गद्दी पर असवार* हो गए ।
जनता से सरकार हो गए ॥
'सोने की चिड़िया' पर उनके
सब के सब अधिकार हो गए ॥
पहले तो बेकार घूमते
लेकिन अब बाकार** हो गए ॥
कर्ज़दार है मुल्क भले ही
वे सरमायादार हो गए ॥
देश अंधेरे में पर उनके
सब सपने साकार हो गए ॥
पार नहीं पड़ रही 'लोक' की
पर वे अपरम्पार हो गए ॥
मुल्क फँसा है मझधारों में
उनके बेड़े पार हो गए ॥
२७ जनवरी २००६
* सवार ** कार सहित
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
जनता से सरकार हो गए ॥
'सोने की चिड़िया' पर उनके
सब के सब अधिकार हो गए ॥
पहले तो बेकार घूमते
लेकिन अब बाकार** हो गए ॥
कर्ज़दार है मुल्क भले ही
वे सरमायादार हो गए ॥
देश अंधेरे में पर उनके
सब सपने साकार हो गए ॥
पार नहीं पड़ रही 'लोक' की
पर वे अपरम्पार हो गए ॥
मुल्क फँसा है मझधारों में
उनके बेड़े पार हो गए ॥
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