Saturday, December 6, 2008

ढलवाँ रोशनदान


घर लेकर अरमानों में
रहते रहे मकानों में |

रोटी पानी था लेकिन
धूप न थी दालानों में |

उनको यादों में रखलो
जो न छपे दीवानों में |

महलों में रातें भी रोशन
दिन भी रात खदानों में |

क्या बतलाएँ कैसे आए
चलकर रेगिस्तानों में |

चिड़िया के तिनके न रुके
ढलवाँ रोशनदानों में |

हमीं शमां में रोशन थे
हमीं जले परवानों में |

३ मार्च १९९५

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