Thursday, February 17, 2011

गठबंधन की मज़बूरी



गठबंधन की मज़बूरी

(टी.वी. संपादकों से मनमोहन सिंह के वार्तालाप का सार- १६-२-२०११)

उतना दोषी हूँ नहीं जितना समझे आप ।
सबको पड़ता भोगना गठबंधन का पाप ।
गठबंधन का पाप, समझिए तो मज़बूरी ।
नाजायज माँगें भी करनी पड़तीं पूरी ।
जोशी वरना तो होंगे हर साल इलेक्शन ।
झेल नहीं पाएगा जिनको भारत निर्धन ।

विशिष्ट और निकृष्ट

अमरीका योरप कहें नेता जिसे विशिष्ट ।
अपनी जनता के लिए होता वह निकृष्ट ।
होता वह निकृष्ट, दलाली खाय, खिलाए ।
प्लेन खरीदे; कोला, पेप्सी पिए-पिलाए ।
कह जोशी कविराय देश की जो सोचेगा ।
पश्चिम का बाज़ार खाल उसकी नोचेगा ।


अमरीकी थॉट

लेपटाप हर गोद में, विंडो माइक्रोसोफ्ट ।
सबके ओठों पेप्सी, यह अमरीकी थॉट ।
यह अमरीकी थॉट, पिएँ सब कोकाकोला ।
वह दुश्मन है जिसने भी बाज़ार न खोला ।
कह जोशी कविराय पिए जो छाछ शिकंजी ।
उसे मान कर शत्रु उड़ा दो उसकी धज्जी ।

१७-२-२०११


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक से बढ़ कर एक व्यंग रचनाएँ ..गठबंधन की मजबूरी बहुत सटीक है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

राज शिवम said...

बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर रचनाएँ...सटीक व्यंग..गठबंधन की मज़बूरी लाज़वाब..