनता की हिम्मत ।
औ' लग जाए आस, घटेगी अब तो कीमत ।
जोशी सहते-सहते जनता सह जाएगी ।
थोड़े दिन चिक-चिक करके फिर रह जाएगी ।


4. राम की सीमा
(इंदौर में तम्बुओं में भाजपा का अधिवेशन- १८-२-२०१०)

मंदिर तक सीमित हुए पुरुषोत्तम श्री राम ।
आदर्शों के राम से नहीं किसी को काम ।
नहीं किसी को काम, यहाँ तम्बू थे ए.सी. ।
ऐसे करते महँगाई की ऐसी-तैसी ।
कह जोशी कविराय हमारी हालत पतली ।
आप खा रहे अधिवेशन में भुट्टा-इमली ।

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Thursday, February 25, 2010

बातें सभी पुरानी हैं


बातें सभी पुरानी हैं ।
राजा है या रानी है ।

ऊपर से जो ठहरी दीखे
झील वही तूफ़ानी है ।

अपनी कहकर जिसको गाया
तेरी राम कहानी है ।

कैसे देखें तेरा चेहरा
आँखें पानी-पानी हैं ।

उजली दाढ़ी , लंबे चोगे
करतूतें शैतानी हैं ।

२६-११-२००९

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Wednesday, February 24, 2010

दिन बीता और शाम हो गई


दिन बीता और शाम हो गई ।
आफ़त एक तमाम हो गई ।

मै'अ कुछ यूँ दी उसने हमको
पीनी हमें हराम हो गई ।

जो ख़ुद से भी नहीं कही थी
वे सब बातें आम हो गई ।

घोड़ा जितना ज़्यादा दौड़ा
उतनी सख्त लगाम हो गई ।

'मुक्त' हुआ व्यापार इस कदर
सारी सोच गुलाम हो गई ।

जो भी दुःख-दंडकवन भटकी
वही जिंदगी राम हो गई ।

२७-७-२००९

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Tuesday, February 23, 2010

गर आप हमारे हो जाते


'गर आप हमारे हो जाते ।
तो लाख सहारे हो जाते ।

अँधियारे में रहने वाले
जगमग घर-द्वारे हो जाते ।

उत्तर तुम दे देते तो
हम एक किनारे हो जाते ।

खींचातानी मिट जाती
सब वारे-न्यारे हो जाते ।

अनदेखे रहने वाले हम
आँखों के तारे हो जाते ।

८-१२-२००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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